सिर्फ पूजा नहीं स्वच्छता भी जरूरी
आज गुरु पूर्णिमा है। गुरु यानी आध्यात्मिक गुरु, फिजिक्स या अलजबरा सिखाने वाला गुरु नहीं। भारतीय अध्यात्म में दर्शन का बहुत महत्व है। दर्शन का अर्थ है दिव्यत्व की एक झलक पाना। कहते हैं गुरु या मंदिर की मूर्ति का एक दर्शन भी शिष्य को पवित्र कर देता है। लेकिन आश्चर्य है कि यह दर्शन सिर्फ मूर्तियों तक सीमित रहता है। मंदिर के बाहर जैसे लोगों की दर्शन की क्षमता विलीन हो जाती है। ऐसा न होता तो मंदिरों के पवित्र स्थानों के परिसर इतनी गंदगी से भरे नहीं होते।
सामाजिक गंदगी अब भारतीयता का हिस्सा हो गई है, इतनी अधिक कि हमें दिखाई ही नहीं देती। विशेष कर साफ-सुथरे पश्चिमी देशों की यात्रा कर आप जब अपने देश वापस आते हैं तो सबसे पहले स्वागत करते हैं यहां के कचरे के ढेर। एयरपोर्ट से निकलते ही सड़कों पर, बाजार में हर गली-कूचे में कचरा ही कचरा। और धार्मिक स्थानों में तो गंदगी का निरंकुश साम्राज्य होता है। यह कचरा किसी और ने नहीं बल्कि तथाकथित श्रद्धालुओं ने ही फैलाया होता है। यह गंदगी सबसे ज्यादा पीड़ा देती है क्योंकि यह उस परिसर में होती है जिसे लोग पवित्र स्थान मानते हैं। जितना बड़ा मंदिर उतना अधिक कचरा।
मंदिर के अंदर जो देवता हैं, उनके लिए तो बहुत जतन से साज-सिंगार किया जाता है। उन्हें दूध से धोया जाता है, सोने और हीरे के आभूषण पहनाए जाते हैं लेकिन मंदिर के बाहर जो कुछ होता है उसके प्रति उन्हीं श्रद्धालुओं की घोर उपेक्षा समझ में नहीं आती। मंदिर बनाने में जितना धन खर्च किया जाता है उससे बहुत कम पैसों में मंदिरों के आसपास की सफाई की जा सकती है और सफाई कोई दूसरा नहीं करेगा भक्तों पर ही यह बंधन लगाया जाए कि दर्शन के बाद अपना कचरा खुद उठाकर ले जाएं। लेकिन हमारी धार्मिक भावनाओं में सफाई के लिए कोई स्थान नहीं है। लोगों की धार्मिकता कर्मकांड और पूजापाठ तक ही सीमित रहती है। यह धार्मिकता रोजमर्रा की जिंदगी में नहीं दिखाई देती।
विदेशी मुल्कों से आए हुए सैलानी यह देखकर बहुत हैरान होते हैं कि लोगों के धार्मिक भाव और उनके निजी जीवन में इतना बड़ा फर्क क्यों है। वर्षों पहले एक विदेशी पर्यटक के संस्मरण को पढ़ रहा था जिसमे उस विदेशी पर्यटक ने एक जगह बड़ा ही वाजिब प्रश्न अपने संस्मरण के माध्यम से उठाया था कि भारतीय दर्शन के अनुसार हर चीज में परमात्मा के दर्शन किए जाते हैं फिर लोग कचरे में उन्हें क्यों नहीं देखते? उन्होंने एक दुखती रग को छू लिया था। आखिर हमारी धार्मिक भावना में स्वच्छता का महत्व क्यों नहीं है? हम मानकर चलते हैं कि हमारी धार्मिकता का कचरा कोई और निचले श्रेणी के लोग साफ करेंगे।
देहरादून में एक संस्था है वेस्ट वॉरियर्स यानी कचरे के योद्धा। यह संस्था एक अंग्रेज महिला चलाती है जिसका नाम है जोडी अंडरहिल। यह एक एनजीओ यानी गैर सरकारी संस्था है जिसके सदस्य धार्मिक स्थानों के बाहर बिखरा हुआ कचरा उठाने का काम करते हैं। उनके हाथ में विशाल थैले होते हैं और उनमें वे उस कचरे को उठाकर डालते हैं जो भक्तगणों ने फेंका हुआ होता है। एक टीवी चैनल से बात करते हुए जोडी ने कहा भारत में सामाजिक स्थानों पर पड़े कचरे का अंबार देखकर मेरा दिल टूटता है। मैं इसे बिलकुल देख नहीं सकती। इसलिए पहले मैंने अकेले ही कचरा उठाना शुरू किया, बाद में मेरे जैसे कई लोग इसमें जुड़ गए हैं।
कैसी विडंबना है कि एक अभारतीय महिला आकर हमारे देश में नि:संकोच सफाई का काम कर रही है और हम चुपचाप देख रहे हैं। गुरु पूर्णिमा पर यह सवाल उठता है कि हमारे अनेक गुरु हमें बहुत कुछ सिखाते हैं पर क्या कोई ऐसा गुरु होगा जो हमें सफाई के प्रति जागरूक करे? जो हमें धार्मिक स्थलों को साफ करना सिखाए।
डॉ नीरज कृष्ण