माता तुम अनुपम
प्रकृति का अनुपम उपहार
मातृत्व से भरी कोमल नार
जननी ममतायी अमृत रसी
कोमलांगी माता शक्ति सार
नित्य कष्ट सह जाये माते
संतान की पीड़ा करती हरण
ममता रोम रोम में बसता
क्या व्याख्या कैसे हो उद्गार
समर्पण माँ का अद्भुत भाव
जिसको ना हो माप व् भार
माँ तो होती सदा पूजनीय
मातृत्व ईश्वर का है उपहार
अम्मा माँ मईया है जननी
अनेक नाम से होये पुकार
संतान रक्षा हेतु सदा तत्पर
दुर्गा अन्नपुर्णा रूप अपार
सदा माता हृदय निश्छल
गागर मे सागर है निर्झर
मातृ दिवस क्यों एक दिन
हर दिन हो माता को अर्पण
मातृत्व भाव नही है सीमा
यशोदा बनती होती निछावर
कौन भर पाये तुम्हारी कमी
तुम सा कहाँ ढ़ूंढ़े इस संसार
हे माता जननी मातृ सुरूपा
करो सादर नमन माँ स्वीकार !
डॉ आशा गुप्ता ‘श्रेया’