विजयी भारत

विजयी भारत

“ह्रदय का ज्वार सड़कों पर फबेगा,
कफन को बाँध सीने पर कहेगा।
मचाने और बकंर सब हटा दो,
किधर तोपें लगी हैं, यह भी तो बता दो।
हमें सहना नहीं है, ये है ठाना,
नहीं दबने का हासिल कुछ है ,जाना।
तो अब रण हो रहेगा और अब ही,
है शोणित तो बहेगा और अब ही,
उजाला आगे बढ़ छाती चढ़ेगा
वो किरणों से तमस का वध करेगा।”

अभिनव वरुण की उपर्युक्त पंक्तियाँ वे शब्द सुमन हैं जो गत 15 जून ,2020 की रात को लद्दाख के गलबान घाटी में पॉइंट 14 पर शहीद हुए 20 भारतीय सैनिक और उनके कमांडिंग ऑफिसर ,16 बिहार रेजिमेंट के कर्नल संतोष बाबू की शहादत को समर्पित हैं । बिना किसी हथियार के घूँसा ,लाठी, पत्थर से ही हमारे वीर सैनिकों ने चीनी सैनिकों के रीढ़ और गर्दन की हड्डियाँ तोड़ डालीं और 40- 50 सैनिकों को मार गिराया । अनुशासन का दामन भी न छोड़ा और दुश्मन के खेमे में कोहराम मचा दिया। शत- शत नमन है भारत माँ के वीर पुत्रों को।

“सरहद पर हर वीर सिपाही,
डटा रहा अपने हठ पर।”

वास्तव में चीन ने लद्दाख के आसपास के क्षेत्र में पिछले मई माह से ही सैनिक गतिविधियाँ और निर्माण कार्य को बढ़ा दिया था । समस्या तब शुरू हुई, जब बफर जोन के नियमों की अवहेलना करनी शुरू कर दी गई । P 14 पर चीनी निर्माण पर भारतीय सैनिकों द्वारा आपत्ति जताने पर 6 जून, 2020 को ही स्थानीय सैन्य अधिकारी स्तर पर समझौता हो चुका था कि अस्थाई निर्माण एवं सैनिकों को हटा लिया जाएगा । 15 जून की रात की लड़ाई इसी समझौते की शर्तों को पूरा न करने के कारण हुई । इसी के बाद से दोनों देशों के बीच तनाव बना हुआ है । हलाँकि दोनों देशों की कोर कमांडर स्तर के सैन्य अधिकारियों के बीच 22 जून को लगभग 10 से 11 घंटे की बातचीत हुई जिसमें भारत की ओर से यह बता दिया गया कि चीन को एल ए सी का सम्मान करना ही होगा और अप्रैल,2020 से पूर्व की स्थिति में लौटना होगा । सचिव स्तर की भी वार्ता दोनों देशों के बीच हुई है जिसमें भारत अपनी पूर्व स्थिति को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्धता दिखा चुका है । ऐसी खबर आई कि 26 जून 2020 को P 14, P 15 और P 17 से चीनी सैनिक और उनकी गाड़ियाँ पीछे हटने लगी हैं। लेकिन चीन पर विश्वास नहीं किया जा सकता । वह एक जगह से पीछे हटता है तो दूसरी जगह अपना जमावड़ा लगाने लगता है । 26 जून , 2020 की खबरों में यह सुनाई देने लगा कि चीनी सेना डेपसाँग में जमा होने लगी है । डेपसाँग वह इलाका है, जहाँ वर्ष 2013 में भी चीन ने घुसपैठ की कोशिश की थी । चीन बातचीत के लिए खुद ही प्रस्ताव लाता है और खुद ही अलग-अलग जगहों पर अतिक्रमण की कोशिश करता है।एलएसी के पास सैटेलाइट तस्वीरों के जरिए उसकी चोरी पकड़ी जा रही है।वर्तमान अवस्था में भारत ने चीन को पूरी तरह से साध रखा है और अलग-अलग मोर्चे पर अपनी पूरी तैयारी कर रहा है ।

भारत द्वारा चीन के विरुद्ध उठाए गए कदम

इसे हम तीन शीर्षकों के अंतर्गत देखेंगे-
1- राजनयिक कदम
2- सामरिक कदम
3- आर्थिक कदम

1- राजनयिक कदम :- भारत राजनीतिक तरीकों से अपनी स्थिति मजबूत करने में लगा हुआ है । यूँ तो भारत ने दुनिया के अन्य देशों के साथ पारस्परिक संबंधों को पिछले कुछ सालों में नवनिर्मित किया है और मजबूत बनाया है। इसका फायदा आज भारत को चीन के साथ संघर्ष की स्थिति में भी प्राप्त हो रहा है। अमेरिका, जापान , इजरायल और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भारत के साथ खड़े दिख रहे हैं। इसी राजनयिक कदम के अंतर्गत भारत के रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह 75 सैन्य वीरों के साथ रूस की धरती पर “विक्ट्री परेड ” में भाग लेने के लिए गए थे। रूस और चीन की घनिष्ठता अनेक कारणों से आज की तारीख में बढ़ी है, परंतु इस घनिष्ठता के ‘बावजूद अगर रूस को यह कहना पड़ता है कि यह दोनों देशों के बीच का मामला है और दोनों देश इस मामले को सुलझाने में सक्षम है। इसमें तीसरे की उपस्थिति की आवश्यकता नहीं है। तो रूस की यह तटस्थता भारत की कूटनीतिक जीत ही है। आज हर मंच से अमेरिका चीन के खिलाफ बोल रहा है और उसके विदेश मंत्री श्री माइक पोम्पियो का यह कहना कि एशियाई देशों में चीन का खतरा बढ़ा है और यूरोप से हटाकर वह अपनी सेना को एशिया में तैनात करेगा। अमेरिकी विदेश मंत्री का यह बयान संघर्ष के इस पल में भारत के मनोबल को बढ़ाने वाला है।अमेरिका जर्मनी से अपने 25000 सैनिकों को हटा रहा है और 9000 सैनिकों को दक्षिण पूर्वी एशिया क्षेत्र में नियुक्त कर रहा है ताकि जरूरत पड़ने पर चीन का सामना किया जा सके। चीन एक ऐसा देश है जिसने अपनी साम्राज्यवादी नीतियों के कारण 15 देशों से सीमा विवाद को पाल रखा है। यूंँ भी वह हमेशा उन छोटे-छोटे देशों पर अपनी नजर गड़ाए रखता है जिनकी अर्थव्यवस्था कमजोर है ताकि वहाँ ऋण का जाल फैलाकर वह अपनी विस्तारवादी नीति को फलीभूत कर सके। नेपाल इसका ताजातरीन उदाहरण है।आज चीन अपने मूल क्षेत्रफल के 2.5 गुणा से अधिक इलाके पर गलत तरीके से कब्जा करके बैठा हुआ है।विश्व के अनेक देश जहाँ उसकी इस धूर्तता से असंतुष्ट हैं, वहीं दूसरी ओर कोरोना वायरस के मामले में उसके गैरजिम्मेदाराना हरकतों ने तो उसे दुनिया की आँखों में चुभने वाला बना दिया है। दुनिया के देश यह जानते हैं कि शांति ही भारत की शक्ति है और शक्ति की वजह से ही भारत शांत है। अपनी राजनयिक दूरदृष्टि के कारण ही भारत ने 13900 किलोमीटर में फैले पेंगाग सो लेक , जिसके 34% पर भारत का आधिपत्य है , में पर्यटन को बढ़ावा दिया है। पेंगाग लेक में पर्यटन की छूट देने से चीन बौखला गया है क्योंकि पर्यटकों को वहाँ जाने के लिए भारत सरकार और लद्दाख के डीएम से कानूनी इजाजत लेनी पड़ती है । यह तथ्य भारत के स्वामित्व के पक्ष में है। इसलिए भारत सरकार ने पेंगाग जाने के अन्य रास्तों को भी खोला है। अपने राजनयिक कदमों को दृढ़ता प्रदान करने के लिए ही विक्ट्री परेड के दौरान भारत के रक्षा मंत्री ने चीन के रक्षा मंत्री से बातचीत करना जरूरी ना समझा। इतने तनाव के बाद भी भारत के विदेश मंत्री ने चीन के विदेश मंत्री से कोई बातचीत नहीं की है। बातचीत हुई है तो केवल कोर कमांडर स्तर पर और सचिव स्तर पर। दोनों ही बैठक की मेज पर भारत ने चीन को दो टूक जवाब दे दिया गया है कि चीन को एलएसी का सम्मान करना ही होगा और 4 मई से पूर्व की स्थिति में लौटना ही होगा। कई अंतरराष्ट्रीय अखबार चीन की निंदा और भारत का समर्थन करते दिख रहे हैं।अमेरिका ने चीन के कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं के वीजा पर रोक लगा दिया है।संयुक्त राष्ट्र संघ के विशेषज्ञों ने शिनजियांग प्रांत और तिब्बत को लेकर चीन की कटु आलोचना की है।साउथ चाइना सी में चीन के बढ़ते दखल को देखकर ASEAN, जो 10 देशों का संगठन है, ने भी चीन को कड़ी चेतावनी दी है ।ये परिस्थितियाँ दुनिया के अनेक देशों को चीन के विरुद्ध लामबंद कर रही है जो भारत के हित में ही है।

2. सामरिक कदम- यूँ तो भारत लद्दाख क्षेत्र में चीन की बढ़ती गतिविधियों पर नजर रखते हुए चौकन्ना था ही, पर गलबान घाटी में हुई घटना के बाद भारत ने अपने सैनिकों की संख्या बढ़ा दी है। 45000 जवान लद्दाख में तैनात हैं। पैगांग सो झील के पास 1ः 9 के आधार पर सैनिक तैनात हैं। मतलब कि एक चीनी सैनिक पर नौ भारतीय सैनिक। आइटीबीपी के जवानों की अतिरिक्त तैनाती की जा रही है।
T_90 टैंक, भीष्म टैंक, बोफोर्स टैंक,M777 तोप दुश्मन को मुँहतोड़ जवाब देने के लिए तैयार हैं। हमारी वायु सेना भी अपनी पूरी तैयारियों के साथ चीन पर कड़ी नजर रख रही है। फुकचे,न्योमा और दौलतबेग ओल्डी एयर बेस पूरी तरह से तैयार हैं। यह दौलत बेग ओल्डी एयर बेस ही है जो चीन की आँखों में किरकिरी बन कर चुभ रहा है। 16614 फीट की ऊँचाई पर 1962 में बनी यह हवाई पट्टी दुनिया की सबसे ऊँची हवाई पट्टी है, जिससे अक्साई चीन में चीन की हर हरकत पर भारतीय सेना की नजर रहती है। एलएसी से मात्र 8 किलोमीटर दूर पूर्वोत्तर में स्थित दौलत बेग ओल्डी मतलब चीन पर भारी हमारी सेना। मिग-29, मिराज200, सुखोई 30जैसे युद्धक विमान मुस्तैद हैं तो अपाची, चिनूक हेलीकॉप्टर भी। हरक्यूलिस और C -70 ग्लोमास्टर मालवाहक विमान भी तैयार हैं, जो प्रतिकूल मौसम और अंँधेरे में भी कार्य कर सकते हैं और 70 टन क्षमता तक का वजन उठा सकते हैं। हमारी फाइटर जेट एयर सर्विलांस का काम कर रहे हैं तो पूर्वी लद्दाख में एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम “आकाश” को तैनात कर दिया गया है जो आवाज से भी 3•5 गुणा अधिक तेजी से प्रहार कर सकता है और एक साथ 40 मिसाइलों पर हमला कर सकता है।हमारी सेना को खुली छूट दे दी गई है और सामरिक स्थिति को मजबूत करने के लिए ही लद्दाख में 54 मोबाइल टावर त्वरित गति से लगाए जा रहे हैं। हमारी जल सेना भी हर परिस्थिति के लिए खुद को तैयार रखी हुई है।
आर्मी चीफ श्री मनोज मुकुंद नरवणे का दो दिवसीय लद्दाख दौरा भी सामरिक तैयारियों का ही एक हिस्सा है।वहीं रक्षामंत्री का रूस दौरा भी, जो S_400 रक्षातंत्र की खरीद और अन्य युद्धक विमानों के कल-पुरजों की त्वरित आपूर्ति के सामरिक उद्देश्य हेतु भी किया गया।

3- आर्थिक कदम- तीसरा फ्रंट आर्थिक क्षेत्र में लड़ना होगा जोकि बहुत आसान नहीं। हमारी अर्थव्यवस्था में चीन की बहुत अधिक हिस्सेदारी है। 5 : 1 के गणित पर चीन भारत का व्यापार है। मतलब कि चीन का 5 सामान हमारे देश में आता है तो हमारा केवल एक सामान चीन के बाजार में जाता है। सौर्य ऊर्जा में चीन की 90% हिस्सेदारी है। धूप हमारी, देश हमारा और फायदा चीन का। साइकिल और मोटरसाइकिल के 81% पुर्जे चीनी होते हैं। एंटीबायोटिक के क्षेत्र में 75% चीन का कब्जा है। दवा का 70% कच्चा माल चीन से आता है। आवश्यकता है, हम अपनी आत्म निर्भरता बढ़ाएँ और चीनी सामानों की घुसपैठ रोकें। 130 करोड़ जन का बाजार चीन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यह चमत्कार 1 दिन में नहीं हो सकता परंतु लंबी रणनीति हमको सफलता जरूर दिलाएगी। भारत में 25 हजार करोड़ का टेलीविजन बाजार है इसका 45% चीन के अधीन है। मतलब कि 12000 करोड रुपए की टीवी हम लोग चीन से खरीदते हैं। सजावटी बत्तियांँ, फर्नीचर, खिलौने ,प्लास्टिक, मोबाइल फोन, टीवी ही अगर हम स्वदेशी खरीदें तो चीनी बाजार पर बहुत गहरी चोट पड़ेगी।चीनी फेंगशुई का बहिष्कार बहुत जरूरी है जिसने भारत में बड़ा बाजार फैला रखा है। रेशम साड़ी उद्योग कच्चा माल के लिए चीन पर निर्भर है लेकिन बुनकरों ने फैसला किया है कि वे चीन से रेशम नहीं मगाँयेंगे। इसी तरह महाराष्ट्र सरकार ने भी एक कठोर कदम उठाते हुए चीन के 5000 करोड़ के निवेश के प्रस्ताव को स्थगित कर दिया है। सरकार विदेशों से आयातित सामानों की सूची तैयार करवा रही है और साथ ही किस सामान में कितना प्रतिशत किस देश का कच्चा माल या कलपुर्जा लग रहा है, उसकी भी। यह जनता को जागरूक करने की कोशिश है स्वदेशी के लिए। चीन पर यह प्रहार भारतीय जनता की प्रतिबद्धता ही करेगी।

अब प्रश्न यह उठता है कि पूरी दुनिया जब कोरोना वायरस से लड़ रही है , उस समय भी चीन अपनी साम्राज्यवादी नीतियों के विस्तार में क्यों लगा हुआ है?इसके पीछे जो कारण दृष्टिगत हो रहे हैं, वे निम्न हैं-
1- चीन के घरेलू हालात- शी जिनपिंग, चीन के राष्ट्रपति, खुद को महानायक के रूप में चीन में स्थापित करना चाहते हैं। कोरोनावायरस ने चीन की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर को ऋणात्मक कर दिया है, अमेरिका- यूरोप में निर्यात ठप्प हैं, करोड़ों बेरोजगार हैं, जनता कोविड -19 के निपटने के तरीकों से भी नाराज है। सोशल साइट्स पर भी प्रतिबंध असंतोष का एक कारण है। ऐसे में जिनपिंग मंदी के भंँवर की ओर से जनता का ध्यान हटाना चाहते हैं और देश को उग्र राष्ट्रवाद के मिथ्या सपने में सुला देना चाहते हैं।दुनिया के आगे अपनी दादागिरी दिखाने वाला चीन अपनी घरेलू समस्याओं से भी परेशान है।चीन का शिजियांग सूबा, कि उसे मध्य एशिया और यूरोप से जोड़ता है, मुस्लिम बहुल क्षेत्र है, उससे अलग होना चाहता है। दूसरी और तिब्बत भी आजादी की मांँग कर रहा है। तिब्बती गुरु दलाई लामा तो भारत की ही शरण में हैं और केंद्रीय तिब्बत प्रशासन का कार्यालय भी भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में है जहाँँ तिब्बत के निर्वासित प्रधानमंत्री रहते हैं,जिस से चीन को गहरी आपत्ति है। हांगकांग में भी नए सुरक्षा कानून को लेकर प्रदर्शन जोरों पर है। चीन अपनी इन सभी आंतरिक समस्याओं को दुनिया से छुपाने के लिए आक्रांता का नकाब पहन रखा है।

2- चीन खुद को दुनिया का वर्कशॉप कहता है लेकिन कोविड-19 के कारण चीन का निर्यात अमेरिका यूरोप के देशों में काफी कम हो गया है । दूसरी ओर दुनिया के अन्य देश निवेश करने के लिए भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था की ओर आकृष्ट हो रहे हैं। चीन से कहीं वर्कशॉप का तगमा न छिन जाए, इसलिए भी वह भारत को समस्याओं में उलझा कर रखना चाहता है।

3- चीन की नजर जिस तरह दक्षिणी चीन सागर में पेट्रोकेमिकल्स पर है, जिस तरह तिब्बत की नदियों को उसने अपने हाइड्रो पावर के लिए इस्तेमाल किया है, उसी तरह लद्दाख में वह सोने और यूरेनियम के भंडारों पर अपनी काली नजर डाल रहा है । इस यूरेनियम का प्रयोग वह परमाणु बिजली ही नहीं परमाणु बम बनाने के लिए भी इस्तेमाल कर सकता है।

4- चीन को यह भी डर है कि भविष्य में कहीं भारत पीओके पर अपना अधिकार न कर ले। अगर ऐसा होता है तो उसका 3000 किलोमीटर का,”वन बेल्ट, वन रोड” का सपना पूरा नहीं हो पाएगा जिस पर उसने पहले ही 4600 अमेरिकी बिलियन खर्च कर दिया है। इसलिए भी वह भारत को अपनी शक्ति दिखाकर आतंकित करना चाहता है।

5- लद्दाख में भारत द्वारा किए गए निर्माण कार्य भी चीन की आंँखों में बुरी तरह चुभ रहे हैं क्योंकि इससे भारत की सामरिक शक्ति में इजाफा हुआ है। साल 1997 में भारतीय सरकार ने 73 महत्वपूर्ण सड़क, जो कि भारत की सीमाओं से सटी थी, को बनाने का फैसला लिया। इसी के अधीन दरबुक से श्योक होती हुई दौलत बेग ओल्डी तक 255 किलोमीटर लंबी, DSDBO ,एक सड़क बनाई गई जो लेह से निकलकर काराकोरम तक जाती है , लद्दाख के आखिरी गांँव टास्किंग तक पहुंँचती है और हर मौसम में उपयोगी है। यह चीन की बेचैनी की सबसे बड़ी वजह है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने भी कहा है-” गलवान के पास रोड बनाने से परेशानी हो रही है।”डीबीओ एयर बेस भी चीन की आंँखों में चुभता है।
भारत के प्रोजेक्ट -73 का 75 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है। इसे पूरा करने की डेडलाइन 2024 थी, जिसे घटाकर 2020 कर दिया गया है। सीमा पर 3 साल में 6 सुरंग वाली सड़के बनी हैं। 2017 से 2020 के बीच भारतीय सीमा पर कुल 470 किलोमीटर सड़क बनी है, जिसमें 380 किलोमीटर सड़क केवल चीन से लगी सीमा पर बनी है। 19 सुरंग वाली सड़कों पर काम चल रहा है। सीमा पर सड़क निर्माण के लिए 11800 करोड़ रुपए जारी किए गए हैं ।ऐसे में चीन को परेशानी कैसे ना हो?

6- अंत में यह कहना गलत न होगा कि चीन की जमीन के लिए भूख की नीति भी एक कारण है। जब तक तिब्बत आजाद था, तब तक कोई विवाद नहीं था। लेकिन तिब्बत पर अधिकार करने के बाद भारत के सरहदी इलाकों में उसकी चाहत ने अंगड़ाई लेना शुरू कर दिया। बहुत पहले माओत्से तुंग ने कहा था,” तिब्बत वह हथेली है जिस पर कब्जा कर उस की पांँचों उंँगलियों पर कब्जा किया जा सकता है।” माओत्से तुंग ने पांँच उंँगलियों के रूप में लद्दाख, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, भूटान और नेपाल की बात की थी।इसमें से 3 तो भारत का हिस्सा है और दो देश भारत की सरपरस्ती में। इसलिए भारत को झुकाए बिना उसकी पांच उंँगलियों वाली नीति पूरी होगी ही नहीं।तिब्बत पर चीन के बढ़ते प्रभाव का विरोध भारत द्वारा न किया जाना और उससे भी बढ़कर तिब्बत पर चीन के स्वामित्व को स्वीकार कर लेना वर्तमान समस्या का एक बहुत बड़ा कारण है।
प्रभात कुमार माथुर के शब्दों में,

” है भूल हमारी, वह छुरी क्यों ना निकाले,
तिब्बत को अगर चीन के करते न हवाले,
पड़ते न हिमालय के शिखर चोर के पाले,
समझा ना सितारों ने घटाओं का इशारा।”

चीन के अतिक्रमण की नीति को देखते हुए भविष्य में लद्दाख में कुछ सावधानियांँ बरतनी आवश्यक होंगी। यथा,

1- भारतीय सीमा जो अन्य देशों के साथ लगी हुई है, लगभग 35000 किलोमीटर से भी अधिक है। ऐसी हालत में तकनीकों की मदद से जैसे -सेटेलाइट, नाइट विजन कैमरा, थर्मल इमेजिंग तकनीक, मोशन सेंसर जैसे सीमा सुरक्षा तकनीकों की मदद से हमें नजर रखनी होगी, जिससे एक ओर तो सीमा पर किसी भी हलचल का पता लग जाएगा और सैनिकों की जान भी अधिक संख्या में बचाई जा सकेगी।

2- सीमा पर संचार व्यवस्था को दुरुस्त करना होगा ज्यादा से ज्यादा हवाई अड्डे, ज्यादा से ज्यादा सड़क, मोबाइल फोन नेटवर्क।

3- सीमावर्ती इलाकों में नागरिकों की संख्या बढ़ानी होगी। निर्जन और बंजर इलाकों पर कब्जा जमाना आसान होता है। इन क्षेत्रों में अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों को भी अधिकाधिक आकर्षित करना होगा। आर्थिक गतिविधियांँ इन क्षेत्रों में बढ़ानी होगी ताकि स्थानीय लोगों को इन क्षेत्रों में धीरे-धीरे फैलने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।

साल 1962 में भारत ने चीन के हाथों कड़वा अनुभव पाया है और इससे सबक लेकर हमने अपनी सेना को जहांँ मजबूत किया है, वही संसाधनों को भी। – 55 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर हमारी फौज अपनी सरहद की रक्षा के लिए तैयार रहती है , जहांँ सामान्य नागरिक एक पल के लिए भी खड़ा नहीं रह सकता। ऐसे ही सैन्य वीरों के साथ भारत की सरकार एल ए सी के 832 किलोमीटर की सीमा पर बनी 65 पेट्रोलिंग पॉइंट पर अपनी नजर गड़ाकर बैठी है, जहांँ कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता। क्योंकि चीन जिसका चारित्रिक गुण है धोखेबाजी, से भले ही बातचीत होती रहे, चौकसी और तैयारी में हम पूरे मुस्तैद रहें। 1962 के युद्ध के बाद प्रभात कुमार माथुर के द्वारा लिखी गई एक कविता की यह पंक्तियाँँआज भी प्रासंगिक है-ंं

“भूला है पड़ोसी तो उसे प्यार से कह दो,
लंपट है, लूटेरा है तो ललकार से कह दो,
जो मुंँह से कहा है, वही तलवार से कह दो,
आए न कभी लूटने भारत को दुबारा,
चालीस करोड़ को हिमालय ने पुकारा।”

“भारत से तुम्हें प्यार है तो सेना को हटा लो,
भूटान की सरहद पर बुरी दृष्टि ना डालो,
है लूटना सिक्किम को तो पेकिंग को संभालो,
आजाद है रहना तो करो घर में गुजारा।
चालीस करोड़ को हिमालय ने पुकारा।”

जय हिंद, जय हिन्द की सेना।

( इस आलेख का अगला भाग अगले अंक में )

रीता रानी
जमशेदपुर, झारखंड।

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