अब मैं भी माँ जैसी ही माँ बनूँगी… ”
मैं भी एक माँ हूँ
पर टूट जाती हूँ कई बार…
फिर माँ आती है …
कभी ख़्वाबों में,कभी बातों में
और बढ़ाती है अपना हाथ
खींच लेती है मेरे सारे दर्द
दफन कर लेती है उन्हें भी अपने सीने में
किसी को भनक नहीं लगने देती।
जाने कैसे ला देती है
एक मुस्कान मेरे चेहरे पे।
मैं माँ को जानना चाहती हूँ
पर आज तक जान ही नहीं पाई।
कहाँ से लाती है वो इतनी ताकत
सहन करने की अथाह शक्ति
कहाँ से लाती है वो प्रेम का सागर
जो कभी सूखता ही नहीं।
सात समन्दर की दूरी भी
कम नहीं करती वो प्यार …
बल्कि पैदा करती है एक कसक…
इतना दूर होने की… ।
माँगती नहीं प्रार्थनाओं में अपने लिए कुछ भी
झोली फैलाकर बैठती है मंदिर में…
और माँगती है हमारे ही लिए सब कुछ…
मन का चैन,सुख समृद्धि
प्रेम और भी ना जाने क्या-क्या… ।
मैं भी तो कितने बरसों से माँ बनी हूँ
पर आज तक छोटी बच्ची ही बनी रही… ।
माँ को कभी ज्यादा गौर से देखा ही नहीं…
देखा तो बस उसका आँचल.. ।
पर कल माँ से वीडियो कॉल पर बात की
तो ध्यान गया माँ के चेहरे पर…
माँ पहली बार थकी-थकी सी दिखी…
चेहरे की रंगत भी काफी बदल गई थी…
पर आवाज माँ की पहले जैसे ही थी
जरा सा कंपन भर था बस.. ।
पर मैंने क्यूँ नहीं देखा पहले ये सब?
क्यूँ सिर्फ आँचल ही दिखा… अपना दर्द बाँटने को…?
आज लिया है मैंने एक प्रण…
अब मैं भी माँ जैसी ही माँ बनूँगी…
अब माँ का आँचल नहीं… माँ का मन पढूँगी…
अब माँ से सहारा नहीं …माँ का सहारा बनूँगी…
आज से और अभी से तय कर लिया मैंने
अब मैं भी… माँ जैसी ही… माँ बनूँगी…
अब मैं भी… माँ जैसी ही… माँ बनूँगी… ।
डॉ०भावना कुँअर