लॉकडाउन और शिक्षण समाज

लॉकडाउन और शिक्षण समाज

बात उन दिनों की है जब समपूर्ण संसार में हड़कंप मचा था,त्राहिमाम की वस्तु स्थिति थी जीवन चक्र जैसे रूक सा गया था।एक अंजान अदृश्य शत्रु के भय से और इस भय से उपजा जो रक्षात्मक उपाय था उसे लॉकडाउन की संज्ञा दी गई।क्या विद्यालय क्या देवालय सब जगह बस ताले हीं ताले हालांकि इस बंद ताले मे जीवन रक्षक आवश्यक वस्तुओं लेकिन एक ऐसी चीज भी थी
जिसे जीवन के लिए हमारा तंत्र आवश्यक नहीं समझता उसके द्वार भी खुले हुए थे।वह द्वार था विद्यालय के बंद परिसर मे भी शैक्षणिक समाज का खुला प्रयास।
यक्ष प्रश्न यह था कि विद्यालय तो बंद है फिर शुरुआत कहाँ से की जाएं कहते हैं ना कि डूबते को तिनके का सहारा और वह तिनका था इंटरनेट।जिसके सहारे लगभग सभी शिक्षण संस्थाओं ने अपने अथक परिश्रम से छात्रों के समय का नुकसान नहीं होने दिया। यह और बात है कि कक्षा शिक्षण का विकल्प दूसरा कुछ भी नहीं क्योंकि शिक्षा सापेक्षता और अन्योन्य क्रिया के सिद्धांतो पर आधारित है।यहां यह उल्लेखनीय है कि शिक्षा का प्रवाह रुके नहीं यह किसी एक का प्रयास नहीं था यह एक टीम वर्क था इस टीम के प्रतिभागियों मे छात्रों का उत्साह ,अभिभावकों का सहयोग पदाधिकारियों की दूरदर्शिता और सबसे महत्वपूर्ण शिक्षकों का कठोर परिश्रम और पराक्रम जिसके बिना यह संभव नहीं था।
छात्रों की बात करें तो छात्रों ने सभी कक्षाएं वैसे ही ध्यान पूर्वक सुना समझा जैसे वह सामान्य कक्षाओं मे
करते थे ।अभिभावकों का भी पूरा सहयोग रहा है, विशेष तौर से छोटे बच्चों के साथ प्राथमिक कक्षाओं मे जहाँ पर ऑनलाइन कक्षाओं का तात्पर्य छात्र और अभिभावक दोनों की व्यस्तता थी।

शैक्षणिक संस्थाओं के पदाधिकारियों की दूरदर्शिता का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है ।अधिकारी हमेशा से इस बात पर जोर देते आ रहे हैं कि अच्छी से अच्छी गुणवत्ता पूर्ण शिक्षण सामग्री अधिकतम छात्रों तक पहुंचे यह सुनिश्चित किया जाएं।केन्द्रीय विद्यालय संगठन ने इस दिशा मे बहुत शानदार प्रदर्शन किया है।चाहे वह ब्लॉग का निर्माण हो वीडियो लेशन्स हो संक्षिप्त नोटस हो या ऑनलाइन प्रश्नोत्तरी हो सभी क्षेत्रों मे उल्लेखनीय योगदान रहा है।देश की तमाम शिक्षण संस्थाएं चाहे वह राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान एवम प्रशिक्षण परिषद हो इग्नू हो या दूरदर्शन के विभिन्न चैनल्स ज्ञानदर्शन, स्वयं प्रभा इत्यादि इनके सौजन्य से विभिन्न विषयों के कक्षाओं का नियमित आयोजन और प्रसारण किया जा रहा है।बड़े बडे़ निजी विद्यालयों और शिक्षण संस्थानों मे भी कक्षाएँ पूर्ववत चल रही हैं। प्रतिकूल परिस्थितियों के सामने बिना घुटना टेके।

यह एक सुखद संकेत है कि गाँव के विद्यालय जो बहुत सुविधा समपन्न नहीं हैं वहाँ के शिक्षक भी बहुत मेहनत करके फेसबुक या व्हाट्सएप के माध्यम से अपने छात्रों को पढा रहे हैं।इन सभी कक्षाओं का सूत्रधार है शिक्षक जिसने बाधाओं पर विजय पायी है।ऑनलाइन कक्षाओं की पहली शर्त है पूर्व नियोजन और तैयारी जो शिक्षकों को करनी पड़ती है।वह भी इस लॉकडाउन के काल मे घर मे ब्लैकबोर्ड नहीं था तो शिक्षकों ने अलमारी को ही ब्लैकबोर्ड बना लिया किसी ने टीवी के स्क्रीन को ही स्मार्ट कक्षा बना लिया।एक से एक वीडियों लेशन्स बनने की परंपरा शुरू हो गई। नित नए अन्वेषण और अनुप्रयोग शिक्षण कैसे बेहतर हो। मूल्यांकन के लिए अलग अलग तकनीकों का प्रयोग।गूगल फार्म से लेकर क्विजी के प्रश्नोत्तरी तक तात्पर्य यह कि शिक्षकों ने जान लगा दिया मगर अधिगम शिक्षण के रफ्तार को रुकने नहीं दिया।जैसा कि केन्द्रीय विद्यालय संगठन के आगरा संभाग की सहायक आयुक्त श्रीमति इन्दिरा मुदगल मैडम कहती हैं”अधिगम रुकने नहीं चलने की प्रक्रिया का नाम है।”
तो भविष्य मे जब इतिहास लिखा जाए तो शिक्षण समाज के इस अदम्य उत्साह के साथ कोरोना के अंधेरे काल मे भी ज्ञान की मशाल को जलाए रखने के पुण्य प्रयासों को याद रखा जाए।

हालांकि की चर्चा और चिंता मे हमेशा जान और जहान को लेकर ही होती है,ज्ञान तो कहीं है ही नहीं, ना चर्चा मे ना हीं चिंता मे।जबकि हमे इस सत्य को नहीं झुठलाना चाहिए कि जान और जहान दोनों के लिए ज्ञान का होना परमावश्यक है। कोरोना विषाणु के विषाक्त आंधियों में भी ज्ञान अमृत की मशाल जलाए रखनेवाले राष्ट्रनिर्माता योद्धाओं को कोटि कोटि चरण वंदन।

कुमुद रंजन झा
साहित्यकार,शिक्षाविद और
केन्द्रीय विद्यालय संगठन मे प्रवक्ता पद पर पदस्थ

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