मानवता और सामाजिक बदलाव..!
कोरोना एक वैश्विक महामारी ही नहीं है बल्कि समस्त विश्व के समक्ष एक चुनौती है।यह केवल मानव जीवन को ही नहीं बल्कि मानव सभ्यता द्वारा निर्मित प्रत्येक क्षेत्र पर घातक प्रहार कर रहा है।कोरोना से बचाव के लिए न कोई दवाई हैं और ना ही कोई वैक्सीन।इससे बचाव का एकमात्र उपाय है लॉकडाउन ।संक्रमण उसके बाद जीवन का संघर्ष के अलावा यह विश्व की अर्थव्यवस्था, शिक्षा, जीवनशैली,मानवता, सामाजिकता, धार्मिक दृष्टिकोण, राजनीति,विज्ञान, मेडिकल साइंस, राजनैतिक समीकरण में भी बदलाव ला रहा हैं।कैसे प्रभावित हो रहें हैं सभी क्षेत्र और इसका सामाधान क्या हो सकता हैं।भारत के उन मजबूर मजदूरों की स्थिति… इन सभी चुनौतियों का सामना कैसे किया जाना चाहिए। इससे किस तरह के आगे चल बदलाव आएंगे यह सोचनीय औऱ बड़ा प्रश्न हमारे सामने खड़ा है ।
युद्ध चलता रहता है हर पल हर क्षेत्र में..!जिंदगी को चलाना है तो विद्रोह के साथ समझौते भी ज़रूरी,देश आपातकालीन स्थिति से गुज़र रहा है।एक छोटे से वाइरस ने बुद्धिजीवी वर्ग को हिलाकर रख दिया है। अस्त व्यस्त अर्थव्यवस्था के साथ जीवनशैली को भी रोक दिया है..!!इस वक्त इस महामारी ने हम आम मनुष्य से लेकर खास वर्ग को बराबर की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया है।हर कोई जिंदगी से लड़ रहा है।एक सी जद्दोजहद जान है तो जहान है चरितार्थ हो रहा। सामाजिक बदलाव नज़र आ रहे संवेदनशीलता बढ़ गई है।मदद के लिए हाथ बढ़ रहे हैं, एकल शैली से मन हट गया है रिश्ते करीबी हो फिक्रमंद हो चले हैं।वही दूसरी तरफ वसुंधरा स्वच्छ हो चली नीला आसमाँ निखर गया है।पंछियो की चहचाहट दिन भर सुनाई दे रही है वही कोयल की कुक औऱ पपीहे की पीहू की गूंज वतावरण को सुखद संगीतमय बनाए हुए हैं।
आतंक में जहां कमी आई वही एकता की तरफ समाज बढ़ चला है।बसुधैव कुटुंबकम की दिशा अग्रसर हुई।
सामाजिक बदलाव में यह देखना खास सुखद होगा कि लोग सिविक सेंस को गंभीरता से लेंगे।निजी स्वछता के साथ सार्वजनिक स्वछता पर जोर दिया जाएगा और इसका लोग पालन भी करेंगे।
मानसिक रूप से विचारों को अध्यात्म की तरफ मोडेंगे जो इस विपदा की घड़ी में उन्हें परब्रह्म के नजदीक लाकर खड़ा कर देगा,शायद विचारों की शुद्धता बढ़ सकेगी और यही से एक नया समाज निर्मित होगा।यह मेरी व्यक्तिगत राय..!!
मानवता मरी नही थी थम गई थी।जीवनशैली इसका प्रमुख कारण रहा।जिंदगी को जीने की होड़ औऱ मानसिक स्तर पर जूझता इंसान सिर्फ़ अपने लिए जी रहा था।लोभ लालच और स्वार्थ या यूँ कहिए अधिक की चाह ने मानवता पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया था।बेशक़ देश घोर विपदा से गुजर रहा है।पर इस महामारी ने बहुत कुछ बदल कर रख दिया है।आगे भी बदलाव दिखेंगे।नियम कानून बदलेंगे।जिंदगी के मानव भी बदलेगा औऱ जब मानव बदलेगा तो निश्चित हो समाज भी बदलेगा औऱ जब परिवर्तन मानव और समाज मे होगा तो सामाजिक बदलाव के साथ मानवता में भी ज़बरदस्त बदलाव आएगा। और निश्चिन्त तौर एक बेहतरीन समाज का निर्माण सुनिश्चित है… कहते हैं हर बुरी चीज कुछ न कुछ अच्छा देकर जाती है। कोविड 19 बेशक़ भयावह है।पर यह प्रत्येक इंसान में जिंदगी को संतुलित स्वस्थ स्वाध्यात्म के साथ जीना सीखा गई बस अमल करने की ज़रूरत..बेशक़ जान है तो जहान है इसमें कोई अतिश्योक्ति नही..!!
इसके साथ यह भी तय है कि हमे अपने आप को स्तरीय स्तर पर बंधना होगा, एक निश्चित दूरी बनाकर समाज मे रहने की आदत डालनी होगी,मेडिसिन्स के साथ वैज्ञानिक तथ्यों को समझना होगा।शारीरिक क्षमता के साथ जैविक सरंचना पर ध्यान देना होगा। चली आ रही जीवन शैली को रोकना होगा। अब हमें सामाजिक हिसाब से नही प्राकृतिक तत्वों के साथ सामंजस्य स्थापित करना होगा।मानवीय मूल्यों का मूल्यांकन कर जीवन यापन की आदतें शामिल करनी होगी।पूर्णतः सामाजिक स्थितियों के साथ पूरे बिन्दुओं पर एक गहन चिंतन औऱ मनन के साथ स्वीकारना होगा जो बेहद चैलेंजिंग होगा, हमे पुरानी जीवन शैली की केंचुल से बाहर आकर एक नवीन जीवन शैली अपनानी होगी।इस वायरस के साथ संघर्ष के साथ जीने की आदत डालनी होगी।और यह तभी संभव है जब हम सामाजिक और मानवीय मसलों को इस वायरस के साथ सही से तालमेल बिठा सके।
ख़ैर विपदाएँ आती रही है और मनुष्यों ने हर स्तर पर इन विपदाओं पर जीत हासिल की है और यह महामारी भी एक बड़ी परीक्षा है। इसपर जीत कैसे हासिल करनी है यह हम सब अब तक के लॉकडाउन के तहत समझ ही चुके हैं।आदते भी बदली है औऱ यह क्रम आगे भी जारी रहेगा । अस्तित्व के लिए संघर्ष का खेल जारी रहेगा और उसके लिए जद्दोजहद भी जितना तो हर हाल में है।फ़िर इसे साथ रखकर ही क्यों न हो…आख़िर जान है तो जहान है..!!
मृत्यु अगर अकाट्य सत्य है तो अपनी जिंदगी को बचाने के हर मनुष्य हर सम्भव कोशिश करता ही है और अंततः मनुष्य हारा ही नही वह शत प्रतिशत सफ़ल हो अपने लक्ष्य में कामयाब हुआ है।तभी एक समाज और मानव पूरक होते रहे और सामाजिक बदलाव के साथ मानवता भी भिन्न स्वरूप के साथ आगे आई।बदलाव होते रहेंगे जब तक जीव है जिंदगी की जद्दोजहद निरंतर जारी रहेगी युद्ध चलता रहेगा…!
हमें बाह्य शुचिता के साथ आंतरिक पवित्रता की भी आवश्यकता होगी तभी हम एक स्वस्थ समाज की नींव रख पाने में सफल होंगे |
सुरेखा अग्रवाल
वरिष्ठ साहित्यकार
लखनऊ, उत्तर प्रदेश