फूल का इंतजार

फूल का इंतजार

आज फूल के कदम जमीन पर नहीं पड़ रहे थे | मिट्टी और ईट के उसके कच्चे पक्के घर में खुशियाँ इस तरह उतर आईं थीं | मानो सितारों की जगमगाहट उतर कर जमीन पर आ गई हो | हमेशा चिढ़ी सी रहने वाली दादी ने भी आज उसके गाल को चूमकर प्यार किया |अम्मा से भी आज अच्छे से बोल रही थी दादी | फूल को तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यह वही दादी है जो हर वक्त अम्मा से बिना बात नाराज ही नजर आती है | अम्मा का चेहरा आज कितना खिला खिला नजर आ रहा है |हमेशा चुपचाप सी रहने वाली अम्मा आज चिड़िया सी चहक रही है | खुश रहे अम्मा यही तो फूल चाहती है | पाठशाला जाते समय रोज टील्हे पर नजर आने वाले शिव जी के मंदिर की ओर देख मन्नत मांगती है फूल कि अम्मा के आँखों से आँसू न गिरे | नन्ही फूल सब समझती है कि बाबू के वहाँ नहीं रहने से अम्मा सारे कामों मे कितनी अकेली हो गई है | दादी भी बात बिना बात अम्मा को कुछ न कुछ कड़वा बोलती रहती हैं |

पहले बाबू उन सबके साथ गाँव में ही रहते थे | तब कितने सुहाने दिन थे | बाबू खेत पर खूब मेहनत करते थे |वो और अम्मा दिन का खाना उनको खेत पर पहुँचाने जाते | फिर वहीं मेड़ पर बैठ तीनो खाना खाते थे | तब दादी भी वैसी चिड़चिड़ी नहीं थी | शाम को जब बाबू खेत से घर को लौटते तब अम्मा गरम गरम भात पकाती | फूल बाबू की गोदी में बैठ उनकी ही थाली में साथ साथ खाना खाती थी | अम्मा कितना भी आँख दिखाती उसे, झिड़कती…. कहती ,,,,अरी बाबरी जरा बाबू को चैन से खाना तो खाने दे | तब बाबू हँसते हुये कहते
क्यों जी… हम बाप बेटी एक्के थारी में खाना खाते हैं तो तोहरा काहे जलन होत है …
ले, एक- दू कौर तू भी हमरे साथ खा ले ……
बाबू एक कौर अम्मा को खिलाने को हाथ बढ़ाते तो अम्मा छिटक कर भागती | आंचल को होंठ से दबा हंसने लगती | कितने सुंदर दिन थे | फूल की आँखें भर आई | फिर उसी साल सूखा पड़ा | बरसा एकदम नहीं हुई | बाबू हताश से राम शरण काका का पंप सेट उधार माँगने गए थे | फूल भी बाबू की उंगली पकड़े पकड़े संग गई थी| रामशरण काका ने जो प्रति दिन के पैसे बताए थे पम्प सेट देने के वो बहुत अधिक थे| बाबू ने पैसे कम करने की बहुत मिन्नतें की थी पर काका तो लगातार यही कहते रहे “अरे भोलूया ई तो हम कम कीमत बोल रहे| लोग तो ई सूखा में ऊंचा दाम दे देकर ले जा रहे| खेत में पानी पटेगा तभी तो जिंदा रहोगे!”
बाबू कितने चिंतित से घर लौटे थे| वह पूछती रही बाबू क्या हुआ, कुछ तो बोलो, तो बाबू यही बोले थे कि
हम किसान लोगों के लिए खेत-फसल हमारी माय बाप है बुचिया,वही हमको अन्न जीवन सब कुछ देती है …फसल कैसी सूखी जा रही है जब वो बचेगी तभी हम बचेंगे। पर हम इतना पैसा कहाँ से जुगाडें रे?’
घर पहुँच कर बाबू चुपचाप सो गए थे। सब कितने उदास थे उस दिन। अब खेत में पानी कैसे पटेगा? दादी का बड़बड़ाना उसे याद है
कइसे उपजाएगा अब साल भर का धान? ई माय-बेटी को तो घड़ी घड़ी भूखे लगत रहत है। खाली अन्न भकोसती है। अब दोनों को ….
अम्मा रो पड़ी थी। फूल को घर में ये मुर्दांगी पसंद नहीं थी। उसने भगवान से कितनी मिन्नतें भी की थी कि अबकी बार बारिश दे दो भगवान। अम्मा बाबू की तकलीफ कम कर दो। भगवान तो बच्चों की सुनते हैं , अम्मा ऐसा कहती है। पर शायद बारिश भगवान जी से भी रूठी हुई थी |

अम्मा ने अपनी कानों की बाली बाबू को दे दिया था और कहा इसे बेच दो |खेत और फसल बचना बहुत जरूरी है | फूल को याद है तब बाबू कितना रोये थे | बोलते ही जा रहे थे
तेरे गहने कैसे बेचूँ ….|कभी बनवाया तो नहीं…. आज बेच दूँ किस मुंह से इसे…., किस हक़ से ….
अम्मा भी सुबुकने लगी थी …तभी दादी ने अपने गले से चाँदी का हँसुली उतार कर बाबू के हाथ में थमा दिया था और कहा कि
इससे पैसे का जुगाड़ कर ले …. दुल्हन के कान की बालियाँ ना ले… उसके नैहर की निशानी है….ई हँसुली को हम फूल को उसके बिहा में अपनी निशानी के तौर पर देने के लिए रखें हुये थे …..
फूल चौक गई थी …..उसका बिहा ?? उसे शरम आने लगी थी …..वह मन ही मन सोचने लगी कि वह बड़ी हो गले में वो हँसुली पहन कैसी दिखेगी ….दादी जैसी …ना ना वो तो अम्मा जैसी दिखना चाहती है | भोली और हँसती रहने वाली …पर वह खूब पढ़ेगी …अम्मा की तरह चौथी तक पढ़ पढ़ाई नहीं छोड़ेगी ….पर वह दिखेगी अपनी अम्मा जैसी …..
एकाएक दादी के आवाज से फूल मानों नींद से जागी | बाबू, दादी से लिपट रो पड़े थे | दादी चुपचाप उनके सिर पर हाथ फेरती जा रही थीं
का करबे रे….हम किसान के यही व्यथा कथा है बबुआ …..बहुते पानी बरसा तो दुख….. कम बरसा तो दुख …..ई बारिश हर हाले दुखे देता है हम किसान के ……

उस साल खेत में फसलें तो बच गई थीं पर बाबू हमेशा दादी की हँसुली वापस लाने की चिंता में रहते | उनको अच्छा नहीं लगता था कि बेटे के रहते माँ के एकमात्र गहने से उनका गला महरूम रहे | और फिर बाबू ने एक दिन तय कर लिया और गाँव के लोगो की एक टोली के साथ निकाल पड़े | बाबू ने खेत पड़ोस के ही लखन चाचा के हवाले कर दिया था |उस दिन फूल दिन भर घर के आगे के अपनी छोटी सी फूलवारी मे ही बैठी रही थी | अम्मा के बुलाने पर भी अंदर नहीं गई थी | उसे अम्मा का बाबू के बड़े शहर जाने की तैयारी करते देखना अच्छा नहीं लग रहा था | वह अनमनी सी अपने घर की मिट्टी की सीढ़ियों पर बैठी रही |फिर बाबू उसके बगल में आ बैठे थे |
तू तो हमरी हिम्मत है री, ऐसे करेगी तो हम कैसे जा पायेगे ….बोल तो …
तुम वापस कब लौटोगे बाबू ?
बगिया मे जो एकलौता आम का पेड़ है ना …. इस साल इसका फल तू माँ बेटी गाँव मे बांटना ….अगले बरस जब आम आएगा तो मैं सबको खुद बाँटूँगा ….ई पक्का वायदा है तुझसे ….. तब तक तुम्हारा बाबू जरूर घर लौट आएगा ……
आगे फिर फूल ने कुछ नहीं पूछा था …….
सूने काटते घर में सभी सप्ताह भर तक औंधे मुंह पड़े रहे थे | फूल को बाबू के बिना घर एकदम अच्छा नहीं लगता था |अम्मा की आंखें हमेशा नम सी रहती ….गीली गीली सी ..पर उसे समझाती भी रहती ….
पैसा जुटाना जरूरी है बचिया….बाबू तो पैसा ही कमाने न गए है रे….जब पैसा एकठ्ठा हो जाएगा तो हम एक पम्प सेट खरीद लेंगे | दादी का हँसुली भी तो वापस लाना है …उ तुमको बिहा में देंगी ना …..अम्मा हँसती तो फूल शर्मा जाती ….
फिर बाबू साथ ही रहने लगेंगे न अम्मा….
हाँ री …अब मन उदास मत कर …साल दो साल की तो बात है ….फूल माँ की बाते सुन खुश हो जाती थी |
वह बाबू को गए कितने दिन बीते, जोड़ती रहती और एक पतली सी कॉपी में लिखती रहती | अब वह अम्मा का जरा भी जी नहीं दुखाती थी | पाठशाला भी समय से जाती | पर अगर बाबू के बगैर शांत घर उसे काटने दौड़ता है तो वो क्या करे ??

बाबू के गए चार महीने बीते थे |एक रात अम्मा की तबियत बहुत खराब हो गई थी |ग्गंव भर की महिलाएं घर पर आ जुटी थीं |फूल कितनी डर गई थी| दादी भी नजर नहीं आ रही थी | सीता चाची ने उसे खाना खिलाया और सिर पर थपकी दे कर सुला दिया था …हंस कर .कहा …..तेरी अम्मा ठीक हो जाएगी बिटिया, चिंता न कर ….
सुबह सुबह फूल को पता चला कि उसकी एक नन्ही सी बहन आई है | फूल नाच उठी थी पर दादी जाने क्यों मुंह फुलाए बैठी रही थी| फूल ने तुरंत उसका नाम रखा था …”बेला” ….अब सबके दिन और रात बेला के अनुसार ही होते थे |बाबू के पीछे दिन कटते जा रहे थे ……..
बाबू ने डाक से एक दिन कुछ भेजा था | बगल के रमेश भैया ने बताया था कि ई तो मोबाइल है |अब आपलोग भोला चाचा से बात कर सकते हैं | उसे याद है कितने दिन बाद उन सबने बाबू की आवाज सुनी थी | वो और अम्मा हंस भी रहे थे और रो भी रहे थे |बाबू उस दूर शहर से पैसे भी कभी कभी भेजते | अम्मा, दादी के हाथ पैसा थमा देती पर दादी वापस उसे ही पकड़ा देती और ठीक से रखने बोलती |कभी कभी फूल को पम्पसेट के कीमती होने पर गुस्सा आता ….जाने कितना महंगा है कि उसके बाबू को इतने दिन बाहर रहना पड़ा | पर आज खुशियों के वापस लौटने की सूचना है क्योंकि आज बाबू के आने की सूचना है |

बालों में रिबन गूँथ फूल घर के दरवाजे पर अपनी मिट्टी की सीढ़ियों पर बैठ गई और गोद में बैठी बेला से बातें करने लगी अब तू भी बाबू को देख सकेगी…. हम सब फिर खेत पर चलेंगे और वही मेड़ पर रोटी भी खाएँगे |अब बाबू भी संग रहेंगे बेला ……जब पम्पसेट आ जायेगा तो बाबू फिर किसान हो जाएंगे हमेशा के लिए…..मैं बाबू से कहूँगी जिसे जरूरत हो पंप सेट मुफ्त में दे दें ताकि किसी भी किसान को मजदूर न बनना पड़े बाबू की तरह …फलों से लदा आम का पेड़ शीतल बहती हवा के झोंकों में झूम रहा था ….समझदार फूल और समझदार हो गई थी ….फूल का इंतजार खत्म होने वाला था ….

रानी सुमिता
पटना ,बिहार

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