बढ़ती जनसंख्या परेशानी का सबब

बढ़ती जनसंख्या परेशानी का सबब

ग्यारह जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस के रूप में मनाया जाता है।इसको मनाने का उद्देश्य बढ़ती जनसंख्या के प्रति ध्यान खींचना है और लोगों को जागरूक बनाना है।आज पूरे विश्व में हर सेकेण्ड में चार बच्चों का जन्म होता है जबकि मृत्यु दर इसकी आधी है।अगर जनसंख्या इसी दर से बढ़ती रही तो पृथ्वी का अस्तित्व खतरे में आ जायेगा। निरंतर प्रगति के लिए जनसंख्या का स्थिर रहना नितांत आवश्यक है।

अगर हम अपने देश के संदर्भ में बात करें तो हमारा देश संसार में जनसंख्या के आधार पर चीन के बाद दूसरे स्थान पर है पर अगर हमारे देश में जनसंख्या बढ़ने की दर यही रही तो हम सन 2050 तक चीन को पछाड़ देंगे। हमें जनसंख्या वृद्धि पर अंकुश लगाने की दिशा में तेज़ी से काम करना होगा। जनसंख्या वृद्धि के दुष्प्रभाव हमें विभिन्न रुपों में दिखाई देते हैं: जैसे कुपोषण, रहन-सहन के स्तर में कमी, आवासीय क्षेत्रों की कमी, बेरोजगारी की समस्या, प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन, पर्यावरण की समस्या, अपराध का बढ़ना ,कृषि योग्य भूमि का कम होना, ऊर्जा की कमी ,औद्योगिक विकास में कमी आदि।

बहुत से लोग यह सुझाव देते हैं की सरकार को जनसंख्या नियंत्रण करने के लिए सख्त कानून बना देना चाहिए ।दो से ज़्यादा बच्चे होने पर उन्हें मिलने वाली सुविधाओं से वंचित कर देना चाहिए ।उन्हें सरकारी नौकरी भी नहीं मिलनी चाहिए। पर मेरा ऐसा मानना है कि ज़ोर ज़बरदस्ती से कोई काम नहीं करवाया जा सकता है। वैसे भी हमारे यहां लोकतंत्र है ।सरकार देशहित में ऐसे फैसले ले भी ले तो जनता अगले चुनाव में सरकार को उखाड़ देगी और आने वाली सरकार वोट के चक्कर में ऐसे कदमों पर रोक लगा देगी। कोई फायदा नहीं होगा।
सबसे ज़्यादा ज़रूरी हमें लोगों को जागरूक बनाना होगा ।हमें उन्हें कम जनसंख्या के लाभ और ज़्यादा जनसंख्या के दुष्परिणाम समझाने होंगे ।जब लोग खुद ही जनसंख्या को कम करने के पक्ष में होंगे तभी इसका रिज़ल्ट शानदार होगा ।इसके लिए हमें लोगों को शिक्षित करना होगा क्योंकि अशिक्षित होने की वजह से लोग रूढ़िवादी एवं अंधविश्वासी होने के कारण परिवार नियोजन को नहीं अपनाते हैं ।सरकार को भी परिवार नियोजन के साधन बहुत सस्ते में उपलब्ध कराने चाहिए तथा इनका प्रचार भी खूब करना चाहिए। प्राथमिक शिक्षा के स्तर से ही जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणाम को बच्चों को पढ़ाना चाहिए तथा किशोरावस्था में उन्हें परिवार नियोजन से संबंधित जानकारी उपलब्ध करानी चाहिए।

अज्ञानतावश भी लोग यह सोचते हैं कि घर में जितने ज़्यादा बच्चे होंगे उतने ही आगे चलकर कमाने वाले होंगे इस सोच के कारण भी जनसंख्या में वृद्धि होती रहती है। जबकि ज़्यादा बच्चों के होने से ना तो उनके खाने पर अच्छे से ध्यान दिया जाता है ना पढ़ाई पर।वो कुपोषण का शिकार हो जाते हैं और अनेकों बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं। कोई फायदा नहीं होता। गरीब और गरीब होता जाता है।

हमारे देश में जनसंख्या वृद्धि का एक मुख्य कारण लड़कियों की अपेक्षा ,लड़कों को ज़्यादा महत्व देना है ।लड़के के चक्कर में कितनी ही लड़कियां हो जाती हैं और यह जनसंख्या वृद्धि में योगदान करती है। लेकिन अब लड़कियां किसी से कम नहीं हैं अब वो जहां अपने मां बाप का अंतिम संस्कार भी कर लेती हैं, वहीं उनके बुढ़ापे की लाठी बनने को भी तैयार हैं इसलिए अब लड़के लड़कियों में कोई फर्क नहीं समझना चाहिए। अगर लोगों का लड़कियों के प्रति नज़रिया बदल जाए तो जनसंख्या वृद्धि रोकने में बहुत सहायता मिलेगी।

हमारे देश के पिछड़े इलाकों में जहां मनोरंजन के साधन उपलब्ध नहीं है वहां पर स्त्री पुरुष संबंध ही मनोरंजन का एकमात्र साधन है और उसका नतीजा जनसंख्या वृद्धि के रूप में होता है। अतः सरकार को मनोरंजन के साधनों के साथ साथ विवाह की न्यूनतम आयु में भी वृद्धि करनी चाहिए।

बहुत संक्षेप में कहूं तो अपनी रूढ़िवादी सोच बदलकर और देश हित में सोचने पर हम जनसंख्या पर नियंत्रण पा सकते हैं, नहीं तो वो दिन भी दूर नहीं जब मानव ,मानव को ही खाने पर मजबूर होगा।

वन्दना भटनागर
मुज़फ्फरनगर

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