स्वाद
आज कोई खास बात है क्या? कोई भी घर से नहीं जा रहा हैं। इतने बजे तक तो बहू अलका, बेटा अरविंद और पोता अरुण चले ही जाते हैं। अलका टीचर है, बेटा आई.टी कंपनी में मैनेजर और अरुण आठवीं क्लास में। तो क्या आज सब घर में रहेंगे ?यह लॉकडाउन क्या है? मतलब सब कुछ बंद । लक्ष्मण रेखा खींच दी है सरकार ने । बेमतलब तफरीह, घूमना बंद। कोई भी नहीं निकलेगा। और यह क्या ? मनीषा भी नहीं आएगी ? मतलब मेरा “मी टाइम” भी खत्म । मनीषा मेरी केयर गिवर है।मतलब साथ रहने वाली।सुबह दस बजे से शाम पाँच बजे तक।मम्मी को कुछ याद नहीं रहता, यही बोलते आ रहे हैं न सब। एक कमरे में, एक दीवार को देखते हुए समय कट रहा है। पिछले छह साल से बस ऐसी ही अकेली हूँ।बासठ की उम्र भी क्या अकेले काटने वाली है? जबसे मिस्टर गांगुली गए तब से बस कमरे में कैद कर लिया अपने आपको । सब कुछ छोड़ दिया या छूट गया । ये कोरोना चीन से इटली होती हुई हमारे यहाँ दस्तक दे रही है। खाँसी सर्दी वाली मामूली बीमारी नहीं है। टीवी पर पर सुनते ही मुँह का स्वाद बदल गया। मम्मी आप कहाँ जाओगे ? मम्मी आपका मन नहीं लगेगा ? मम्मी वहाँ सब हमारी उम्र के हैं ।मुझे लगा शायद मुझे जीना ही नहीं चाहिए । कितने शौक थे मुझे -घूमने का। सब लॉकडाउन – सब बंद । लेकिन एक बात बताओ कि क्या किसी के जाने के बाद जिंदगी का स्वाद खत्म हो जाता है ? जिंदगी तो चलती है।
मिसेस गुप्ता ने तो बच्चों के मुंह फुलाने के बावजूद दूसरी शादी कर ली और ऑस्ट्रेलिया चली गई ।किसी लक्ष्मणरेखा को नहीं माना। अलका ट्रे में चाय और टोस्ट ले आई । आप यहीं खा लें । क्यों भाई साथ खाने में स्वाद बिगड़ जाएगा। सोचा कमरे से निकलूँ और घर में घूम लूँ। पापा जबसे गए मम्मी तो कमरे से ही नहीं निकलती। उनको क्या पता कि मन एक कमरे से दूसरे कमरे और कमरे से बालकनी तक ऐसे ही छलांगें लगा लेता है। मुझे कमरे के बाहर देखकर तीनों हैरान हैं। आप बनाएँगी आज का खाना? परेशान मत होइए। हो जाएगा न सब कुछ। तभी अरुण ने कहा मम्मी कच्चे आम डालकर दाल बनाइए, इतने दिनों से नहीं खाया । अलका की फैली आँखें देखकर एक मुस्कुराहट आ गई ।चलो लॉकडाउन में ही सही ,मुंह का स्वाद तो बदलेगा।
स्वाद से याद आया बचपन । कैसे आम के बगानों में हम घूमते थे । वो जमाना कुछ और था । लॉकडाउन यानि कि लक्ष्मण रेखा । इसने तो जीवन की परिभाषा ही बदल दी है । अरुण कल लूडो निकाल कर ले आया। कितने बरसों के बाद ऐसे बैठे हम सभी। मेरी आंखें नम हो गई। मिस्टर गांगुली को पीली लाल लूडो की गोटियां पसंद थी। हमेशा लाल घर लेते थे । हर दिन आने जाने की हड़बड़ी खत्म हो गई। अरुण ऑफिस से आने पर कमरे में झांक लेता था रोज ।खाना खा लिया बस यही एक वाक्य। मैं अलका की गलती नहीं मानती । व्यस्त है ,स्कूल ,पति, बच्चे । औरत के तो काम ही नहीं खत्म होते । पिछले छह सालों में घर की शांति बनाकर रखी है ।अलका और अरुण कंप्यूटर लेकर कमरे में बंद हैं। वर्क फ्रॉम होम। घर का काम बंट गया है ।झाड़ू-पोछा अरुण के जिम्मे। बेचारे से मैंने कभी सूई तक नहीं उठावाई । मन करता है बेबस कमरे से बाहर निकालकर सब अपने हाथ में ले लूँ।लेकिन अपनी इस बनाई हुई लॉकडाउन से बाहर निकलना मुश्किल है ।लेकिन आज शाम जब वह अपने कमरे से निकली तो मेरी बनाई हुई कढ़ी-चावल देखकर बोली – आपने ? अभी लॉकडाउन चलेगा , ऐसा टीवी पर बोल रहे थे । मैं तो इस वायरस से खुश हूँ। शायद इसका आना जरूरी था । हमारा स्वाद बदलने के लिए।
डॉ अमिता प्रसाद
आई ए एस
दिल्ली ,भारत