गुरू एक पथ प्रदर्शक
वैदिक काल से शुरू हुआ
गुरूकुल का प्रचलन हुआ
आवश्यक है गुरू सानिध्य
गुरू का हो सुंदर आशीष
संसार के हर उत्तम कर्म
ज्ञान औ विद्या होये संगम
जन्म लेता है मानव शिशु
माता पिता पाये औ सीखे
सांसारिकता का ज्ञान मिले
पर बिन गुरू ना दिशा मिले
अक्षर ज्ञान से शुरू हो शिक्षा
बरसों संयम से निर्माण करे
नियम व्यवहार और लगन
विद्यार्थी में गुरू ही देखे
अनुभवी गुरू समझे प्रतिभा
और उसका है सम्मान करे
विचलित जो छात्र शिक्षा
संवारने का प्रयत्न करे
स्वपन देखे वो है हरपल
प्रेरणा दे तू ना हार कहे
उचित संस्कृति उद्देश्य रहे
भटकन हो जब भी जीवन
गहे हस्त मन का तड़पन
होये गुरू एक पथ प्रदर्शक !
डॉ आशा गुप्ता ‘श्रेया’