सतह की धूप
नीरजा फूले नहीं समा रही थी। चारों तरफ बधाईयों का तांता लगा हुआ था। ममी – पापा उसे गले लगा के बैठे थे। पूरे जिले में सबसे अच्छे नम्बर लाकर वह पास हुई थी बारहवीं क्लास में। टेबल पर लड्डू के डिब्बे रखे थे। किसी ने गले में गेंदे की माला डाल दी थीं। उसकी मुस्कान का ओर-छोर ही नहीं था।
पापा ओवरसियर, मां टीचर, इकलौती बेटी। लाड़ प्यार की कोई कमी नहीं थी। पढ़ने में अच्छी होने से हर जगह एक विशिष्ट जगह मिल जाती थी। परिवार में ‘नीरजा को देखो’ नारे लगाने वाले बड़े मां-बाप थे। आज वह कुछ नहीं सोच रही थी। बस आगे भी इसी तरह पढ़ती रहे।
पापा मेडिकल में भेजना चाहते हैं। नम्बर तो अच्छे आए हैं लेकिन उतने भी नहीं कि सरकारी कॉलेज मिले। बहुत जगह खंगाल ली। बहुत नेट देख लिया। सभी प्राइवेट कॉलेज हैं अब। फीस भी बहुत लेकिन ढंग की जगह तो मिले। नीरजा ने कहा भी कि अगले साल देख लेंगे। शायद जगह मिल जाएगी। लेकिन पापा को जिद कि इस साल ही सही है। अगले साल का कोई भरोसा नहीं। नियम बदलते रहते हैं।
तभी उनकी मुलाकात हुई कुष्णमूर्ति से। गहरा रंग, काले बाल, काली बड़ी मूंछें। कहा कि एडमिशन वो दिलवा देगा, अच्छी जगह। थोड़ा खाना-खर्चा मांगता है। पापा ने बात की होगी, फिर कल आता हूं, कहकर निकल आए। शायद कोई भारी भरकम रकम की बात होगी। आजकल तो हर चीज की कीमत है। नीरजा को बुरा लग रहा था कि पापा उसके कारण परेशान हो रहे हैं। दस बारह लाख तो वो तैयार हैं। फिर हर साल फीस, आना-जाना, होस्टल। सब मिलाकर बजट के बहुत बाहर। इस दिन के लिए तो कुछ पूंजी जमा की, कुछ हेरा-फेरी भी की पर शायद वह इतना भी नहीं था। अभी जिस स्थान पर वो बैठे हैं, वहां तो कुछ भी प्राप्त नहीं है। पापा परेशान हैं कि कैसे होगा। कृष्णमूर्ति मोलभाव को तैयार है लेकिन इतना भी कीमत कम नहीं करेगा। पापा डरे हुए हैं। नीरजा को भी बिल्कुल अच्छा नहीं लगता है। कच्ची बुनियाद पर घर बने, तो खंडहर ही बनेगा न। फिर ऐसी पढ़ाई, जिसमें लोगों की औनी-पौनी निगाहों का सामना करना पड़ेगा। तब भी एक लालच ने सिर उठा रखा है। क्या हर्ज है, सब करते हैं। मन को समझा रहे हैं पापा और ऊंचा बोलकर नीरजा को भी। आजकल पैसे का खेल है सब। सब करते हैं, और कुछ कानून के बाहर भी नहीं है। कृष्णमूर्ति बस इंतजाम कर देगा। नीरजा को स्कूल की प्रिंसीपल सिस्टर मारिया की याद आई। उनका कहना था कि अपनी सोच को हमेशा सकारात्मक रखो। मन को कहीं हारने मत दो। और अगर मन का ना हो तो, उदास मत हो। अगर अपनी समस्या उनसे कहें तो उनकी क्या सलाह होगी। यही न कि शुरुआत अगर अच्छी ना हो तो उसे फिर से शुरु करना ठीक है। रकम छोटी भी हुई तो क्या खामियाजा बहुत बड़ा है। इससे तो अच्छा होगा कि वो अपने सपनों को ही भूल जाए। नीरजा पापा को कह देगी कि वो कृष्णमूर्ति के जाल में न आएं। वह अगले साल फिर आएगी अच्छी तैयारियों के साथ। सतह की धूप ने बीज अंकुरित कर दिए हैं। सूरजमुखी की तरह वह चमक कर बाहर निकलेगी। जो धूप की तरह देखता है, उसे कभी छाया नहीं देखनी पड़ती।
डॉ. अमिता प्रसाद