मां इस शब्द में पूरा ब्रह्मांड समाया हुआ है। मां शब्द अतुलनीय है मां की कोई भी तुलना नहीं हो सकती मां अपने आप में परिपूर्ण है। कोई भी बच्चा अपनी मां के बिना इस धरती पर कोई भी शिक्षा पूरी नहीं कर सकता। अपने संतान की पहली शिक्षक है मां। मां निस्वार्थ है मां के प्यार और समर्पण में कोई भी स्वार्थ नहीं है। जिस दिन किसी भी स्त्री का विवाह होता है वह तब तक अपने दायित्वों के प्रति परिपूर्ण नहीं होती है जब तक कि वह मां ना बन जाए। मां बनते ही अपने आप एक जिम्मेदारी का एहसास होता है । एक मां अपनी जिम्मेदारी को परिवार और सदस्यों के साथ अपनी संतान के प्रति सामंजस्य बनाकर बखूबी निभाती हैं। मेरी मां ब्लड शुगर के मरीज थी और बहुत जल्दी इस दुनिया को छोड़ कर चली गई। मुझे आज भी याद है जब मुझे बुखार होता था मेरी मां मेरे पास बैठी रहती थी और मुझे सांत्वना देती रहती थी। उस जमाने में इतने व्यंजन तो नहीं बनते थे लेकिन मुझे गरम खाने का शौक था मेरी मां मुझे हमेशा गर्म खाना खिलाती थी । बच्चों के लिए उन्हें कोई आलस नहीं था हम किसी भी समय कॉलेज से आए मां उठकर बिल्कुल गरम-गरम नाश्ता या खाना हमें बना कर देती थी। मेरे दूसरे बेटे का जन्म कोलकाता में हुआ था हॉस्पिटल में मेरी मां अपने हाथ से मेरे लिए आलू भरकर टोस्ट बनाती थी जो कि मुझे बहुत पसंद है और रोज सुबह पिताजी वह नाश्ता लेकर हॉस्पिटल आते थे। जब तक मैं कल कोलकाता में थी मां ने बिल्कुल साए की तरह मेरा ख्याल रखा उनकी अपनी तबीयत खराब थी लेकिन फिर भी वह ध्यान रखती थी कि मुझे कोई कमी ना होनेपाए है। जब हम छोटे थे स्कूल में अगर कुछ घटना हो जाती थी हम सोचते थे कि मां को नहीं बताएंगे लेकिन जैसे ही मैं घर के अंदर आती थी मेरा चेहरा देखकर मां मेरी परेशानी समझ जाती थी और उस परेशानी को पूछ कर उसका हल बताती थी। उन्हें पढ़ने का बहुत शौक था उन्हीं का यह गुण हमें भी विरासत में मिला। वह एक साहसी महिला थी वह अन्याय के आगे झुकती नहीं थी और बचपन से उन्होंने हमें यही सिखाया था कि अन्याय सहना और करना दोनों गलत है।अपने बच्चों को नैतिक शिक्षा उन्होंने भली-भांति दी और आज उसी का परिणाम है कि हमारे भी बच्चे उन्हीं के नक्शे कदम पर चल रहे।मुझे गर्व है कि मैं ऐसी माता की संतान हूं। वह जो भी बात करती थी सीधी और सपाट।परिवार के सभी सदस्यों का बहुत ही अच्छे से ख्याल रखती थी और हमारे स्टाफ का भी। बिल्कुल मां की तरह उनका भी ख्याल रखती थी उनके सुख-दुख का भी ख्याल रखती थी।आज मैं जो इतना सब कुछ कर पा रही हूं यह मेरी मां यही गुण है जो मुझ में विकसित हुए। वे माता के रूप में हमें अनुशासन का पाठ पढ़ाती और दोस्त के रूप में हमारी परेशानियों का हल करती।
मैं नमन करती हूं अपने माता जी का जिन्होंने हम सबको अच्छी शिक्षा दी बड़ों का आदर करना सिखाया और हमें शिक्षित बनाया और पारिवारिक मूल्यों का भी ज्ञान कराया।आज मातृ दिवस के अवसर पर मैं उन्हें सादर प्रणाम करती हूं।
सीमा बाजपेई