विषाद
बड़ी मुश्किल से वीजा मिला था – तीन महीनों के लिए। स्टुडेंट एक्सचेंज प्रोग्राम में। ऑक्सफोर्ड की बात ही अलग है। तीन महीने काम, फिर एक महीने के लिए रश्मि आ जाएगी और वो थोड़ा घूम लेंगे। इंग्लैंड जाने का उसका बहुत पुराना सपना था और वह किसी भी तरह उसको हासिल करना चाहता था।गरीब घर का बेटा। पैसे जोड़कर बापू जी ने यूनिवर्सिटी पहुंचा दिया। कुछ स्कॉलरशिप, कुछ ट्यूशन – निकल ही गया। पूरी यूनिवर्सिटी चार कपड़ों में काट दी, दो काली पैंट, दो नीली शर्ट। लेकिन पी.एच.डी. करते ही रिसर्च एसोसिएट की नौकरी मिल गई। बापू जी ने लगे हाथ शादी भी कर दी। रश्मि भी पढ़ाती है जर्नलिज्म | शायद सुख के दिन आने वाले थे। बापू जी भी इंग्लैंड जाने के नाम से पूरे मुहल्ले में तीन चक्कर लगाकर बता आए थे। वैसे तो अब
सभी घरों में कोई न कोई बाहर हैं – दुबई, सिंगापुर और कुछ नही तो चेन्नई,बंगलोर।तीन महीने खत्म होने में बीस दिन बचे हैं। रश्मि बहुत ही खुश है। वीजा मिल गया है। रोज घूमने का प्रोग्राम बनता है। बातें होने से दूरी का एहसास नहीं होता। नेट पर देखकर पूरा प्रोग्राम बन गया है और अचानक अब रश्मि नहीं आ रही है। सारी हवाई यात्राएं बंद। आना-जाना, मिलना-जुलना बंद। लोगों
का बाहर निकलना बंद। एक उदासी ने जैसे उसकों कम्बल की तरह चारों तरफ से लपेट लिया। एक छोटे से कमरे में बैठकर उसका जी खराब होने लगा।अगर बाहर की किसी बात से पीड़ा है, तो वह पीड़ा हमारी अपनी बनाई हुई है।हम उस अवसाद को सोचते हैं और फिर उसी में घुलते हैं। उससे बचने के लिए भी अपने मन का सहारा लेना पड़ता है, उसे समझना पड़ता है। वो जितना भी सोचता कि इस स्थिति से कैसे निकले,वो सोच उसको उतना ही जकड़ती जा रही थी। छोटे कमरे की छोटी परिधि में वो सोच रहा था कि क्या जल्दी कुछ बदलाव होगा। कमरे की दीवार छत भी कितनी सपाट है। इंडिया में हमारे घर में कम-से-कम एक छिपकली तो साथ देने आ ही जाती है। रश्मि उसे फिर से समझा रही थी। करीब चालीस हजार लोग तुम्हारी स्थिति में हैं। तुम्हें क्या तकलीफ है? बाहर निकलो, खाना बनाओ, गाने सुनो। रश्मि की बात का जवाब देना बंद कर दिया। फोन एक दिन स्विच ऑफ कर दिया। अगले दिन बदहवास रश्मि ने कहा कि तुम इस पीड़ा से खुद ही निकल सकते हो। बड़ी मिन्नतों के बाद उसने डॉक्टर के साथ संपर्क किया।डॉक्टर की गोलियों से बेचैनी तो कम हो गई लेकिन एक दूसरी बेचैनी उसे चारों तरफ से घेरने लगी। कुछ समय ऐसे होते हैं जब कोई भी बात आपकी सहायता नहीं कर पाती है। रश्मि बार-बार उसे हौसला देती रहती थी। आप मजबूत हो। ये दिन कट जाएंगे।फिर एक दिन फोन आया । इंडियन एम्बेसी से। आप का नाम रजिस्टर कर लिया गया है।ऐसा लगा कि ऐसी अमृतवाणी तो उसने वर्षों से नहीं सुनी थी। शायद सभी अंधेरे छनते हैं। एक विषाद उसको फिर से घेर रहा था। अगर कुछ गड़बड़ हुई तो वह यहीं गुमनाम रह जाएगा। अपने मन के अनुसार सब कुछ नहीं होता,रश्मि उसे बार-बार ई-मेल पर समझा रही थी। तुम हमारे अपने भविष्य का सोचो। अपनी छाया से निकलो और प्रकाश को देखो। पूरे छह हफ्ते इंतजार
करने के बाद आज हवाई अड्डे पर है वो। इस पीड़ा की घड़ी से वो निकल गया है। जिंदगी में कभी भी विषाद को आशा पर हावी ना होने दो-मन ही मन यह मंत्र गुनगुनाता हुआ, हवाई जहाज में बैठ चुका है। उसने अपनी स्थिति
के ऊपर हौसले को स्वीकार कर लिया था, तभी मन के जंगल से आज निकल पाया।
डॉ. अमिता प्रसाद