ग्रामीण संवेदनाओं का कुशल चितेरा मुंशी प्रेमचंद !!

ग्रामीण संवेदनाओं का कुशल चितेरा मुंशी प्रेमचंद !!

साहित्य का उद्देश्य केवल लोगों को संदेश देना नहीं होता है। बल्कि श्रेष्ठ साहित्य तो अपने युग का जीता-जागता दस्तावेज होता है। उसमें उस कालखंड की समस्याओं, विशेषताओं, राजनीतिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक परिस्थितियों का विशद वर्णन होता है जिसे पढ़ कर पाठकों की अन्तःचेतना में एक नई सोच और चेतना का उदय होता है।

हिंदी भाषा के महान कथाकार-उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद साहित्य की विभिन्न विधाओं कहानी, उपन्यास, नाटक, बाल- साहित्य आदि पर न केवल लिखा बल्कि सामाजिक एवं फैली विसंगतियों विशेषताओं और सामाजिक परिस्थितियों सभी पाठकों को रूबरू कराया।
भारतीय भाषाओं में कुछ ही लेखक ऐसे हैं जिन्होंने समय की सीमा पार की और विश्व साहित्य के इतिहास के महानतम लेखकों के बीच में गिने जाने का गौरव प्राप्त किया। मुंशी प्रेमचंद उनमें से ही एक हैं। उनकी रचना में मानव अस्तित्व की सार्वभौमिक दुर्दशा और उत्तरजीविता एवं पहचान के लिए उनके संघर्ष का स्पर्श मिलता है। प्रेमचंद अत्यंत सादगी के साथ कहानियां लिखते थे जो पाठक के दिल को छू लेती है। उसे अपनी रचना का भाग बना लेती है और उसे रचना के मुख्य पात्र के साथ-साथ ख़ुशी, दर्द और पीड़ा महसूस करवाती है।

मुंशी प्रेमचंद जी के बारे में अगर एक वाक्य कहें कि “भारत के गांव का आईना है उनका साहित्य” तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। सन 1915 में उनका साहित्य में पदार्पण हुआ और आज सन 2018 में भी हिंदुस्तान वैसा का वैसा ही है। एक दूरदर्शी साहित्यकार थे। जो दूरदर्शी नहीं होता वह समय के साथ धरातल में मिल जाता है। प्रेमचंद जी के पास विशाल अनुभूति और असीम अनुभव था। वह वक्त की धड़कन को किसी निष्णात वैद्ध की तरह पहचानते थे। उनकी कहानियों में आज भी ताजगी है।

प्रेमचंद जी ने 300 से ज्यादा कहानियां लिखी। गोदान, गबन, कर्मभूमि, निर्मला, सेवा सदन जैसे उपन्यास लिखे। जिनमें उनके अंतरंग अनुभव और अनुभूति की सच्चाई मिलती है। मानसरोवर के आठ भागों में उनकी कहानियां है। कफन और ईदगाह कहानी तो बहुपठित और प्रसंशित हैं, जिनमें कफन कहानी में कफन के लिए जमा किए गए पैसे को बाप और बेटी शराब और कबाब में खर्च कर देते हैं। और तर्क यह देते हैं कि इतने पैसे में मरने वाली की दवा-दारू के लिए मिल गए होते तो वह आज भी आज भी जीवित रहती। ईदगाह में सब बच्चे मिठाई खिलौने खरीदते हैं। मगर हामिद अपनी दादी के लिए चिमटा खरीदता है, ताकि रोटियां सेकते समय दादी का हाथ न जले। कफन के घीसू-माधव के जरिए मुंशी प्रेमचंद ने सवाल पूछना चाहा है उनकी इस विचारधारा के लिए जिम्मेवार कौन है?

ठाकुर का कुआं और पूस की रात की बेहद चर्चित कहानियां हैं। जिनमें प्रेमचंद्र ने वर्ग संघर्ष और आम आदमी की दयनीय स्थिति का चित्रांकन किया है। अच्छी कहानी वह होती है जो पढ़ने के उपरांत पाठक के मन में शुरू होती है और उसे झझकोरने का काम करती है। इस कला में वह सिद्धस्त थे। इसलिए वे कथा सम्राट कहानीकार कहे जाते हैं।

उनका ‘गोदान’ उपन्यास भी बहुत चर्चित है जिसमें सात छोटी-बड़ी कथाएं गुंफित है। गोदान में एक प्रसंग नकल उतारने का है। महाजनी सभ्यता और जमींदारी नासूर को प्रेमचंद जी ने बहुत करीब से देखा था। इसमें ठेकेदार ठाकुर 10 रूपये का दस्तावेज लिखवाकर महज 5 रुपया देता है। बाकी रकम नजराने, तहरीर, दस्तूरी और ब्याज के तौर पर काट लेता है-
“यह तो 5 हैं मालिक।“
“पांच नहीं, दस है। घर जाकर गिनना।“
“नहीं सरकार! 5 है।“
“1रुपया नजराने का हुआ की नहीं।“ “हां सरकार!” “एक कागज का!” “हां सरकार!” “एक दस्तूरी का!” “हां सरकार!” “एक सूद का!” “हां सरकार!” “पांच नकद हुये कि नहीं?” “हां सरकार! अब यह पांचो भी मेरी और से रख लीजिये।“ ‘कैसा पागल है?” “नहीं सरकार! एक रुपया छोटी ठकुराईन का नजराना है, एक बड़ी ठकुराईन का! एक रुपया छोटी ठकुराईन के पान खाने को, एक बड़ी ठकुराईन के पान खाने को! बाकि बचा एक! वह आपकी क्रिया-करम के लिए!” अपनी हास्य-व्यंग शैली से प्रेमचंद जी न कही जाने वाली बात भी कहते हैं।
प्रेमचंद ने पात्रों के माध्यम से जीवन के सत्व को निचोड़ा है। गोदान में भी लिखते हैं मेरे जहन में “औरत वफा और त्याग की मूर्ति है जो अपनी बेजुबानी से, अपनी कुर्बानी से, अपने को बिल्कुल मिटाकर पति की आत्मा का एक अंश बन जाती है”।

एक जगह पर लिखते हैं “धर्म का काम संसार में मेल और एकता पैदा करना होना चाहिए। यहां धर्म ने विभिन्नता और द्वेष पैदा कर दिया है, क्योंकि खान-पान में रस्मो-रिवाज में धर्म अपनी टांगें अड़ाता है”।
गोलमाल में भी लिखते हैं “भारत का उद्धार अब अभी इसी में है कि हम राष्ट्र धर्म के उपासक बने। विशेष अधिकार के लिए न लड़कर समान अधिकारों के लिए लड़े”। एक जगह कहते हैं “खून का वह आखरी कतरा जो वतन की हिफाजत में गिरे दुनिया की सबसे अनमोल चीज है”।

निर्धनों के बारे में लिखते हैं “जिस समाज में गरीबों के लिए स्थान नहीं, वह उस घर की तरह है, जिसकी बुनियाद ना हो। कोई हल्का सा धक्का भी उसे जमीन पर गिरा सकता है”।

आधुनिक हिंदी कथा साहित्य के इतिहास में प्रेमचंद का स्थान महत्वपूर्ण है। लेकिन प्रेमचंद के कथा साहित्य को लेकर आलोचकों के विचारों में मतैक्य नहीं है। कुछ विद्वान् ने ‘उपन्यास सम्राट’ सिद्ध करते हैं और कुछ विद्वान ‘कहानी सम्राट’ मानते हैं। डॉ रामविलास शर्मा जैसे विद्वान भी उनको इतिहास में जगह देने की बात करते हुए अपनी आशंका व्यक्त करते हैं कि ‘यदि कहानीकार प्रेमचंद और उपन्यासकार प्रेमचंद में एक को ही हिंदी साहित्य के इतिहास में जगह देने की बात हो तो शायद उपन्यासकार प्रेमचंद को ही उस जगह के लिए चुना जाएगा। यह सच्चाई है कि प्रेमचंद हमारी हिंदी कथा साहित्य के ही सम्राट है क्योंकि अगर उन्होंने हिंदी उपन्यास को स्वभाविक स्वरूप प्रदान किया है, हिंदी की कहानी कला को प्रोढ़ता दी है।

उनकी कहानियों का चित्रपट विशाल है। उनकी कहानियों में ग्रामीण जीवन का यथार्थ चित्रण सर्वाधिक सजीव है। गांधीवादी जीवन दर्शन से प्रेमचंद का लेखन सर्वाधिक प्रभावित है और समरयात्रा संग्रह की कहानियां तो प्रायः गांधीवादी आंदोलन का जीता-जागता इतिहास बन गई है। प्रेमचंद की कहानियों में संप्रदायीक मनोवृति का स्पर्श भी नहीं है। उन्होंने मुसलमान पात्रों को भी उतनी ही सहृदयता से चित्रण किया है, जितनी सहानुभूति से हिंदू पात्रों को। चाहे वह मुक्तिधाम कहानी का रहमान हो या ईदगाह कहानी का हामिद या उसकी बूढी दादी अमीना। उनकी कहानियों का सबसे प्रबल आकर्षण अनुभूति की तीव्रता है। उनकी प्रत्येक कहानी जीवन का अनुभव खंड है, जिसे उन्होंने हृदय की संपूर्ण निश्चलता के साथ प्रस्तुत कर दिया है।

उनका दृष्टिकोण मानवतावादी है। वह पाप से घृणा करते हैं, पापी से नहीं। हर मनुष्य के देवत्व में भरोसा करते हुए ‘पंच परमेश्वर’ और ‘बड़े घर की बेटी’ जैसी कहानियां लिखते हैं। उनकी कहानियां का शिल्प विधान भले ही पाश्चात्य भाषा के आधार पर हुआ हो पर इनकी भारतीय आदर्शों से निर्मित हुई है। इस विवेचना के आधार पर स्पष्ट रूप से कह सकते हैं कि प्रेमचंद की कहानियों में विषय वस्तु की बहुत ही ज्यादा विविधता पाई जाती है। हिंदी के अन्य किसी भी कहानीकार ने मानव जीवन की इतनी विस्तृत और व्यापकता को अपनी कहानियों में नहीं समेटा और उकेरा है जितना की प्रेमचंद ने। प्रेमचंद की कहानियां केवल मनोरंजन के उद्देश्य से नहीं लिखी गई है। उन सभी में कोई ना कोई सुझाव, जीवन के प्रति दृष्टिकोण, किसी समस्या का हल जरूर मिलता है। उनकी खूबी है कि वह ऐसे चित्र खींचते हैं कि कहानी में उपदेशकों का रूखापन नहीं आ पाता उनके चित्र बड़े सजीव होते हैं मानो घटना आंखों के सामने हो रही हो और प्रेमचंद उसे नोट करते जाते हो।

सद्गति कहानी का दुखी चमार पंडित के दरवाजे पर कुल्हाड़ी से लकड़ी फाड़ते-फाड़ते भूखा-प्यासा दम तोड़ देता है। कोई भी चमार उसकी लाश उठाने नहीं आता। “पंडित जी ने रस्सी निकाली उसका फंदा बनाकर मुर्दे को पैर में डाला और फंदे को खींचकर कर कस दिया। अभी कुछ-कुछ धुंधलका था। पंडित जी ने रस्सी पकड़ कर लाश घसीटना शुरू किया और गांव से बाहर घसीट ले गए। वहां से आकर तुरंत स्नान किया, दुर्गा-पाठ पढ़ा और घर में गंगाजल छिड़का। उधर दुखी की लाश को खेत में गीदड़ और गिद्ध और कुत्ते और कौवे नोच रहे थे। यही जीवनपर्यंत की भक्ति, सेवा और निष्ठा का पुरस्कार था।

प्रेमचंद की कहानियों की भाषा में “उर्दू की रवानी, व्यवहारिक जीवन का प्रभाव, ग्राम्य जीवन की अभिव्यंजना तथा स्वयं उनके व्यक्तित्व की सरलता के दर्शन एक साथ होते हैं। उनकी भाषा में हिंदी की जातीय विशिष्टता देखी जा सकती है। उनमें वर्णन की अद्भुत क्षमता है। वह दृश्य को इतने सुंदर ढंग से युक्त कर देती है कि सूक्ष्मातिसूक्ष्म- वस्तु-सौंदर्य साकार हो उठता है। प्रेमचंद की कहानियों की प्रमुख शैली वर्णनात्मक है। उनकी कहानियों में संवाद शैली का भी खूब प्रयोग हुआ है। संवाद-शैली का दो बैलों की कथा से एक उदहारण दृष्टव्य है “हीरा ने पूछा- तुम दोनों क्यों नहीं भाग जाते? एक गधे ने कहा- जो कहीं फिर पकड़ लिए जाएं। तो क्या हरज है। अभी तो भागने का अवसर है। हमें तो डर लगता है। हम यहीं पड़े रहेंगे।” प्रेमचंद में वर्णन की अद्भुत क्षमता थी हुए मनुष्य की आकृति प्रकृति मनोभावों का उतार-चढ़ाव घटनाओं की पृष्ठभूमि और उसका प्रभाव पूर्ण विवरण प्राकृतिक सौंदर्य की रमणीयता ग्रामीण जीवन की सरलता आदि का वर्णन बड़ी सजीव शैली में करते हैं।

इन सब कहानियों के माध्यम से प्रेमचंद ने अपने समय का समग्र इतिहास लिख दिया। प्रेमचंद हिंदुस्तान के उन थोड़े से कलाकारों में है जो हिंदू और मुसलमान दोनों को समान अधिकार से कैसे लिखते थे प्रेमचंद सच्चे अर्थों में भारतीय अवाम के साहित्यिक आवाज है।

डॉ नीरज कृष्ण
पटना, बिहार

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