तुम सब कैसे जान जाती हो

जब जब उदास होती हूं
पर तुम्हें ना बताती हूं,
क्यों दर्द दूं अपने गम को बताकर
इसलिए तुमसे छुपाती हूं,
पर जादूगरी कैसी तुमको आती है
मां !तुम सब कैसे जान जाती हो …
जागती हूं में रातों को जब
नयनों में समंदर लिए,
तुम भी तो फिक्र में मेरी
रात आंखों में बिताती हो,
आवाज़ से ही मेरी
हाले दिल समझ जाती हो,
मां! तुम सब कैसे जान जाती हो …
ठीक हूं मां! जब कहती हूं
तुम झूठ मेरी कैसे पकड़ लेती हो,
कुछ छुपा रही हो न मुझसे
झट से ये कहती हो
दूर होकर भी इतनी
मेरी सांसों को पढ़ लेती हो
मां तुम सब कैसे जान जाती हो…
फिर सीख भरी बातों से
उम्मीदें भर देती हो
धैर्य और हिम्मत की
ज्योति दिखलाती हो
तुम्हारी दुआओं की वजह से ही मां
खुद को खड़ा रख पाती हूं
मगर बताओ ना मेरी प्यारी मां!
तुम सब कैसे जान जाती हो…

 

अर्चना रॉय
प्राचार्या एवम् साहित्यकार
रामगढ़( झारखंड)

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