जीवनशैली में बदलाव -कोविड19

जीवन शैली में बदलाव- कोविड 19

यदि हम गूगल में खोजें कि कोरोना वायरस क्या है, इसकी उत्पत्ति कहाँ से हुई, इसका संक्रमण कैसे होता है, संक्रमण को कैसे रोका जा सकता है, फलां फलां तो पलभर में इन सबके जवाब हमें मिल जाएँगे लेकिन यदि हम खोजें कि कोरोना संक्रमण कब रुकेगी, दुनिया कब से फिर से पहले की तरह सामान्य हो जाएगी तो गूगल जी इसका जवाब नहीं दे पाएंगे। मौजूदा आलम यह है कि विश्वभर में कोरोना वायरस ने हड़कंप मचा दिया है, आज अधिकांश दुनिया लॉकडाउन है, इस वायरस ने पूरी दुनिया का न केवल आज का परिदृश्य बदल दिया है बल्कि यह भविष्य की दिशा भी बदल देगा। हम बहुत तेजी से भाग रहे थे, कुछ पाने की अंधी दौड़ में दौड़ते जा रहे थे, पर्सनल लिबर्टी और पर्सनल स्पेस के लिए हमने अपनी संस्कृति, खान- पान, दिनचर्या, नाते- रिश्ते सभी चीजों को ताक पर रख दिया और अपने आप में सिमटते चले गए, आत्म केन्द्रित होते चले गए, बाजारवाद के इस तरह गुलाम हो गए कि हर संबंध को तराजू में तौलने की आदत बन गई फिर वो चाहे खुद के माँ-बाप ही क्यों न हों, सभी आधुनिक उपकरणों से लैस हम आरामदायक जिंदगी के आदि हो चले थे लेकिन कोरोना ने यह सिद्ध कर दिया कि हम आत्म केन्द्रित और इंसानियत से दूर होकर नहीं जी सकते और सभी तरह के इंसानी फासले जिससे हमने अपने आप को घेर रखा है, धनी- गरीब, जाति – धर्म, पढ़ा लिखा- अनपढ़ सब व्यर्थ की बातें हैं। आज समूचा विश्व एक होता दिख रहा है, सारा मानव समाज एक साथ डूबने और तैरने को तैयार है कोरोना ने यह बता दिया कि पूरा विश्व एक परिवार है, आज कोई भी सुरक्षित नहीं है और ऐसे में हम सब साथ साथ हैं।

पहले भी हम महामारी के शिकार हुए हैं और महामारियों ने हमारे जीने का वह तरीका बदल दिया था जिसमें हम वर्षों से रहते आए थे। प्लेग महामारी ने एक बड़ी जनसंख्या को मिटा दिया, इंग्लैंड ने इसी समय हमें क्वारेंटाइन शब्द दिया। हैजे की महामारी ने कचरा निपटाने का तंत्र बनाने व स्वाइन फ्लू ने जनस्वास्थ्य जागरूकता के क्षेत्र में बड़े परिवर्तन की शुरुआत की, अब हो सकता है कि कोविड -19 के बाद से लोग नियमित रूप से मास्क पहनने लगें। प्रश्न उठता है कि लॉक डाउन के बाद क्या होता है, वायरस प्रभावित शहर आसानी से शांत होने वाले नहीं हैं। किसान बाजार में अपनी फसल कैसे बेचेंगे? सामान खरीदने के लिए पैसा कहाँ से आएगा? अधिकतर छोटे व्यापार बंद हैं, बड़े व्यापार भी ऑक्सिजन पर हैं, लाखों बेरोजगार हैं, यदि शहरों में नौकरियाँ शुरू भी हो जाती है तो क्या भीड़ वाले वायरस संक्रमित इलाके में लोग जाएंगे? यदि ऐसा होता है तो क्या वायरस के हमले का अगला दौर शुरू नहीं होगा? इस समय मूल चीजों पर गौर करने की जरूरत है। अर्थव्यवस्था के वैश्विक चक्र के साथ ही अब हमें स्थानीय स्तर के अर्थ चक्र को वैकल्पिक समाधान के रूप में अपनाना होगा। गाँवों में बहुत से ऐसे उपयोगी उत्पाद निर्मित किए जाते हैं जिनका न तो कोई बाजार है और न ही बड़े पैमाने पर उनकी बिक्री हो पाती है, ऐसे व्यापार को बढ़ावा देने की जरूरत है। आज व्यापार को बचाने में मदद, नौकरियाँ बचाने, टैक्स घटाने, बैंकों से ऋण आसान बनाने, बुजुर्गों की पेंशन बढ़ाने, रूपयें को संरक्षण की जरूरत है, जैसे हालात हैं, उनमें देश के घावों को भरने में काफी समय लगेगा।

मनुष्य की तमाम कोशिशों के बावजूद प्रकृति हमेशा से जीती है। कोरोना वायरस ने यह दिखा दिया है। चीन में कोविड-19 के प्रकोप के दौरान फैक्टरियों के बंद होने से कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में 25 फीसदी की कमी आई थी, उत्तरी इटली में ट्राफिक कम होने से कार्बन डाईओक्साइड का स्तर 5 से 10 फीसदी गिर गया, दुनिया भर में हवाई, सड़क, रेल व जल परिवहन के बंद होने से इसमें कमी आ रही है। वन्य जीवों ने शहरों, पानी व जंगलों पर अपना दावा करना शुरू कर दिया है। उड़ीसा में करीब साढ़े चार लाख समुद्री कछुवों ने तट पर अंडे दिये हैं, वेनिस की नहरें साफ हो गईं हैं और मछलियाँ दिखने लगीं हैं, दुनियाभर में लोग शहरों और फार्मों में फल और सब्जियाँ लगा रहे हैं, यह कोविड-19 से बनी चेतना का ही परिणाम है। इस वायरस का प्रकोप खत्म होने के बाद शायद हम कुछ बहुमूल्य सबक के साथ फिर से चलना शुरू करें।

गीता दुबे
स्वतंत्र लेखक
जमशेदपुर, झारखंड

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