यह कहानी है विषाणु और विज्ञान की
इस समय सम्पूर्ण विश्व एक अदृश्य मौत के खौफ़ के साये में जी रहा है। दुनिया भर में 4,820,959 से अधिक लोग संक्रमित हैं व एक अनुमान है कि 3,188,765 से ज्यादा लोगों की जान ले चुका है एक वायरस जिसे नाम दिया गया है कोविड-19 या कोरोना। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे वैश्विक महामारी घोषित किया है। हालांकि 1,848,705 संक्रमितों को इस जानलेवा वायरस के शिकंजे से निकाल लिया है दुनिया के डॉक्टरों ने जो एक आशा की किरण है इस विपत्ति से बचने की दिशा में।
चीन, योरोप और अमेरिका में स्थित भयावह है। भारत में अभी तक इस महामारी की विकरालता तो देखने में नहीं आई है किन्तु कोई भी प्रदेश इसकी दस्तक से अछूता नहीं है।
जनता कर्फ्यू के बाद लॉकडाउन के लागू होने के बाद संक्रमण पर नकैल कसी है लेकिन लोगों को घरों में रोकने के लिए सरकारों को भागीरथी प्रयास करने पड़े हैं।भारत में मंगलवार सुबह स्वास्थ्य मंत्रालय ने संक्रमण के ताजा आंकड़े जारी किए. इसके मुताबिक, देश में संक्रमित मामलों की संख्या लाख को पार कर गई है. कोरोना का सबसे ज्यादा कहर 5 राज्यों में है. इनमें महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली और राजस्थान शामिल हैं। कोरोना की महामारी से देश में ठीक होने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ी है. मंत्रालय के मुताबिक, 38% संक्रमित लोग इलाज के बाद ठीक हो चुके हैं। अब तक इस महामारी से कई हजार लोगों की मौत हो चुकी है।हालांकि, ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि किसी बीमारी ने दुनिया भर में इतनी अधिक दहशत फैलाई हो। हैजा, प्लेग, चिकनपॉक्स, इंफ्लूएंजा मानव इतिहास के सबसे बड़े वायरस में शामिल रहे हैं। इन बीमारियों ने 30 से 50 करोड़ लोगों की जान ली है।अकेली 19 वीं सदी की ही बात की जाये तो 5 से अधिक आक्रमण हुए हैं और करोड़ों जान गई हैं।
1. 1910 में हैजा से 8 लाख से अधिक लोग कल कवलित हुए।
2. 1918 में फ्ल्यू से लगभग 2 से 5 करोड़ जान गई थीं।
3. 1918-19 में ही स्पैनिश इंफ्ल्यूएंजा ने 5 से 10 करोड़ लोगों को अपना शिकार बनाया था।
4. 1956 से 1958 में एशियन फ्ल्यू के कहर ने लगभग 20 लाख जान ली थीं।
5. 1968 में हांगकांग फ्ल्यू की चपेट में आकर लगभग 5 लाख लोग चिरनिद्रा में सो गये थे।
6. 1976 से अभी तक एच. आई. वी. (एड्स) से 3 से 6 करोड़ मौत हो चुकी हैं।
जब भी सृष्टि अपने संहारक रूप में आती है, वैज्ञानिक बचाव के लिए प्रयासरत हो जाते हैं और उस आपदा के लिए जिम्मेदार विषाणु से लड़ने के अस्त्र-शस्त्र तलाशे जाते हैं।अंत में विज्ञान विजयी होता है और उस महामारी से बचने की औषधि तैयार कर ली जाती है परन्तु यह एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें समय लगता है।पहले उस विषाणु की संरचना का अध्ययन कर उसमें पाये जाने वाले जैविक व रासायनिक तत्वों की पहचान ही बहुत मुश्किल काम होती है फिर उनपर प्रभावी प्रतिजैविक को तैयार करना। उसका परीक्षण व प्रभाव देखकर मानव शरीर में उसके उपयोग की संभावना व अनुमति जैसी अनेक बाधाओं को पार करने के बाद टीका बनता है। अब उसका व्यावसायिक स्तर पर उत्पादन एवं वितरण होने के पश्चात ही वह जन साधारण तक पहुँच पाता है।
कोविड-19 को अपास्त करने की दिशा में भी दिनरात प्रयास किये जा रहे हैं और यह भी सुनिश्चित है कि इस दानव के संहार के लिए भी रास्ता निकलेगा। इसका असर समाप्त करने के लिए वैक्सीन बन जायेगा।
जब तक ‘बन जायेगा’ के स्थान पर ‘बन गया’ है नहीं होता, विश्व भर में इस संक्रमण को रोकना होगा।
यह विषाणु मानवीय सम्पर्क से संचारित हो रहा है। इस कड़ी को रोकना ही संक्रमण रोकने का उपाय है। यही वजह है सोश्यल डिस्टेंसिंग व पर्सनल डिस्टेंसिंग जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जा रहा है इस विषाणु की लड़ाई में।
हमारे देश में 22 मार्च को सांकेतिक जनता कर्फ्यू का आवाह्न किया प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने।जनता के व्यापक समर्थन के पश्चात 25 मार्च की रात 12 बजे से लॉकडाउन की घोषणा हुई। आरम्भ में यह अवधि 21 दिनों की थी। 14 अप्रैल को पुनः यह अवधि 3 मई तक बढ़ाई गई। इस दौरान लॉकडाउन के सकारात्मक परिणाम देखते हुए इसे 17 मई तक के लॉकडाउन को पुनः 30 मई तक लागू कर दिया गया है।लॉकडाउन का देश की अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ना तय था और पड़ा। इससे निबटने के लिए प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्रियों की निगरानी में सहायता कोष बने।
लॉकडाउन से आम जनजीवन तो प्रभावित हुआ, मजदूरों के लिए यह संक्रमण काल विपत्ति काल बन गया।
मदद के भरसक प्रयास भी अपर्याप्त साबित हुए एवं जगह-जगह से अनियमितता की खबरें भी आने लगीं।
देश के विभिन्न प्रदेशों में फंसे लोगों को उनके घर पहुँचाने के लिए विशेष परिवहन सेवाएं आरम्भ करनी पड़ी।
सम्पूर्ण देश में शहरों को तीन रंगों में विभाजित किया गया है। रेड जोन, जहाँ संक्रमित लोगों की संख्या अधिक है। आरेंज जोन जहाँ 10 या उससे अधिक संक्रमित मरीज़ हैं तथा बिना संक्रमण वाले ग्रीन जोन में रखे गए हैं।अब और दो जोन बनाए गए हैं।प्रत्येक स्तर पर इस विषाणु से जंग जारी है विज्ञान के साथ सहनशक्ति व विश्वास की।
ईश्वर करे विजय विश्वास की हो और यह आपदा हार जाये।
मुकेश दुबे,
वरिष्ठ साहित्यकार
सीहोर,मध्यप्रदेश