ये विषाणु
कुछ कह रहा है ये विषाणु :
मैं कारण भी परिणाम भी,
बरसों से धुंधलाये नयनों से
जो आज हुआ है नज़ारा,
निर्मल नीलाम्बर , सुंदर प्यारा,
दिए जा रहा प्रमाण भी।
जीवन के पांचों मूल तत्वों से किया कितना ही खिलवाड़,
बन्द कर दिया सघन चिकित्सालय के वार्ड।
पिता अंतरिक्ष को ही निर्लज किया , बेवजह ही परत दर परत रहस्य उधेड़ दिया।
पितृदेव सूर्य , मामा चन्द्र और नभ के चमकते तारे बने थे ब्रह्माण्ड के विष के ढाल,
महत्वकांक्षाएं यों बढ़ी,
बढ़ा अभिमान,
क्यों न धरती पर ला इन्हें,
बना ले स्वयं की शान,
कर दिया पूजनीय सम्बन्धों का घोर अक्षम्य अपमान।
धरती माँ को कुछ ऐसे बांटा,
कर टुकड़े टुकड़े,
अपने ही नाम की जायदात बता ,
कर अपहरण ,
कर दिया चीरहरण और शीलहरण।
जल, वायु और अग्नि सभ देव ,
कर दिये निर्दोष ही दण्डित,
कर दिये कारावास में बंद।
फिर कैसे है मानव निर्दोष ,
सर्व जीवन ही कर डाला खण्डित।
डॉ सोमनाथ मनोचा
साहित्यकार
रोहतक, हरियाणा