घरेलू हिंसा
मुझे हिंसा अपने आप में ही बहुत बुरी लगती है ।आमतौर पर लोगों को ऐसा लगता है कि हम हिंसक हो जाएंगे तो हमें हमारा हक मिल जाएगा , लोग हम से डर जाएंगे लेकिन यह गलतफहमी है ।हिंसा किसी भी समस्या का समाधान नहीं है ।जब यहीं हिंसा घर में होने लगें तब यह और भयावह स्थिति हो जाती हैं क्योंकि सामान्य तौर पर घर सबसे सुरक्षित और आवश्यक हिस्सा है जीवन का।घरेलू हिंसा मूल रूप से पति दारा पत्नी को सताया जाना है जैसा कि हमारे हिंदू समाज में मान्यता है कि पति का स्थान सबसे ऊपर है और पति का यह जन्मसिद्ध अधिकार है कि अगर पत्नी कोई गलती करें तो वह उसे शारीरिक रूप से सजा दे सकता है ।पत्नी सामाजिक रुढिवादी मानसिकता के कारण कुछ कह नहीं पाती और घुट-घुटकर जीती है ।बहुत से पति ऐसे हैं जो समाज के सामने तो एक आदर्श पति बनने का ढोंग। करते हैं लेकिन घर की चारदीवारी में पत्नी की एक छोटी सी गलती को भी माफ नहीं कर सकते , अगर वह अपनी सफाई पेश करें या कुछ कहना चाहे तो उत्तेजित होकर उसे शारीरिक रूप से चोट पहुंचाते हैं क्योंकि ऐसा करना उनके अधिकार क्षेत्र में है।यहीं संकीर्ण मानसिकता कई घरों में क्लेश और अशांति का कारण बना हुआ है।अधिकत्तर मामलों में पुरुष अपनी व्यक्तिगत दोष को छुपाने के लिए अपनी पत्नी को प्रताड़ित करता है जैसे कोई व्यक्ति नशा करता है और पत्नी उसे नशा करने से रोकती है तो वह उसे मारता पीटता है और घर की सुख शांति नष्ट करता है। एक सुखद जीवन नारकीय जीवन में परिवर्तित हो जाता हैं। मगर पुरुष यह नहीं समझता ।मैं सभी पुरुषों के बारे में नहीं कह रही हूं कुछ व्यक्ति विशेष को जो अपनी पत्नी को अपनी संपत्ति समझते हैं ,उसे मारते हैं ,प्रताड़ित करते हैं और वह चुपचाप यह सब बर्दाश्त करती है क्योंकि वह किसी न किसी सामाजिक जिम्मेदारी से बंधी होती है या तो वह बच्चों की होती है या और भी तरह की। घरेलू हिंसा आपको हर तबके मे मिलेगी निम्न वर्ग, मध्यमवर्ग और उच्च वर्ग सभी में इस तरह के मानसिकता वाले पुरुष हमें दिखाई पड़ते हैं ।जो कि अपनी पत्नी को प्रताड़ित करते हैं और पत्नी को यह सब सहना पड़ता है क्योंकि अगर हमें समाज में रहना है तो हमें सामाजिक नियमों को मानना है अगर हम समाज से हटकर कुछ करेंगे तो बदनामी होगी पुरुष अपनी बदनामी से बहुत डरता है वह पत्नी को मार सकता है लेकिन यह बात बाहर नहीं जाए इसका पूरा ध्यान रखता है इसके अलावा बहुत सी महिलाएं और पुरुष जिनको गुस्सा बहुत आता है वह भी अपने बच्चों या अपने नौकर वगैरह को शारीरिक रूप से क्षति पहुंचाते हैं। अत्यधिक क्रोध के कारण वह लोगों को नुकसान पहुंचाते हैं और समाज में अव्यवस्था फैलाते हैं ।अतः हमें ऐसे लोगों को जागरुक करना चाहिए उनके क्रोध को रोकना चाहिए उसके लिए हम उन्हें समझा सकते हैं अगर वह ना समझे तो हम कानून की मदद ले सकते हैं जैसे की घरेलू हिंसा के मामले में पत्नी को चाहिए कि वह कानून की मदद लें और अपने पति को यह बात समझाए कि वह उसकी संगिनी है नाकी उसकी संपत्ति अगर हमारे आसपास ऐसा कुछ हो रहा है तो एक सामाजिक प्राणी होने के नाते यह हमारा सामाजिक कर्तव्य है कि हम इसकी जानकारी लोगों को दें और दोषी को सजा दे और उसे सही मार्ग पर चलने की दिशा बताएं तभी जाकर समाज एक स्वस्थ समाज बनेगा और लोगों को हम जागरुक कर पाएंगे कि हर व्यक्ति अपने आप में सम्मानित है आजकल सिर्फ पुरुष ही नहीं बल्कि महिलाएं भी घरेलू हिंसा करती हैं चाहे वह शारीरिक हो या मानसिक कई महिलाएं अपने घर में लोगों को बेवजह परेशान करती हैं ।उनके ऊपर दहेज का या घरेलू हिंसा का झूठा मुकदमा कर देती हैं। लोगों से उनकी शिकायत करती हैं सिर्फ इसलिए कि अपनी मनमानी चला सके ।जो पुरुष विवेकशील होते वह स्वयं चुप रहकर स्थिति को सुधारने की कोशिश करते हैं या तो अपने को ही नुकसान पहुंचा लेते हैं ।
अतः हमें सिर्फ पुरुष ही नहीं और हमें उसका सम्मान करना चाहिए हमारे आसपास आज ऐसी बहुत सी समस्याएं हैं जो हमने खुद पैदा की है जैसे कन्या भ्रूण हत्या।आज पूरे देश में कन्याओं की कमी हो गई है इंसान गर्भ में कन्याओं को खत्म करता रहा और आज यह हाल है कि लड़कों की संख्या बहुत ज्यादा है लड़कियों की कम जिससे वैवाहिक संबंधों में बहुत परेशानी आ रही है लोगों को लड़कियां ही नहीं मिल रही. आज नारी स्वतंत्र है वह आत्मनिर्भर है अपने पैरों पर स्वयं खड़ी है इसलिए अपने विवाह का निर्णय भी स्वयं ले सकती है. हमारे समाज में बलात्कार एक ज्वलंत समस्या है नारी घर हो या बाहर कहीं सुरक्षित नहीं बच्ची हो या बड़ी वह भी सुरक्षित नहीं है अतः हमें अपने बच्चों में संस्कार विकसित करने होंगे कि वह नारी का सम्मान करें और ऐसी स्थिति आए ही नहीं कि किसी नारी का अपमान हो और अगर अगर आप कहीं ऐसा होते देखते हैं तो इस पर आवाज़ उठाएं और कुछ कार्यवाही करें अगर समाज के सभी नागरिक जागरुक हो जाएंगे तो समाज में अपराध कम हो जाएंगे जो पुरुष विवेकशील होते वह स्वयं चुप रहकर स्थिति को सुधारने की कोशिश करते हैं या तो अपने को ही नुकसान पहुंचा लेते हैं अतः हमें सिर्फ पुरुष ही नहीं बल्कि पूरी स्त्री जाति और पूरी मानव जाति को इस हिंसा से बचाना है और यह तभी संभव है जब हम सब जागरूक हो हम अपने साथ-साथ और लोगों की भी इज्जत करें उन्हें सम्मान दें और यह हमारी सामाजिक जिम्मेदारी है कि हम समाज को एक स्वस्थ और सुंदर वातावरण दे बहुत जगह देखा गया है कि अगर कोई महिला किसी सिरफिरे पुरुष की कोई बात नहीं मानती है तो वह उस पर तेजाब डाल देता है उसका जीवन नष्ट कर देता है ऐसे लोगों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए ऐसे लोगों का सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए या उसे एहसास कराना चाहिए कि उसने बहुत ही घृणित कार्य किया है किसी को जिंदगी भर के लिए दर्द दिया है यह सब हम तभी कर सकते हैं जब हम स्वयं जागरूक हो और लोगों को भी जागरूक कर सके इसलिए हमारे देश में शिक्षा का प्रसार व प्रचार सभी वर्ग में होना चाहिए जब देश शिक्षित होगा तो अपराध कम होंगे लोगों को अपने आप पता चलेगा कि वह कहां गलत है और कहां से मैं इसमें सुधार कर सकते हैं।
सीमा वाजपेयी
डिस्ट्रिक्ट चेयर पर्सन ऑफ पीस पोस्टर लायंस क्लब
अनुभूति की संस्थापक अध्यक्ष