माँ

माँ

मुझे याद है आपको अक्सर तीज त्योहार पर पूछती थी कि क्या चाहिए आपको और आपका हमेशा एक ही जवाब होता था…. मुझे मेरे सभी बच्चों की खुशहाली चाहिए।
सच में माँ कभी अपने लिए कुछ नहीं चाहती, वो ख़ुश होती है, बच्चों को उनके मन पसंद खाना खिलाकर, वो ख़ुश होती बच्चों के पैर पर रखे चादर को सर तक ओढ़ाकर सोए बच्चे के सर को सहला कर, अपने हाथों से बने स्वेटर पहनाकर, सारे ज़माने की दर्द मोल लेकर अपनी संतान के होठों पर मुस्कान की चाह रखती माँ, इतनी छोटी छोटी बात से संतुष्ट होती है माँ! फ़िर क्यूँ दुनियाँ भर के वृद्धाश्रमों में अपने ही संतानों द्वारा तिरस्कृत सज़ा काट रही है? हर साल मातृत्व दिवस के अवसर पर सोशल मीडिया पर, माँ पर बहुत भावुक वो लेख कविता कहानियां पढ़ती हूँ और देखती हूँ माँ के साथ सबके तस्वीरें अंटी पड़ी रहती है, तो मन में एक सवाल हर उठता है आखिर, वो किसकी माँ है? जो किसी फ्लैट के एक कोने में एकाकी जीवन जीने को मजबूर हैं, और किसी भयंकर अपराध की शिकार हो रही है, वो किसकी माँ है? जो घर से उठाकर फुटपाथ पर फेंक दी गई है, जो पल पल अपने लिए मौत की दुआ माँग रही है….. यकीन मानिए सोशल मीडिया पर मदर्स डे के दिन जितना मान-सम्मान माँ को वास्तविक जीवन में दिया जाता तो समाज तस्वीर कुछ और होती….
स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था, जिनके माता पिता मर जाते हैं उनके घर में बारह दिन का सूतक होता है, अर्थात बारह दिन तक कोई खुशियाँ नहीं मनाई जाती ना ही आती है, और जिन्होंने जीते जी माता पिता को वृद्धाश्रम भेज दिया उसके पूरे जिंदगी में ही सूतक लग जाता है, अर्थात खुशियाँ उनके द्वार कभी नहीं आती…..
उम्र के अंतिम पड़ाव में उनको हमारी जरूरत होती है, जैसे उम्र के पहले पड़ाव में हमे उनकी ज़रूरत होती है…. बस इतनी सी बात संतान समझ जाए……

अनिता वर्मा

भिलाई छत्तीसगढ़

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