सूरज की ऊर्जा.. बरगद की छांव .. मेरे पापा

सूरज की ऊर्जा.. बरगद की छांव .. मेरे पापा

सूरज कभी भी अपने आने का शोर नहीं मचाता, वो तो चुपचाप पूर्व दिशा में प्रकट हो जाता है और उसी से सम्पूर्ण विश्व ऊर्जावान हो उठता है। विशाल बरगद का वृक्ष कभी भी शोर मचा कर अपनी विशालता का बखान नहीं करता, उसकी उपस्थिति ही छाया और सुकून देने के लिये काफ़ी है। उसी ऊर्जावान सूर्य की तरह, उसी विशाल बरगद की तरह हम भाई बहनों के लिये मेरे पापा हैं। श्री राय मनेन्द्र प्रसाद , जिनकी शिक्षा इलाहाबाद में हुई । इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद उन्होंने बिहार सरकार में अपना योगदान दिया। चीफ इंजीनियर के पद से रिटायर होने के बाद भी अधिकतर समय रामकृष्ण मिशन से जुड़ कर कुछ ना कुछ करते रहे। भजन और शास्त्रीय संगीत के शौकिन पापा कुंदन लाल सहगल के प्रबल प्रशंसक है । रेडियो सुनना आज भी उनकी दिनचर्या का हिस्सा है।
मेरे पापा ने कभी सख़्ती से हमें कुछ भी नहीं सिखाया, ना ही हम पर कभी ज़ोर डाला कि हमें क्या करना है और क्या नहीं। उन्होंने अपने आदर्श जीवन का उदाहरण ही हमलोगों के समक्ष रख दिया, जिसमें आध्यात्म है, ईमानदारी है, घर परिवार की जिम्मेदारी है और सबसे बढ़ कर अत्यन्त सादगी है।
बिहार सरकार के उच्च पदस्थ पदाधिकारी होते हुए भी हमने कभी भी उनमें घमण्ड या अहंकार लेश मात्र भी नहीं देखा। आज भी उनकी ईमानदारी के चर्चे होते हैं, जो हमारे लिये गर्व की बात है।
हमने हमेशा ही अपने पापा को, जिसमें माँ का भी साथ रहा, अपने घर परिवार की जिम्मेवारियों को उठाते देखा । सिर्फ अपने माता पिता या भाई बहन ही नहीं, उन्होंने दूसरे रिश्तेदारों की भी समय समय पर बखूबी सहायता की। हम भाई बहन बचपन से ही यही देखते बड़े हुए।
सबसे अनमोल उपहार जो उन्होंने हमें दिया, वह है आध्यात्मिक विरासत … मेरे दादा जी रामकृष्ण मिशन की पहली पीढ़ी के अनुयायियों में आते हैं , उनकी धरोहर को आगे ले जाने वाले मेरे पापा और अब तो हम भाई बहन और हमारे पति और बच्चे भी। मुझे याद है, जब कभी भी बाढ़ या ऐसी ही कोई प्राकृतिक आपदा आई, मेरे पापा रामकृष्ण मिशन के स्वयंसेवको की श्रेणी में अग्रणी रहे। बिहार में आए भीषण बाढ़ के समय रामकृष्ण मिशन की ओर से पीड़ितों के लिये मेरे पापा की देख रेख में ही घर बनवाए गए जिसे रिकॉर्ड समय और निम्नतम खरचे में बनवाया गया, जिसकी सर्वत्र प्रशंसा हुई और सम्मानित भी किया गया। आज इस उम्र में भी मिशन के हर निर्माण कार्य में पापा की सलाह और सहायता ली जाती है। यहाँ तक की मेरे स्कूल के भव्य भवन में भी उनका अहम योगदान है।
हम भाई बहनों के सामने कोई समस्या या दुविधा हो तो उसके समाधान के लिये हम पापा की ओर ही देखते हैं। उनके मार्गदर्शन के बिना हमें संतोष नहीं होता।
यह उनके ही दिये गए संस्कार हैं कि हमें भी दिखावे से दूर आडम्बरहीन जीवन पसन्द है। पूरी ईमानदारी और लगन से किसी भी काम को पूरी जिम्मेवारी और मेहनत से करने का जज़्बा भी हमारे पापा की ही देन है क्योंकि हमने उन्हें जीवन भर ऐसा ही करते देखा है।
ईश्वर हमें हमेशा उनकी छाँव में रखें, वो हमेशा हमारे लिये ऊर्जा का श्रोत बने रहें, यही हमारी प्रार्थना है।

डॉ निधि श्रीवास्तव

 

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