फागुन की बयार

फागुन की बयार

छाया है बसंत चहुंओर
बही है फागुन की बयार
धरती ने ओढ़ी पीली चुनरिया
हुलसे है जियरा हमार
पूरी धरती है लाल-लाल
चारों ओर उड़ा गुलाल
नीले,पीले, लाल हो रहे
सभी के गाल और द्वार
चढा नशा भाँग का
कर रहे हम आज हुड़दंग
आज तो खूब सखि रे
मनवा में छाया है खुमार
संजोये हैं स्वप्न कई
मिलता रहे सपनों को नया आकाश
और बजती रहे मनवा में
रंगरंगीली प्रीत की झंकार
है यह रंग औ मस्ती का त्योहार
मनाये हम अपनों के संग
हे सखि अब के
फागुन ऐसा ही हो इसबार।

अनिता निधि
साहित्यकार
जमशेदपुर, झारखंड

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