पापा की तरह

पापा की तरह

नहीं बन पाती कलाकार
पापा की तरह
फटी जेब में भी जो
मुस्कुराहटें संभाल लाते थे
परेशानियों के गद्दे पर भी जो
रेशमी चादर बिछाते थे
हर ईंट में खुद को ढाल
घर हमारे लिए बनाते थे ।

नहीं आता हुनर
पापा की तरह
पसीने से तर – बतर जो
जेठ की धूप में भी चाक घुमाते थे
माटी के बरतन , माटी के खिलौने जो
गढ़ते ही जाते थे
घूमता था गृहस्थी का पहिया
वो धुरी बन जाते थे ।

नहीं बन पाती ढाल
पापा की तरह
हवा , पानी और आग भी
संयमित हो जाते थे
दवा और दुआ की अहमियत
वो खुद झेलकर बताते थे
चमक उठता था मुखमंडल
चैन की नींद जब हमें सुलाते थे ।

पापा की पोटली

(1)

जब भी
दिल घबराता है
ऊब कर
भाग जाना चाहता है
कदम जा टकराते हैं
पापा की पोटली से
और
जाने कैसे
कुछ मुस्कुराहटें
चिपक जाती हैं मुझ पर
और थम जाते हैं पाँव
वापस इस गृहस्थी में ।

(2)

अलाउद्दीन का चिराग है या
डोरेमॉन का पॉकेट
यह
पापा की पोटली
जाने कैसे
हर बार
सुलझा देती हैं उलझनें
दिखा देती हैं
कोई रास्ता
और
मैं दौड़ कर थाम लेती हूँ
उन उंगलियों को
जिसके सहारे टिका है
मेरा अस्तित्व ।

तुम पिता हो !

फटी बिवाइयां
और पसीने की बूंद
परिभाषित करती है
तुम्हारे अस्तित्व को
तुम पिता हो
इसलिए
तुम्हारे आँसू नहीं दिखते
पर दिखती हैं
परेशानियां और
चिन्ताएँ
बच्चों के परवरिश की
गृहस्थी चलाने की
शिव की तरह विष पीने की ।

सारिका भूषण

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