रिश्ता

रिश्ता

एक तेज हवा के झोंके की तरह उनके जीवन में आई थी अनुष्का | एकदम अल्लढ मदमस्त नवयौवना | चार्वाक दर्शन को जीवन का आधार मनाने वाली | सीधे-साधे उत्कर्ष के जीवन में एक तूफान बनकर कुछ तीनों के लिए आई और उसके सम्पूर्ण जीवन को है बदलकर रख दिया |
उत्कर्ष उठो! कितना पढ़ते हो यार | कुछ घूम फिर भी लिया करो | सुना नहीं है क्या अधिक पढने वाले पागल हो जाते हैं | अनुष्का ने पीछे से उत्कर्ष के गले में बाहें डालते हुए कहा |
हटो भी! कोई देख लेगा तो क्या कहेगा | उत्कर्ष ने हड़बड़ाकर कहा | लोग जानते हैं सब मुझे पुस्तकालय में | उत्कर्ष और अनुष्का लखनऊ विश्वविद्यालय के रिसर्च स्कालर थे | कोई सर से शिकायत कर दिया तो गजब हो जाएगा | लखनऊ विश्वविद्यालय के टैगोर पुस्तकालय में उत्कर्ष के अच्छे व्यवहार के कारण सारे अधिकारी और कर्मचारी उसे पहचानते थे |
तुम सच में बुद्धू हो | पगले तुम बच्चे नहीं हो | कोई देख लेगा तो क्या कहेगा | सर जान जायेंगे तो क्या कहेंगे | फाँसी नहीं दे देंगे तुम्हें, समझे! अरे क्या कहेंगे | मेरी तुम्हारी शादी करा देंगे और क्या कितना मजा आएगा | मैं तुम्हारी, तुम हमारे | अनुष्का ने जोर से हँसते हुए कहा |
अनुष्का के यह शब्द उत्कर्ष के जीवन के वेद वाक्य थे और अनुष्का के लिए महज एक मजाक | उत्कर्ष और अनुष्का की जीवन शैली में जमीन आसमान का अन्तर था | उत्कर्ष किसी भी बात को बहुत गम्भीरता से लेता था जबकि अनुष्का थी एकदम मुँहफट | उत्कर्ष बड़ा ही भावुक व्यक्ति था | उसने अनुष्का के इन्हीं शब्दों के आधार पर अपनी जीवन संगिनी मान लिया | उसे क्या पता कि यह तो एक मजाक भर था | ऐसे वाक्य न जाने कितने लोगों को अनुष्का बोल चुकी थी |
अब प्रतिदिन मिलना उनकी दिनचर्या में शामिल हो गया | बिना एक-दूसरे को देखे उनको चैन नहीं मिलता | जिस दिन दोनों में से एक विश्वविद्यालय ना आए तो समझ लीजिए महाभारत | धीरे-धीरे उनके प्रेम की बातें दोस्तों और अध्यापकों को भी मालूम हो गई गाहे-बगाहे वे सब भी इन्हें चिढ़ाने में पीछे नहीं रहते थे |
हजरतगंज, अमीनाबाद, निशातगंज, कैसरबाग, गोमतीनगर, अलीगंज कहाँ-कहाँ नहीं घूमे वे | लखनऊ का शायद ही कोई माल, सिनेमाघर, रेस्टोरेंट उन दोनों की पार्टी से बचा हो |
टैगोर लाइब्रेरी का गाँधी मैदान और साइंस कैंटीन उनके मिल्न के प्रमुख केन्द्र थे | बात करने और एक-दूसरे के समीप रहने के चक्कर में दोनों जबरजस्ती चाय कॉफी पीते थे |
समय को पंख लगते देर नहीं लगती है | अनुष्का का चयन डिग्री कॉलेज प्रवक्ता पद पर हो जाता है | उत्कर्ष अब विश्वविद्यालय में कभी-कभी अकेला नजर आता है | कैंटीन में जाना उसने छोड़ दिया क्योंकि कैंटीन में काम करने वाला सुनील जो थोड़ा सा मुँहलगा हो गया था, पूछ लेता सर जी क्या बात है? आजकल आप अकेले-अकेले भाभी जी कहाँ हैं? उत्कर्ष बिना कोई उत्तर दिए धीरे से मुस्कुरा देता और सुनील और कुछ बगैर पूछे उसके सामने चाय लाकर रख देता |
सिनेमाघर और पार्क में घूमना उत्कर्ष ने कम कर दिया | जिम जाना तो उसने एकदम से छोड़ दिया | अधिकतर केवल अपने कमरे में बन्द रहता | मित्रों से मिलना-जुलना कम कर दिया | अनुष्का भी अपने काम में इतना व्यस्त हो गई कि अब दिन भर में एकाध बार ही फोन करती | वह भी जब इधर से जब उत्कर्ष करता और किसी कारण उठा नहीं पति तो | अब जब भी कभी उत्कर्ष फोन करता तो अनुष्का का जवाब होता यार थक गए कल बात करते हैं | कभी-कभी तो उत्कर्ष घण्टों फोन लगाता और बिजी होने के बाद भी अनुष्का कहती- तुम्हारा दिमाग तो नहीं खराब हो गया है? पगला तो नहीं गये हो? क्यों फोन पर फोन किये जा रहे हो? क्या बात है? उत्कर्ष चुपचाप अपने छत के पंखे को निहारता हुआ पता नहीं कब सो जाता |


अब धीरे-धीरे उत्कर्ष भी अनुष्का की तरफ से उदासीन हो गया क्योंकि ताली दोनों तरफ से बजती है और प्रेम एकतरफा नहीं होता |यह दो शरीर का नहीं, दो आत्माओं का मेल होता है | जब तक प्रेम में स्वार्थ होगा प्रेम, प्रेम नहीं वासना होगा, क्योंकि प्रेम पवित्र होता है पत्ते पर पड़ी हुई ओस को बूंद की तरह जिसके आर-पार सब कुछ दिखाई देता है | इसमें कहीं कोई रुकावट पैदा नहीं होती है | प्रेम के मध्य में यदि अविश्वास उत्पन्न हो गया तो फिर प्रेम कहाँ रहा | विश्वास का दूसरा नाम ही तो प्रेम है |
जो अनुष्का कभी आप पूछती थी कि शादी कर के कहाँ रखोगे उत्कर्ष मुझे, क्योंकि तुम तो खुद हॉस्टल में रहते हो यही रखोगे अपने साथ | क्या मुझे सारी सुख-सुविधा दे पाओगे | जो मेरे मम्मी-पापा मुझे देते हैं | झेल पाओगे मुझे | बहुत बड़ा वाला गुस्सा आता है मुझे | बड़ा वाला गुस्सा अपने गुस्से के सामने मैं किसी की नहीं सुनती | मेरे मम्मी-पापा के अलावा कोई नहीं समझ सकता मुझे | शादी कर लोगे तो साल भर में पापा बन जाओगे | कैसे पढाओगे अपने बच्चों को | अपने साथ है ले जाओगे स्कूल | एक चलचित्र के समान यह सारी बातें उत्कर्ष के मस्तिक में हमेशा घूमती रहती |
अचानक एक दिन वज्रपात सा हुआ उत्कर्ष पर | अनुष्का ने फोन पर कहा- उत्कर्ष माफ कर देना मुझे | मेरी शादी बहुत बड़े घर में हो रही है | मेरा होने वाला पति दिल्ली का बहुत बड़ा डॉक्टर है | बहुत पैसे वाली फैमिली है | मैं बहुत खुश रहोगी वहाँ | आखिर तुम भी तो यही चाहते थे ना उत्कर्ष | वह धाराप्रहाव बोले जा रही थी और बिना किसी उत्तर की प्रतीक्षा किए अनुष्का ने कहा- बाय मुझे कभी फोन मत करना | डिलीट कर देना मेरा नम्बर | ओके |

डॉ.अरुण कुमार निषाद
लखनऊ, उत्तर प्रदेश

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