ईश्वर की चेतावनी
ये कोरोना एक रोग नहीं
जो विषाणु से फैला है,
ये कुदरत का कहर है
जो जानलेवा और विषैला है!!
ये हम सबका फैलाया जहर है
जो एक दिन का प्रतिफल नहीं
सदियों का नतीजा है
विष जो हमारे दिल में था
जो आज जाकर निकला है!!
कांप गए हम बस इतने में ही
क्यूं ना कांपे थे हम तब
जब प्रकृति से कर रहे थे खिलवाड़
कर रहे थे गुणगान और
मिला रहे थे पाश्चात्य सभ्यता से कदमताल!!
अपनी संस्कृति से मुख मोड़ रहे थें
कर रहे थें दोहन अपने ही जड़ों की
इतने हो गए थे मगरूर कि
सीख ना मानी अपने बड़ों की
फिर क्यूं ना बरपाता कहर ये कोरोना
जो ईश्वर की चेतावनी बन कर है आया
थम जाओ अब रुक जाओ
सबको है धमकाया!!
कितना तुम भागोगे
खुद की ही करनी से
कब तक ना जागोगे!!
चेतो और समझो
उठ जाओ अब संभलो,
हो जाएगी फिर देर बहुत
हाथ ना कुछ आएगा,
अब भी ना संभला तो
रोएगा पछताएगा
जान से भी जाएगा!!
एक हो जाओ नेक हो जाओ
मिल बांटकर खाओ,
विष ना अब फैलाओ
प्रकृति से जुड़कर
सुंदर इसे बनाओ
हर जीव में है ईश्वर
अब तो मान जाओ!!
मानव हो तुम सारे
दानव ना बनना
जीने का हक सबको है
सब ईश्वर की ही रचना!!
अर्चना रॉय
प्राचार्या एवं साहित्यकार
मांडू (रामगढ़), झारखंड