मां की ममता
माँ मेरी माँ तूँ ममता की मूरत है,
निश्छल और प्यारी हसीं तेरी सूरत है,
वो एहसास आज भी मेरे पास है…..
जब तूँ मुझे हर पल
अपने आँचल में ही छुपा कर रखना चाहती थी,
क्यूंकि तुम्हे डर था की किसी की नज़र न लग जाये मुझे,…
मैं बड़ी हो गयी थी,
फिर भी किसी के सामने नहीं जाने देती मुझे,……
घर में आ कर झट से मेरी नज़र उतारती,…..
और मेरे हंसने पर एक मीठी सी झिड़की देती,,,….
वो सब क्या था माँ,,,,???
आज मैं माँ हूँ मैं सब समझ सकती हूँ
तुम्हारी भावना को,
माँ मैं बहुत मज़बूत और हिम्मत वाली हूँ,
फिर भी जब अपनी बेटी की बारी आती है तो
मैं क्यों कमज़ोर हो जाती हूँ,….??/
क्यों अपनी लाड़ली को छुपा कर रखना चाहती हूँ
अपनी पलकों में…….
क्या यही ममता है ?
क्या मुझे भी डर है ज़माने का…..??
माँ आज जरा सी ऊँगली कट जाने पर रो देती हूँ…..
और वो प्रसव पीड़ा ……
हाँ माँ आज भी याद है मुझे। ……
जब तीन दिनों की असह्य पीड़ा सह कर
हमने एक नयी ज़िंदगी इस दुनिया में ले कर आयी थी,
सृष्टि का ऋण चुकाने के लिए
क़ायनात की सारी शक्ति लगा दी थी मैंने,……
कितने दर्द झेले थे माँ……
तब जा कर तुम्हारा ऋण चुका पायी,…..
आज मैं पूर्ण हूँ,………
ममत्व पा कर मेरा नारीत्व पूर्ण हो चुका है,…..
वो मेरी ही अंश थी ,
जिसका कर्णप्रिय आवाज़ मेरी कानों में गूंजा था,
मेरी ममता जाग उठी थी,…..
झट से अपना हाँथ फैला दी थी,…..
वो सारी पीड़ा एक छण में भूल गयी थी,…..
क्या यही ममता है ?
तुम्हे रुलाने के लिए जब नर्स मारी थी तुम्हे,…..
मैं अचानक बोल पड़ी,
इतना जोर से मत मारो !!!!
और वो हंस पड़ी थी,……
बहुत सारी यादें हैं जिसे सहेज कर रखी हूँ,
कई बार अकेले में उन यादों संग हंसती हूँ,…..
कभी आँखे नम हो जाती हैं,……
पर खुश हूँ,..
क्यूंकि आज मैं ऋण मुक्त हूँ,
एक मातृ ऋण से दूसरा सृष्टि के ऋण से
सृष्टि के संचालन में एक कड़ी जोड़ कर!!
माँ तुम्हे शत शत नमन
मणि बेन द्विवेदी