मदर्स डे पर मेरी मां
मातृ दिवस के अवसर पर मेरे पुत्रों ने अपनी मां का सम्मान करने का आयोजन कियाl पत्रकार पुत्र सतेंद्र, कुमार, पुत्र अमरेंद्र के साथ खड़ी थी बहु हे- रूपा, रिंकी, रानी, अपूर्वा, पोता शिवम, आशुतोष, पोती मुस्कान, वैष्णवी, छोटा पोता श्याम, अभिराज तथा अभिनंदन और बीच में उनकी दादी दमयंती राय केक काटने के लिए तैयार खड़ी थीl मेरी नजर मां स्वर्गीय सुंदर मती देवी की तस्वीर पर पड़ गयीl मैं वहां से हट गया और अपने रूम में जाकर बैठ गयाl मां की स्मृतियां मानस पटल पर तैरने लगी और दो बूंद आशु टपक पड़ेl
मां की त्याग, उनकी स्नेहिल बातें हृदय को झकझोर ने लगीl मां एक जमींदार परिवार में पली नगीना राय की लाडली बेटी थीl जिनका विवाह पिताजी स्वतंत्रता सेनानी जगन्नाथ राय शर्मा के साथ हुआ थाl मां एक स्वतंत्र सेनानी संयुक्त परिवार की बहू बनकर आई थीl लेकिन विवाह के कुछ ही दिन बाद पिताजी राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल हो गए और जेल चले गएl मां के लिए यह कष्ट कर दिन थाl लेकिन संयुक्त परिवार के मुखिया देवी बाबू, काली बाबू ने मां का बड़ा ही ख्याल रखाl उस संकट की बेला में गांव घर की औरतें मां को घेरीरहती वे जब यह कहती कि वे तो जेल चले गयेl मां जवाब देती क्या हुआ मेरे ससुर भीतोआजादी की लड़ाई में जेल गए थेl सजा काटकर घर आ गएl मेरे अपने भी सजा काटकर घर आ जाएंगे? उनके विषय में मुझे कोई चिंता नहीं हैl
मैं मां की गोद का अबोध बालक थाl
मां इस बात को कहती थी की मुझे दूध नहीं उतर आया थाl घर के मुखिया देवी बाबू ने वीरा चौधरी को यह काम सौंप दिया की रोज कहीं से बकरी का दूध लाकर घर पर पहुंचा देना हैl पोता बकरी के दूध से पोसा-पला जाएगाl
पिताजी जेल की सजा काटकर
घर वापस आ गएl लेकिन कुछ ही दिनों बाद संयुक्त परिवार का बंटवारा हो गयाl पिताजी को परिवार चलाने अथवा खेती बारी करने का कोई अनुभव था नहींl बंटवारे में खाने भर का भरपुर अन्ना तो था किंतु हाथ में नगद कुछ नहीं थाl पिताजी डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के निर्वाचित प्रतिनिधि थे जब वे मीटिंग में जाते तो उन्हें कुछ भत्ता मिल जा करता थाl वह परिवार के लिए पर्याप्त नहीं थाl इस संकट की स्थिति में मां ने बड़ी कुशलता के साथ हमतीन भाई- बहनों को मां ने संभालाl भाई लोगों में मैं अरविंद बड़ा था और लालन विनोद, बहन शांति, उर्मिला, कृष्णाl
जब पिताजी का असमय देहांत हो गया तो परिवार के समक्ष दुखद स्थिति पैदा हो गयीl मां हम सबों को धैर्य रखने की बातें बतातीl कैसे-कैसे कष्ट के दिन अपने परिवार वालों ने झेला हैl इस खानदान के पूर्वज भासी बाबा अंग्रेजो के खिलाफ थेl उनका सब कुछ लुट गया थाl वे देवरिया जिला के खुखुंदू गांव छोड़कर यहां आकर बसे कितने कठिनाइयों का सामना उन दिनों परिवार को उठाना पड़ा थाl भाषी बाबा जीवन के अंतिम समय में जेल से गांव आए थेl
वे परिवार को देखकर काफी खुश हुए थे और उन्होंने परिवारजनों से दो बचन मांगे थेl एक इस परिवार का एक सदस्य अंग्रेजो के खिलाफ उस समय तक लड़ता रहेगा जब तक देश अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त न हो जाएl तथा तुम सभी गोरिया बाबा का पूजा करना उन्हीं के आशीर्वाद से परिवार फले -फुले गाl तथा बेईमानी का अन्ना कोई नहीं खाएगाl
भासी बाबा के बच्चन को परिवार ने ढोया मेरे ससुर दुर्गा बाबू अंग्रेजो के खिलाफ संघर्ष करते हुए 1930-32 में जेल गए थेl तुम लोगों के पिता 1942 के आंदोलन में जेल गएl दुख झेलना
अपने परिवार का इतिहास रहा हैl दुख और सुख तो लगा ही रहता हैl तुम लोग भी आज नहीं तो कल संकट से निकल जाओगेl मां का आशीर्वाद है की हम सभी भाई -बहन खुशहाल की जिंदगी जी रहे हैंl
हम सबों को भयंकर आर्थिक संकट से गुजारना पड़ा है lवह भी दिन याद है और आज खुशहाली का दिन भी याद हैl मां की आशीर्वाद का ही यह फल हैl
मां की अंतिम यात्रा में मैं शामिल नहीं हो सका इस बात का काफी दुख मुझे हैl लेकिन मां के आदर्श जीवन, उनके संघर्ष और त्याग का प्रत्यक्ष प्रमाण उनके श्राद्ध के अवसर पर देखने को मिलाl वे कितनी उदार प्रवृत्ति की थी और लोग उन्हें कितना सम्मान देते थे वह भी देखने को मिलाl मां कितने लोगों को आर्थिक मदद की थी कितनों को रूपए पैसे दी थी हम सबों को पता ही नहीं थाl लेकिन देखने को मिला कोई दो-चार, कोई हजार, दे रहे थेl मालकिन का दिया हुआ हम वापस कर रहे हैंl गांव के ग्वाला माया चौधरी अपनी गाय लाकर खूंटे पर बांध दिएl
पूछने पर उन्होंने बतलाया की मालकिन गाय खरीदने के लिए रुपए दी थीl आज के समय में भी ईमानदारी गांव में जिंदा हैl मां की दूध का मूल्य चुकाया नहीं जा सकता l
अरविंद विद्रोही
वरिष्ठ साहित्यकार
जमशेदपुर, झारखंड