द्विचाली


द्विचाली

उठ जाग मुसाफिर भोर भयो अब रैन कहाँ जो सोवत है………खर्र खरर्र इसी गाने को गुनगुनाते हुए शिक्षिका सावित्री शीक के झाड़ू से झाड़ू लगा रही थी जहाँ उसके साथ संगत कर रहे थे शीक के झाड़ू की खरर्र खर्र चिड़ये चुनमुन की चहचहाहट और खेतों की ओर जाते गोधन की टनर् टनर् घंटी। खिलता ललछौंह सूरज उसके सुंदर चेहरे को और कान्ति प्रदान कर रहा था।केशों ने अनुभवों की सफेदी का स्पर्श आरंभ कर दिया था।
सहसा तभी पड़ोस की जुगबा माय नौआईन छाती पीटते पान गसड़ गसड़ चबाते हुए सावित्री के बहुत करीब आकर कहती है
“जान्हलो माय की नय?”
सावित्री ने थोड़ा अनमने मन से सीमीत आश्चर्य से कहा
“क्यों क्या हुआ?
अब कौन पहाड़ टूट गया जुगो माय काकी?
सावित्री को जुगोमाय नौआईन का नाम मालूम ना था वैसे भी गाँव मे तो ब्राह्मण और सामंतों के घर की स्त्रियां भी फलाँ की माय चिल्लां की बीवी और ढेकना की पुतोह होती हैं।
जुगोमाय तो बेचारी नौआईन ठहरी ना शिक्षा!और ना ही सामाजिक प्रतिष्ठा!
जुगो माय को बड़ा आश्चर्य हुआ
हे बे !! तोरा कुछ नय पता???
जुगोमाय का प्रश्न पूछने का यह अंदाज यह तो बता रहा था कि कोई बड़ी घटना घटी है, और सावित्री को यह मालूम नहीं तो यह एक प्रकार का अक्षम अपराध है।सावित्री ने उलाहने के अंदाज मे कहा
“हाँ भई गाँव की बीबीसी तो तुम हो ताजा समाचार तुम ही सुनाओ”
जुगोमाय ने अपनी पान गिलौड़ी तीन सौ साठ के कोण पर घुमाते हुए कहा
“अरे ऊ आपके हेडमास्टर नहीं हैं?”
“कौन नरोत्तम बाबू?”
हाँ हाँ वही वही…..उसकी बेटी
क्या हुआ उनकी बेटी को और कौन सी बेटी? ?बेटे की आकांक्षा मे नरोत्तम बाबू की कुल छः बेटियाँ हैं”
अरे दीदी ऊ मझली बेटी ”
“ओह पवित्रा !! क्या हुआ पवित्रा को
“आपको सही मे नहीं पता है???”
अब जुगोमाय ने प्रश्नों से सावित्री को अपने चक्रव्यूह मे फांस लिया था”
सावित्री ने खीजते हुए कहा “नहीं !नहीं पता!और पवित्रा तो मेरी पढ़ाई हुई बच्ची है मैने पढ़या है उसको बहुत सहासी और दबंग है पवित्रा, भला उसको क्या हो सकता है?वो तो कष्ट पहुंचाने वाले को कष्ट मे डाल देगी।बहुत निडर है पवित्रा!
जुगोमाय ने अपनी लगभग समाप्त हुई पान गिलौरी का थूक कोण्टा मे फेंकते हुए कहा
“अरे ऊ अपने ससुरे से बियाह कर ली!!!”
सावित्री सन्न और आवाक् झाड़ू और सूप दोनों हाथ से गिर पड़े थे,कूड़ा कचरा आंगन मे पुनः बिखर चुका था ।
पवित्रा ने अपने ससुर से शादी कर ली
ऐसी क्या विवशता रही होगी?
आश्चर्य है यह !! यह प्रश्न सावित्री के मनमस्तिष्क को मड़ोड़ रहा था।
जुगोमाय नौआईन तब तक जा चुकी थी।शायद इसी तरह की और कई समाचारों का प्रसारण उसे पूरे गाँव यहाँ तक कि पड़ोस के गाँव मे भी करना था जो जुगोमाय का प्रिय विषय और कार्य था।
किन्तु यह सावित्री का प्रिय विषय नहीं था वह अभी भी विस्मित थी इस अनहोनी और आश्चर्यजनक घटना से,
अनगिनत प्रश्न उसके मन मे झंझावात उत्पन्न कर रहे थे।
अक्सर छोटी जातियों में ऐसा देखा था सावित्री ने कि पति की मृत्यु हो जाने पर औरतों की दूसरी शादी हो जाया करती थी, और होनी भी चाहिए, इसमें कुछ बुरा नहीं है।
किन्तु पवित्रा का पति तो जीवित है!
वह जीवित पति के होते हुए ससुर से शादी कैसे करेगी?
ऊपर से वह तो सामंती समाज से है यदि यह घटना सही होती तो अब तक तो भूचाल आ गया होता,कहीं पवित्रा चरित्रहीन तो नहीं है? ना ना !जुगोमाय कोई मनगढंत कहानी गढ़ रही है ।अब यह बात एक अक्षरकट्टु गीत की तरह हो गया था सावित्री के लिए।


बहरहाल साल बीतता रहा और पवित्रा के जीवित पति के रहते ससुर से शादी का प्रकरण सावित्री के अवचेतन में सोता रहा।कुछ वर्ष बाद सावित्री किसी आवश्यक कार्य से झण्डापुर स्टेट बैंक गई थी।बैंक के कर्मचारियों का लंच ब्रेक था और बैंकवालों का लंच ब्रेक तो जग जाहिर है!सावित्री ने सोचा थोड़ा सोफे पर सुस्ता लें।
अभी सावित्री ने पलकें झपकाई हीं थी कि तभी किसी लम्बी छरहरी सुंदर युवती ने उसे झुककर प्रणाम किया
दीदी जी पहचाने??
गाँव कस्बों मे शिक्षिकाओं के लिए दीदी जी शब्द का सम्बोधन ही प्रचलन में था।सावित्री ने बड़े हुलसित मन से कहा
“पहचानेंगे नहीं बेटा?अपना बाल बच्चा को भी कोई भूलता है क्या?पवित्रा तुम तो मेरी छात्रा रही हो एक शिक्षक स्वयं की संतान और और छात्रों मे कहाँ विभेद कर पाता है? वास्तविकता मे देखा जाए तो समय और समर्पण छात्र को ही मिलता है, अपने बच्चे तो उपेक्षित ही रहते हैं..!
वो प्रश्न जो बहुत दिनों से सावित्री के उदर और मनमस्तिष्क मे कब्बडी खेल रहे थे वो अब उत्तर की विजय शलाका पाने को आतुर थे।सावित्री ने सकुचाते हुए कहा-
“बेटा पवित्रा एक.बात पूछें क्या?”
“क्या दीदी जी?”
“वो कुछ अफवाह सुने थे”
पवित्रता ने मुस्कुराते हुए कहा
“हूं बिना आग का धुआं कहीं होता है देवी जी?
मतलब !!
सावित्री आवाक्
“तो क्या यह सच है कि तुमने अपने ससुर से ही शादी कर ली है?”
“हाँ दीदी जी कानूनी तौर पर”
पवित्रा ने आँखे मटकाते हुए कहा
ये क्या कह रही हो तुम पवित्रा ससुर तो पिता तुल्य होता है!
पवित्रा तुम इतना घृणित कार्य कैसे कर सकती हो वो भी पति के जीवित रहते छी! छी! राम! राम!
“अरे दीदी जी वो अभी भी मेरे ससुर हीं हैं और मैं उनकी बहू हूँ। वो तो बस कानूनी शादी किए हैं।”
सावित्री अकचकाई कानूनी शादी मतलब??
“मतलब ये कि मेरी सास नहीं है बूढ़ा कब टपक जाए पता नहीं तो ई जो पेंशन और भविष्य निधि का पैसा है
पच्चीस तीस लाख वो ऐसे हीं थोड़े ना जाने देंगे?
पवित्रा अपनी वीरगाथा ऐसे बखान कर रही थी जैसे कुछ हुआ हीं नही होऔर सावित्री ऐसे सुन रही थी जैसे स्त्री सवाभिमान की धरती दरक रही हो।
सावित्री ने प्रश्नों की श्रृंखला बढ़ाते हुए पूछा “लेकिन तुम्हारे पति.. उन्होंने तुम्हें रोका नहीं??”
नहीं!क्यों रोकेंगे उन्हीं की तो यह तरकीब थी
“किन्तु यह धर्म सम्मत नहीं है पवित्रा”
“क्यों दीदी जी?”
“जब पंचाली धर्म सम्मत है तब द्विचाली क्यों नहीं??”
पवित्रा के हिसाब से इस पूरे प्रकरण मे कहीं कुछ अपवित्र नहीं था।किन्तु सावित्री के लिए यह अनुत्तरित प्रश्न पुंज था।ये तो शोषण है, तो क्या स्त्रियां स्वयं के शोषण के लिए स्वयं ही उत्तर दायी है?क्या पितृ सत्ता इस स्तर तक स्वार्थी है कि उसे अपने लाभ के लिए स्त्रियों का पंचाली द्विचाली सब होना स्वीकार्य है।किन्तु व्याहता स्त्री का पुरुष मित्र हो,यह उसे कभी भी स्वीकार्य नहीं यहाँ तक कि उस पुरूष मित्र की पत्नी का कोई पुरुष मित्र हो यह उस पुरुष मित्र को स्वीकार्य नहीं।पवित्रा द्विचाली है कि पता नहीं किन्तु इस पितृ सत्ता के मानदण्ड बड़े दोहरे हैं।स्त्री की हर स्वच्छंदता स्वीकार्य है जिसमे उसका लाभ हो और स्त्री की हर स्वतंत्रता पुरूष सत्ता को अस्वीकार्य है जिसमें पुरूष सत्ता को चुनौती हो।बैंक मे हलचल पुनः प्रारंभ हो गई थी शायद लंच ब्रेक समाप्त हो गया था तभी पवित्रा ने सावित्री का हाथ पकड़ते हुए आग्रह भाव से कहा-
“अच्छा दीदी जी चलते हैं लगता है मेरा नम्बर आ गया है फिर मिलते हैं प्रणाम।”
सावित्री के मुख से कोई आशीर्वाद ना फूट रहा था तभी पवित्रा ने जाते- जाते पलट कर दाँत खिसोड़ते हुए कहा-
” हें हें उसी बुढ़ा का पास बुक है दीदी जी”
सावित्री चकित थी ये विद्रूप हंसी वाली स्त्री कौन थी?? एक मूर्ख जिसे अपने शोषण और उत्पीड़न का भान नहीं था या उसकी अपूर्ण शिक्षा जिसके पाठ्यक्रम मे स्त्री स्वाभिमान गौण विषय है समर्पण मुख्य विषय है या पैसा के लालच मे अपवित्र हुई पवित्रा,या फिर दोहरे मानदंडों वाली पुरूष सत्ता की द्विचाली…….

कुमुद”अनुन्जया”
भागलपुर”बिहार”

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