कोरोना और मेडिकल साइंस

कोरोना और मेडिकल साइंस

वर्तमान समय में विश्व भर को कोरोना महामारी ने विभिन्न तरह से ग्रसित किया है, और कर रहा है। इसके द्वारा लाखों संख्या में संक्रमण और मानव जीवन का ह्रास हो रहा है, और मानव से मानव का हर तरफ भय के वातावरण ने सबको विचलित कर रख दिया है। इस महामारी के अचानक आने से और इसके बारे में पहले से अनभिज्ञता विश्व भर में मेडिकल साइंस के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है। यह लड़ाई मानों किसी अनजान हवा के वेग का सामना है, जो रुकने का नाम ही नही ले रही है। मानव से मानव को डरना पड़ रहा है। वैसे तो डॉक्टर एवं अन्य स्वास्थ्य कर्मी इलाज करते समय सावधानी बरतते हैं, पर इससे संक्रमित लोगों की जान बचाने के क्रम में स्वयं ही कोविड 19 के चपेट में आ रहे हैं। इस अचानक आये महामारी के लिए मेडिकल साइंस तैयार नही था। पर फिर भी अपनी जान की परवाह किये बिना डॉक्टर ,नर्स और सेवा कर्मी कोविड 19 संक्रमण के रोगियों का इलाज कर रहे हैं। पर महामारी के कारण अन्य सभी तरह के इलाज और उसके नियमों में बदलाव लाना आवश्यक हो गया । सभी देश इस जंग से लड़ने के लिए अपने अपने तरह से लग गये हैं। हमारे देश में 2020 फरवरी अंत मार्च के शुरू में ही कोरोना संक्रमण की आहट आ गयी थी, दूसरे देशों की हालत देखते हुए, इस क्रम में लोगों के बीच तेजी से संक्रमण फैलने से रोकने और मरीजों के स्वास्थ सेवा के लिए अस्पतालों को पूरी तरह से तैयार करने के लिए, जनता की जीवन रक्षा के लिए हमारे प्रधानमंत्री आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा पूरे लॉकडाउन का ऐतिहासिक कडा़ नियम लागू करना पड़ा। जिसमें लोगों को अपने घरों की सीमा में रहना पड़ रहा है ,सामाजिक दूरी के अलावा घर के सदस्यों में भी दूरी रखना आवश्यक एवं उचित है। यह एक उत्तम निर्णय है। मानव सामाजिक प्राणी है। और इस लॉकडाउन से कमजोर व्यक्तित्त्व वाले व्यक्ति में तरह तरह के मानसिक परेशानियाँ से ग्रसित होने और बढ़ने की आशंका है, और हो रहा है।

विश्व भर को अपने चपेट में लिए, इस संक्रमण महामारी के बारे में ठीक से समझना अति आवश्यक है, तो डाक्टरों ,वैज्ञानिकों शोधकर्ताओं ने आपातकालीन मीटिंग कर,अपने अपने अपने अनुभवों को बाँटना शुरू किया, और लगातार कर रहे हैं। उनके विचारों को समझ डब्लू एच ओ ( वर्ल्ड हेल्थ अॉरगेनाईजेसन ),डॉक्टरों और देश के स्वास्थ्य मंत्रालय के सलाह से अस्पतालों की दैनिक सेवाओं को रोककर कोरोना ग्रसित मरीजों के लिए आकस्मिक और आइसोलेसन और आई सी यू सेवाओं की तैयारी करने का निर्देश दिया गया ! और इसी बातों को ध्यान रखते हुए संक्रमित रोग बचाव और इलाज (Infective disease Prevention and treatment ) के तहत इस महामारी युद्ध से लड़ने के लिए अस्पतालों की संख्या और स्थिति में सुधार बढा़ई जाने लगी। केवल एमरजेंसी सेवा ही उपलब्ध करने का आदेश हुआ। हमारे भारतवर्ष मे भी इसके लिए आदेश हुआ। ओ पी डी (.आउट पेसेंट ) क्लिनिक भी बंद किए गये । डॉक्टरों ,नर्सों अन्य सेवा कर्मियों को स्वयं को सुरक्षित रखने का निर्देश हुआ ,क्योंकि आगे लड़ने/ईलाज करने के लिए उनकी सुरक्षा और स्वस्थ रहना आवश्यक है। हमारे देश की जनसंख्या एक सौ तीस करोड़ है ,और उसके अनुपात चिकित्सक बहुत कम हैं , तो यह निर्देश पालन करना जरूरी था और है ।

फिर इनफेक्टीव डिसीज प्रिवेंसन एंड ट्रीटमेंट अॉरगनाईजेशन द्वारा हॉस्पिटल केयर के नये नियम बने । यह कोविड 19 संक्रमण गले के खराश से बढ़कर तेजी से स्वाँस प्रणाली को पूरी तरह ग्रसित कर मानव के जीवन का ह्रास करता है।अत: जिनमें कोविड 19 संक्रमण की आशंका या संक्रमित हैं, ऐसे मरीजों को देखने के लिए डॉक्टर, नर्सों अन्य सेवा कर्मियों को अपनी सुरक्षा के लिए विशेष पीपीई, मास्क और वस्त्र पहनना अति आवश्यक है । जिसे पहनने और उतारने के कड़े नियम भी है और ज्यादा समय लगता है।

यह भी समझना जरूरी है, कि सावधानियों के बावजूद भी थोड़ी भी लापरवाही से कोरोना संक्रमण हो जाता है। किसी भी डॉक्टर ,नर्स या सेवा कर्मी के कोविड 19 पॉजिटिव होने पर उन्हें तुरंत आइसोलेशन मे रहना है, और अन्य कोविड मरीज की तरह ही इलाज होता है। इस समय में मरीज के अस्पताल आने के समय से लेकर उसके ईलाज और उसके छुट्टी होकर घर जाने तक हर कदम पर विशेष नियम हैं । अन्य देशों की हालत देखते हुए अपने देश में भी कोविड 19 ग्रसित के मरीजों के लिए विभिन्न अस्पतालों को तैयार किया गया। क्योंकि शुरू में संक्रमण जाँच की मशीन बाहर से मंगाया गया था, जिससे बहुत कम लोगों का ही जाँच हो पा रहा था, तो हमारे देश के वैज्ञानिकों ने देश में ही ऐसे उपकरणों आदि को तैयार किया। क्योंकि कोरोना से स्वाँस प्रणाली पर बहुत ज्यादा असर होता है, तो अस्पतालों में ज्यादा वेंटिलेटरों की व्यवस्था भी बढा़नी पडी़ है।

संक्रमण के कारण देश में कई नर्सिंग होम बंद हो गए। क्लिनिक भी नियमों के अनुसार चलाया जा रहा है। कहा जाये तो हाथ सफाई ,मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग ( नियत सामाजिक दूरी बनाये रखना)सावधानी बस सावधानी ही आज का जीवन रक्षा मंत्र है।

जो भी कि महामारी के प्रकोप का भय चारों तरफ है, पर अन्य बड़ी बीमारियों का कहर और पीड़ायें /या गर्भ और प्रजनन क्रिया को नकारा नही जा सकता। इसके तहत, अॉल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन द्वारा मेडिकल संबंधी और बीमारियों और ए आई सी ओ जी( द अमेरिकन इंस्टीट्यूट अॉफ गायनेकोलॉजी आब्सट्रेटिव , FOGSI फेडेरेशन अॉफ ओब्सट्रेक्टीव गायनेकोलॉजी सोसायटी अॉफ इंडिया, AIIMS -एम्स ( अॉल इंडिया इंस्टीट्युट अॉफ मेडिकल सांइ़स ) ने गर्भवती स्त्रियों के देखभाल के नियमों में परिवर्तन किया और प्रसूति के समय भी नये नियम बनाये गये। जितना मृत्यु सत्य है उतना जन्म भी। संसार को आगे बढा़ने के लिए गर्भवती माँ और शिशु की रक्षा की विशेष आवश्यकता है। अब अन्य तरह तरह की बीमारियों के बारे और आज डॉक्टर आपस में वेबीनार द्वारा एक दूसरे से मेडिकल साइंस के हर पहलू पर विचार विमर्श करते हैं। छोटी से बड़ी समस्याओं को नये नजरियों से देख रहे हैं, समाधान कर रहे हैं। संक्रमण से उभरे मरीजों के प्लाज्मा द्वारा इलाज या हर्ड इम्यूनिटी द्वारा संक्रमण के तीव्रता में कमी होने की कोशिश एक आशा का दीपक जल रहा है। कुछ प्रमाण मिले हैं कि भारत में मलेरिया के ईलाज की दवा से कोविड 19 से बचाव होता है, पर उसका स्वयं इस्तेमाल जान लेवा भी हो सकता है, इसलिए बिना डॉक्टरी सलाह स्वयं लेना उचित नही है। भारत में इस दवा का निर्माण कार्य चल रहा है, और विदेशों में दवा भेज भारत सरकार मानवता का कार्य कर रही है। कोविड 19 से बचाव के लिए वैक्सीन की खोज और बनाने के क्रिया में कई स्त्री पुरुष शोध के लिए स्वयं को समर्पित कर रहे हैं। यह मानव जीवन को बचाने के लिए अति साहसिकता का कर्म है ।
इस कोरोना काल में कहा जाए तो हाथों की उचित सफाई, मास्क एवं सोशल डिस्टेंनसींग ( दूरी बनाये रखना)– सावधानी बस सावधानी ही आज का जीवन रक्षा मंत्र है। लोग जीवन शैली बदल रहे हैं, आध्यात्मिकता की ओर बढ़ रहे हैं। बहुत से पुराने भारतीय संस्कृति को अपना रहे हैं।

हर्ड इम्यूनिटी पर कई चर्चायें हो रही है यह प्रश्न है कि
क्या भारत में ज्यादा कोरोना मरीज बनाकर संभल सकते हैं देश के हालात ?
कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए दुनिया की बड़ी आबादी इन दिनों अपने-अपने घरों में ‘कैद’ है। भारत मे भी लॉकडाउन लागू है। इस दौरान सिर्फ आवश्यक वस्तुओं के लिए लोगों को बाहर निकलने की इजाजत है। लॉकडाउन की वजह से इकॉनमी पूरी तरह से ठप पड़ गई है, जिसका असर आम लोगों पर पड़ने लगा है। कहा जा रहा है कि कोरोना वायरस को पूरी तरह से वैक्सीन बनने के बाद ही खत्म किया जा सकेगा। लेकिन वैक्सीन के लिए कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि अभी वैक्सीन बनने में एक से डेढ़ साल का समय और लग सकता है। ऐसे में अब लोगों के सामने एक नया टर्म सामने आ रहा है। यह है- हर्ड इम्यूनिटी।

जानकारों का कहना है कि ,जब दुनिया की बड़ी आबादी कोरोना वायरस से संक्रमित हो जाएगी, तब उसमें प्रतिरोधक क्षमता भी पैदा हो जाएगी। इसके बाद कोरोना वायरस का लोगों पर अधिक असर नहीं होगा। इसे हर्ड इम्यूनिटी कहते हैं।
कई डॉक्टरों और एक्सपर्ट्स का मानना है कि यदि वायरस के संक्रमण को फैलने दें तो लोगों की इम्यूनिटी जल्द इससे लड़ने के लिए प्रतिरोधक क्षमता का विकास कर लेगी। हालांकि, इससे खतरे भी कम नहीं है। ज्यादा लोगों के वायरस की चपेट में आने की वजह से देश के अस्पतालों पर असर पड़ेगा। यह भी देखने की बात होगी कि अगर ज्यादा लोग बीमार होते हैं तो उनके इलाज के लिए कितने अस्पताल उपलब्ध होंगे? ऐसे में ज्यादा से ज्यादा लोगों की मौत भी वायरस की वजह से हो सकती है। एक्सपर्ट्स कहते हैं कि इसी वजह से ज्यादा जानकार लॉकडाउन की तरफदारी कर रहे हैं।

वहीं, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) में संक्रमण रोग महामारी विशेषज्ञ डॉ. मारिया वान केरखोव कहती हैं कि इस बात की पुष्टि नहीं हो सकी है कि जो लोग कोरोना वायरस के संपर्क में आए हैं, उनमें पूरी तरह से इसके प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो सकी है या नहीं और अगर होती है तो फिर कब तक? इसलिए सरकारों को, लोगों को वैक्सीन का इंतजार करना चाहिए।

यूके ने शुरुआती समय में इसका समर्थन किया था लेकिन इसके बाद जैसे-जैसे संक्रमण के मामले बढ़े वहां के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने लॉकडाउन लागू कर दिया। उन्होंने लोगों के एक जगह इकट्ठा होने पर भी प्रतिबंध लगा दिया।
इस पर यह प्रश्न है कि क्या भारत में हर्ड इम्यूनिटी की तकनीक काम कर सकती है ।
इस बीच प्रिंसटन यूनिवर्सिटी और सेंटर फॉर डिजीज डायनेमिक्स, इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी (CDDEP) के शोधकर्ताओं का कहना है कि हर्ड इम्यूनिटी की तकनीक भारत में कोरोना से लड़ने के लिए कारगर साबित हो सकती है। वाइस डॉट कॉम के अनुसार, शोधकर्ता कह रहे हैं कि यह रणनीति वास्तव में भारत जैसे देश में काम कर सकती है क्योंकि भारत की आबादी में युवाओं की संख्या अधिक है, जिससे उनके अस्पतालों के भर्ती होने का खतरा काफी कम होगा ।

यह भी प्रश्न है कि क्या कोई देश लॉकडाउन का बोझ नहीं उठा सकता है?’
एक्सपर्ट जयप्रकाश मुलियाल ब्लूमबर्ग से कहते हैं कि कोई भी देश लंबे समय तक लॉकडाउन का बोझ नहीं उठा सकता है। कम से कम भारत जैसा देश तो बिल्कुल नहीं। आप वास्तव में बुजुर्गों में संक्रमण को फैलने से रोकते हुए हर्ड इम्यूनिटी तक पहुंच सकते हैं। वहीं, जब हर्ड इम्यूनिटी पर्याप्त संख्या तक पहुंच जाएगी ,तब यह वायरस अपने-आप थम जाएगा। इससे बुजुर्ग भी सुरक्षित हो सकेंगे।
लॉकडाउन और कोविड 19 के भय नें लोगों के मानसिक स्थिति पर भी असर किया है और कर रहा है। जो इसे सही तरीके से संभाल नही पा रहे हैं , वे डिप्रेशन/इरेटेबिलीटी/एन्जाइटी आदि से ग्रसित हो रहे हैं,तो उन्हे मनोचिकित्सक की भी आवश्यकता है।

यह भी सत्य है कि कोविड 19 पैनडेमिक के समय क्वारंटीन के बाद भी एहतियात जरूरी है । याने हर व्यक्ति को क्लारंटीन के बाद भी इससे बचाव के उपाय करते रहना आवश्यक है।

मुंबई की घनी आबादी वाले क्षेत्र में कोविड-19 क्लीनिक शुरू किया गया है। आई सी एम आर द्वारा रैपिड टेस्टींग पर जाँच शुरू किया गया । फिर कई राज्यों में संक्रमण जाँच के लिए रैपिड टेस्ट शुरू हो गया है ।

भारत में कोरोना से मिलती-जुलती रहस्यमय बीमारी ने दी दस्तक दी है ।बच्चों को सबसे ज्यादा खतरा है। इसके लक्षण अमेरिका और यूरोपीय देशों में कई बच्चों की जान ले चुकी है।यह रहस्यमय बीमारी भारत तक पहुंच गई है । इसे कोरोना वायरस से जुड़ी बताई जा रही इस दुर्लभ बीमारी के लक्षण चेन्नई में एक आठ साल के बच्चे में देखे गए हैं।

भारत में कोरोना मरीजों के ठीक होने की दर अमेरिका से 20 गुना बेहतर, अब तक 39 हजार से अधिक लोग डिस्चार्ज हुए हैं।भारत में कोरोना पीड़ितों के ठीक होने की दर अमेरिका से 20 गुना बेहतर है। अमेरिका में जब संक्रमण के कुल मामले एक लाख थे तब सिर्फ दो फीसदी लोग बीमारी से उबर पाए थे, जबकि भारत में करीब 40 फीसदी लोग पूरी तरह ठीक हुए हैं।
यू एस ए के वैज्ञानिकों का दावा है कि सनलाइट ( सुर्य की किरणें ) से कोरोना वायरस जल्दी खत्म हो जाता है।
डब्लू एच ओ ( वर्ल्ड हेल्थ अॉरगेनाइजेसन -विश्व स्वास्थ्य संगठन ) के सत्र के पहले दिन चीन ने कोरोना को लेकर रखा मदद का प्रस्ताव रखा है ।विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इस सोमवार को अपनी पहली वर्चुअल सभा की शुरुआत की, जहां भागीदार देशों के कोरोना वायरस महामारी के लिए एक संयुक्त प्रतिक्रिया पर बातचीत और किसी सही वैक्सीन को बनाकर शीघ्र ग्लोबल करना है ।

वैक्सीन–किसी भी वैक्सीन बनाने के पहले
वैक्सीन ट्रायल पहले चूहों,गिनी पीग पर होता है ।फिर बंदरों पर ,जिनका इम्यून सीस्टम(संक्रमण प्रतिरोध क्षमता ) मनुष्यों सा होता है।

इस क्रम में यू एस ए के “मोडेरना” के डॉक्टर एवं वैज्ञानिक सही वैक्सीन की खोज में लगातार लगे हुए हैं।
इटली और ईजराइल भी प्रयत्नशील हैं।चीन के ‘कैसीनो बायोटीक” का दावा है कि वो कोरोना संक्रमण से बचाव का दवा बना रहे हैं ।
ब्रिटेन का ‘अॉक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी’ भी सफल ट्रायल का दावा कर रहा है ।
” साइनो वैक ” इस रिसर्च पर कार्य कर रहा है।
इसके लिए 6000 लोगों ने मानव पर ट्रायल के लिए, बिना अपनी जान के परवाह किए स्वयं को मानवता की रक्षा के लिए समर्पित किया है। अभी 1000 लोगों पर वैक्सीन ट्रायल चल रहा है। यदि यह सफल रहा तो सितंबर अक्टूबर 2020 तक वैक्सीन आने की संभावना है। संसार में अनेक तरह के विभिन्न वैक्सीन बनाने वाला सबसे बडा़ फर्म भारत का “सीरम इंस्टीट्यूट” भी वैक्सीन बनाने के लिए तत्पर है।

प्लाज्मा थेरपी–भारत में “प्लाज्मा थेरपी” का ट्रायल चल रहा है। इसमे जो लोग कोविड 19 से संक्रमित होने के बाद स्वस्थ हो चुके हैं ,उनके प्लाज्मा को कोविड 19 ग्रसित गंभीर स्थिति वाले मरीजों में इंफ्यूज करने से उनकी संक्रमण तीव्रता कम हो सकती है ,और मरीज का जीवन बचाया जा सकता है ।
जब तक कोविड 19 का सही वैक्सीन नही आ जाता सदा सावधानी बचाव के नियमों का पालन करना ही चाहिए। लॉकडाउन खुलने के बाद और अधिक सावधानी की जरुरत है ।इस समय और आगे भी मरीजों को भी चिकित्सा के लिए ओ पी डी जाने और दिखाने के लिए आइसोलेसन के नियमों को पालन करना चाहिए । बेकार भीड़ ना लगायें। ओ पी डी में भी विशेष सावधानियों के बाद ही मरीज देखा जा रहा है। कहा जाए तो मेडिकल साइंस में एक नयी क्रांति का समय है। अब भीड़ लगा कर मरीजों को देखने का समय चला गया, बल्कि हर मरीज को नयी दृष्टि से देखा जा रहा है। संसार में मानव प्राणी की रक्षा के लिए मेडिकल साइंस मन कर्म वचन से लगा हुआ है। लोगों को भी मेडिकल सेवा के लिए लगे सभी डॉक्टर,नर्स और सेवा कर्मियों के समर्पण को समझना होगा।

यह सब देखते हुए यह कहा जा सकता है, कि और आगे भी ऐसे नियम लागू रहेंगे। मेडिकल सांइस अब वैरचुअल सलाह एवं ईलाज देने की सुविधा जनक क्रिया भी देने के तरफ बढ़ रही है। जिसमें मरीज अपनी फीस अॉनलाइन देकर डॉक्टर से विडियो अॉडियो में बात कर सकते हैं, और जरूरत समझने पर चिकित्सक उनको अपने चैंबर में बुलायेंगें।

संक्रमण से ग्रसित मरीजों की मृत्यु होने पर अति सावधानी से उनके मृत शरीर को रखा जाता है, तथा गाड़ा या जलाया जाता है। कई देशों में डॉक्टर पोस्टमार्टम द्वारा उनके मृत्यु के कारण का पता लगा रहें हैं, जिससे ईलाज और बचाव के नये उपाय की खोज कर सकें ।

इस समय तरह- तरह के प्रयोग हो रहें हैं। यह भी सही है, कि आज जो विचार और समाधान मिल रहे हैं, कल कुछ और भी हो सकता है। अत: इन अनेक परिवर्तनों के साथ जुझते बढ़ते हुए मेडिकल साइंस मानव जीवन रक्षा के लिए सदा समर्पित है, व जल्द से जल्द सही वैक्सीन बनाने और उसके सफल होने की हृदय से कामना करता है। मानव संसार सुरक्षित रहें और लंबी उत्तम जीवन जीये।

डॉ आशा गुप्ता
स्त्रीरोग विशेषज्ञ व साहित्यकार
जमशेदपूर,झारखंड,भारत

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