जीते भारतवर्ष

जीते भारतवर्ष

बेटे की शहादत पर गर्व के साथ-साथ… दुःख और दर्द के अथाह सागर में डूबा परिवार,
बहुत आक्रोशित है हर हाल में लेना चाहता है बदला दुश्मन देश से….
लेकिन फ़िर भी उस परिवार का पिता नहीं चाहता है वो युद्ध
वो नहीं चाहता किसी और पिता के कंधों को सहना पड़े जवान बेटे की अर्थी देने का दर्द…..

उस घर की माँ नहीं चाहती है युद्ध
वो नहीं चाहती किसी और माँ की
गोद हो जाए सुनी जीवन के आखिरी पलों तक सिसकती रहे बूढ़ी आँखे…..

उस घर की बहन भी नही चाहती युद्ध,.. वो नहीं चाहती उसकी तरह कोई और बहन..
भाई की कलाई की जगह
भाई के माला चढ़े तस्वीर को राखी बाँधते हुए लिपट कर रोए हर सावन……

उन शहीद की पत्नी भी नहीं चाहती युद्ध… वो नहीं चाहती
किसी और के मांग सिंदूर विहीन हो जाए वो नहीं चाहती कि किसी और सुहागन की लाल चुनरी सफ़ेद हो जाए वो नहीं चाहती कि कोई और कभी ना ख़त्म होने वाले प्रतीक्षा की पीड़ा सहे…

उस घर का बच्चा भी नही चाहता
युद्ध…. वो बच्चा नहीं चाहता किसी और बच्चे के हाथ पकड़ कर करवायी जाए उनके शहीद पिता का अंतिम संस्कार….
हाँ वो बच्चा नहीं चाहता कि होश संभालते ही उनको परिचय कराया जाए एक हार चढ़े तस्वीर से कि ये तुम्हारे पिता है….

वो गाँव भी नही चाहता युद्ध,
जिस गाँव के सत्तर बेटे, सीमा पर तैनात है, दुश्मनों के दांत खट्टे करने के लिए.. वो गाँव भी चाहता है सारे विवाद निपट जाए शांति पूर्वक……

हाँ ये सब नहीं चाहते युद्ध…. फ़िर भी चाहते हैं
ग़र अटल हो युद्ध तो युद्ध में हो
शहादत अगर हमारे सिपाही तो
फ़िर “जीत” हो हमारे भारत ही
हाँ है इनकी शर्त यही.. हो युद्ध तो…जीते भारतवर्ष ही……..

अनिता वर्मा
भिलाई ,छत्तीसगढ़

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