सपनों के आगे
सफलता या समस्या – दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं शायद। और दोनों ही हमारे कर्मों के फल हैं। कर्म पर निर्भर होता है कि हम खुशियां लाते हैं या फिर और कुछ। कर्म का मतलब है कि अपने आप के लिए तुम ही उत्तरदायी हो। कृष्ण ने तो अर्जुन को यही कहा था।
ये शहर अब बढ़ता ही जा रहा है दक्षिण छोर पर। पहले शहर बहुत चमकता था – पक्की सड़कें, पेड़, रोशनी लेकिन इस तरफ तो कुछ भी नहीं है। बेतरतीब घर, टीन के छप्पर, कुछ पक्के भी। पीने के पानी के लिए तीन चार हैंड पंप। इसी एक मकान में ऊपर रहता है मंडल का परिवार। मंडल एक प्राइवेट कंपनी में ड्राइवर है। तनख्वाह ठीक है। लेकिन तीन बच्चे, मां, पत्नी और एक बिन ब्याही बहन की देखभाल के लिए कम पड़ता है। तीस साल में शादी नहीं हो पाई। कुछ दहेज और कुछ दबे रंग के कारण। एक दुकान में रिसेप्शनिस्ट का काम करती है। हमेशा डर लगा रहता है कुछ ऊंच-नीच ना हो जाए। बेटे सुमित पर हमेशा गर्व रहा है मंडल को। लम्बा-चौड़ा शरीर, रंग गेहुंआ, खेल-कुद की मस्ती से भरपूर। पढ़ने में भी ठीक-ठाक। सरकारी स्कूल से ही सही, लेकिन कॉलेज तक पहुंच ही गया। कहता है बी-कॉम करके अच्छी नौकरी मिल जाएगी। भगवान सबको अच्छा रखे, यही हमेशा दुआ निकलती है मंडल के मुंह से। अपनी जिंदगी से मंडल कभी दु:खी नहीं हुआ। भला क्या फायदा, इधर-उधर की सोचकर। जो आप बदल नहीं सकते, जिसका उत्तर आप दे नहीं सकते, उसकी सोचकर क्यों जान हलकान करें। शायद ड्राइविंग से सीखा होगा, इधर-उधर मत देखो, अपने रास्ते चलते चलो।
सुमित को आजकल एक भूत सवार हो गया – किसी बड़ी प्रतियोगिता में जाने का। डील-डौल अच्छा है तो वह ‘‘मिस्टर रामनगर’’ बन सकता है। कसरत करता फिरता है। सुबह आठ किलोमीटर दौड़, फिर बल्ले घुमाना, बारह मिलोमीटर साइकिलिंग। सुषमा भी उसके लिए दूध, बादाम, अंडा ले आती है। बुआ का प्यारा भतीजा है। लेकिन इतने से ही नहीं होगा। बदन को भरना पड़ेगा, मांसपेशियां उभरनी चाहिएं। मंडल को लगता है कि उसको कहे, बेटा मुस्कुराना मत छोड़, दुनियां की सारी परेशानियां तेरी नही हैं। उसके सपनों में मंडल भी शामिल हो गया है।
लेकिन सुमित को तो जीतना है हर हाल में। कमरे की दीवार, जिधर वह सोता है, उस कोने में बड़ी पोस्टर लगा रखी है, किसी पुराने बाडी बिल्डर की। पिछले महीने साहब को बताया था कि सुमित को बॉडी बिल्डिंग करनी है तो उन्होंने दो हजार का नोट पकड़ा कर कहा था – उसे अच्छा खिलाओ। सुमित एक डब्बा ले आया उससे। कहा दूध, घी, अंडा काफी नहीं है। उसे बहुत प्रोटीन खाना पड़ेगा। उस डिब्बे में शायद कोई जादुई ताकत होगी। सुमित अब गबरु जवान दिखने लगा था। सात-आठ महीने हो गए थे। सुमित का रूटीन अब और तंग हो गया था। ताकत बढ़ाने के लिए उसे कोई दवाई चाहिए थी। मंडल बड़े असमंजस में पड़ गया। पहले के पहलवान तो घी, दूध के भरोसे ही थे। अब ये नई व्याख्या कहां से आ गई। जब कुछ नहीं समझ में आया तो उसने सुमित पर ही छोड़ दिया। अपने कर्म खुद करने के लिए।
रजिस्ट्रेशन फार्म भी भर दिया। एक दिन सुमित घर आया तो बड़ा परेशान था। कहने लगा मुझे कोई दवा खाने को कह रहे हैं, लेकिन एक खतरा है। टेस्ट में अगर दवा का अंश निकल गया तो प्रतियोगिता से बाहर हो जाऊंगा। एक इतना बड़ा मौका- नाम, शोहरत, पैसे और हसरतों का पूरा होना – इस बात पर निर्भर होगा कि दवाई टेस्ट में ना निकले। मंडल ने अपनी जिंदगी को बड़ी सादगी से जिया है सीधी सरल रेखा। तो अब वह कैसे कहे कि इस तरह की जिंदगी जीना आसान नहीं है। वो दवाई कंपनी वाले समझा रहे थे कि कोई समस्या नहीं आएगी।
आज आखिरी दिन था। सुमित ने सुबह उससे कहा कि ये जिंदगी का आखिरी अध्याय नहीं है। वो दवाई नहीं लेगा। ऐसे ही कोशिश करेगा। अगर फेल भी हो गया तो कुछ नहीं। सपनों के आगे भी दुनिया है। मंडल पढ़ा लिखा नहीं था पर उसे सभी समझ में आ गया कि सफलता ही आखिरी सीढ़ी नहीं है। सुमित अपने साहस के भरोसे आगे बढ़ना चाहता है और मंडल को लगा कि वह सुमित की पीठ थपथपाकर बोले – दुनियां तुम्हारे साथ है।
डॉ अमिता प्रसाद