जोखू जिन्दा है
अभिजात्य वर्ग का एक युवक ट्रेन में यात्रा कर रहा था। मुंशी प्रेमचंद की कहानियों की किताब में रमा वह “ठाकुर का कुंआ” कहानी पर अटक गया। कहानी पढ़ते-पढ़ते वह असहज होने लगा। गंगी और जोखू उसके भीतर उतरते चले गए। गले मे खुश्की भरने लगी। उसने बैग में पानी की बोतल ढूंढी, बोतल नही थी। युवक फिर कहानी में खो गया। युवक के भीतर सवालों का जखीरा खड़ा हो गया -, “उफ्फ, कैसी-कैसी जकड़नों में बंधा था समाज। इंसानों में भी वर्ग? ये कैसा समाज था, छोटा वर्ग-बड़ा वर्ग,छोटी जात-बड़ी जात, छोटे की किस्मत में गन्दा पानी, बड़े के कब्जे में साफ पानी। बुल शिट द सोसाइटी।” अंग्रेजी मे उसने समाज को गाली दी।
असहज अवस्था मे ही उसने किताब से नजर उठायी और अगल-बगल, आमने-सामने देखने लगा। युवक ने सामने की सीट पर नजर डाली तो उसे एक दम झटका लगा। अरे ये स्त्री तो बिल्कुल गंगी जैसी लगती है और पुरूष भी हू-बहु जोखू दिखाई जान पड़ता है। हां इनके पास एक बच्चा भी है। शुक्र है रेल का जिसमे लोग जाति नही पूछते। साथ बैठ सकते हैं, पास खा सकते हैं, किसी को किसी की जाति से मतलब नही। ऐसा ही चाहिए समाज।युवक थोड़ा सहज हुआ।
रेलगाड़ी एक स्टेशन पर रुकी, युवक ने नीचे उतर कर बोतल बंद पानी खरीदा।
जोखू जैसे दिखने वाले पुरूष ने भी सार्वजनिक पियाऊ से बोतल में पानी भरा और वापिस ट्रेन में आ कर बैठ गया। ट्रेन चल पड़ी। बच्चे ने पानी का घूंट भरा और थूक दिया- गन्दा है ये पानी, इतना गर्म, मैं नही पी सकता , बच्चे ने हिकारत से पानी की बोतल पिता को थमा दी।
अभिजात्य वर्ग के युवक ने सरकार को गाली दी, “बुल शिट द गवर्नमेंट” औऱ बोतल बन्द ठंडे पानी के छोटे छोटे घूंट भरने लगा। समाज की विषमताएं पढ़ने के लिए उसने फिर से किताब खोल ली।
वीरेंदर भाटिया
हरियाणा