प्रकृति की पुकार

प्रकृति की पुकार

प्रकृति के रूप में मिला है हमें अनमोल उपहार
पर ना रख पाये हम उसे मूलरूप में बरकरार
कराह रही प्रकृति,लगा रही मानव से ये गुहार
ना करो मुझे बंजर औ प्रदूषित,बंद करो अपने अत्याचार
करती है जब वो प्राकृतिक आपदाओं के रूप में गुस्से का इज़हार
मच जाता है चहुं ओर फिर हाहाकार
समझें हम प्रकृति के संदेश को,ना करें उसे नज़र‌अंदाज़
छुपा है इसी में सुरक्षित भविष्य और वर्तमान का राज़
सहेजें गर हम प्रकृति को और दें उसे संवार
ना झेलना पड़ेगा प्रकोप,पायेंगे गोदी में उसकी, हम मां सा प्यार

वन्दना भटनागर
मुज़फ्फरनगर

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