माँ तो बस माँ ही होती है

माँ तो बस माँ ही होती है

आज भी याद है
माँ की वह तस्वीर
बचपन में ,स्कूल जाते समय
टीफिन लेकर पीछे दौड़ती माँ
स्कूल से आते ही
खाना खिलाने के लिए
घंटों मशक्कत करती माँ
लुकछिपी के खेल में
जानबूझ कर शिकस्त खाती माँ

मेरी चिंता में हर पल
अपने आपको जलाती माँ
मेरी हर खुशी और गम को
अपना बनाती माँ
मेरी तरक्की के लिए
रात दिन दुआएँ मांगती माँ

अब तो मेरी कनपटी पर के
बाल भी सफेद होने लगे हैं
साँसे फूलने लगी हैं
सीढ़ियाँ चढ़ते समय
घुटनों का दर्द आड़े आ जाता है
आज भी माँ घर लौटने पर
चाय नाश्ता थमा देती है
हाथों को आँचल से पोछती हुई
स्नेह से पूछ्ती है
बहुत थके लग रहे हो बेटा…..
आओ मैं तुम्हारे सिर में
थोड़ा सा तेल लगा दूँ
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