माँ
मैंने कितना ही उसका दिल तोड़ा
फिर भी
वह मुझे दिल का टुकड़ा कहती रही
मैंने कितना भी उसे बुरा भला कहा
फिर भी
वह मुझे सूरज चंदा कहती रही मैंने कितना ही उसे सताया
फिर भी
वह मेरी राहों के कंकड़-कांटे चुनती रही
क्योंकि वह मां थी
शक्ति भर उसने हर विपदा से बचाया
क्योंकि वह मां थी
असुरक्षा के अंदेशे पर भी
ढाल बनकर सामने आ गई अगर मुझे गंगाजल
उसके आंसुओं से कम पवित्र लग रहा है
तो इसमें गलत क्या है
वह एक क्षण
जब मां मेरे सिर पर हाथ फेरती है
मेरा माथा चूमती है
कोई क्या जाने
वह क्षण मेरे लिए कितना गर्वीला होता है
कोई क्या जाने
उसे क्षण मेरा माथा कितना ऊंचा होता है
कितना विराट
रेनू शब्दमुखर
जयपुर