नया सफर 

नया सफर 

राधा ने नए शहर में अपनी नई नौकरी के पहले दिन के लिए खुद को तैयार किया। बचपन में पिता के निधन के बाद, उसकी माँ ने उसे अकेले पाला था। रिश्तों का उसका अनुभव सीमित था। समुद्र तट पर बसे इस छोटे से शहर में एक वृद्धाश्रम था, जिसका नाम था ‘शांतिवन’ इस वृद्धाश्रम में राधा को हाल ही में मैनेजर के पद पर नियुक्त किया गया था । वह हमेशा ही समुद्र तट के पास बसना चाहती थी ,इस नौकरी की उपलब्धि उसके एक बड़े सपने का वास्तविकता में बदलने और एक उपहार स्वरूप था । राधा को अपने जीवन का यह नया अध्याय बहुत महत्वपूर्ण और रोमांचक लग रहा था।

पाँच घंटे की लंबी ड्राइव के बावजूद भी समुद्र तट पर जाने की लालसा उसकी थकान को मिटा रही थी।

 

कमरे में सामान रखकर, उसने गूगल मैप से समुद्र तट का रास्ता खोज निकाला। समुद्र तट होटल से केवल 15 मिनट की दूरी पर था और राधा अपने सपने को जीने के लिए लालायित थी। समुद्र की लहरों से खेलने की ख्वाहिश उसके सरल मन में मचलने लगी थी। हवा से कदम मिलाते और होंठों पर प्रिय गीत गुनगुनाते समुद्र तट की तरफ राधा, एक उमड़ती नदी की तरह पूरे वेग से बहती जा रही थी। दूर कहीं सूर्यास्त की लालिमा भी आसमान और समंदर की लहरों पर अपनी मनोहर छठा बिखेर रही थी और इस प्राकृतिक समावेश को देख राधा भी पूरी तरह से लहरों की तरह इस आनंद तरंग में डूब गई।

अगले दिन, सुबह भगवान और माँ का आशीर्वाद लेकर राधा समय से पहले ही वृद्धाश्रम पहुंच गई। वृद्धाश्रम के मालिक डॉक्टर परवीन दत्त द्वारा सुन्दर स्वागत पाकर उसके मन में इस नए काम के प्रति मन में जकड़ी आशंकाएं थोड़ी कम हो गई।

सामने एक सजीली टेबल पर रखे चाय नाश्ते के साथ टीम की बैठक का आयोजन हुआ था। औपचारिक रूप से सब बहुत अनुकूल लग रहा था लेकिन सबके चेहरे थके हुए नजर आ रहे थे और हवा में एक अजीब सी रसायन की गंध थी। सभी नकारात्मक विचारों को दरकिनार करते हुए, राधा अपने लकड़ी के केबिन की ओर बढ़ी जो मुख्य भवन के बाहर कार्यालय के रूप में बना हुआ था। केबिन भले ही छोटा था लेकिन पूरी तरह से व्यवस्थित था छोटा कंप्यूटर,प्रिंटर, टेलीफोन, टेबल कुर्सी सभी कुछ सुसज्जित था। बड़ी सी कांच की खिड़की वृद्धाश्रम के छोटे से बगीचे में खुलती थी । बागीचा भले छोटा था लेकिन फिर भी ऐसा लगता था की उसे देखभाल की जरूरत है, अगर घास कट जाए और चारों ओर एक फूलों की क्यारी लगाई जाए तो यह छोटी सी बगिया भी सुंदर और उपयोगी बन सकती है । कैबिन की पिछली दीवार से निकलता एक छोटा सा दरवाजा था जो की स्टोर रूम को जाता था और उसी में एक छोटा सा शौचालय भी बनाया गया था।

जैसे ही राधा अपने केबिन में बैठने लगी, अचानक उसने “मदद करो, मदद करो” की आवाज सुनी। उसने खिड़की से बाहर झांका और देखा कि एक मध्यम आयु का व्यक्ति, आंगन में वही शब्द बार-बार दोहरा रहा था। अजीब बात यह थी कि अन्य लोग उसकी आवाज पर ध्यान नहीं दे रहे थे।

राधा ने अपने सहायक निखिल से इस बारे में पूछा तो उसने बताया की उस व्यक्ति का नाम गोराज है और वह मानसिक रूप से अस्थिर है, अक्सर इसी तरह बिना वजह यही शब्द चिल्लाता रहता है। इससे पहले कि राधा कुछ और पूछ पाती, हवा में धुएं की एक तेज लहर ने उसका ध्यान खींच लिया। उसने देखा कि बड़ी कद-काठी वाली नीली यूनिफॉर्म पहने मेट्रन धूम्रपान कर रही थी। उसकी नाम के बिल्ले पर हुनर लिखा था और यूनिफॉर्म से उसका सीनियर सिस्टर होना निश्चित था। अपने सिगरेट के कश खींचते हुए फोन पर किसी से बात कर रही थी। शायद यह उसका ‘ब्रेक’ का समय था, लेकिन नियमों के अनुसार उसे परिसर में धूम्रपान नहीं करना चाहिए था। राधा उलझन में पड़ गई कि अपने पहले दिन ही वह इस विषय पर जाकर उसे कुछ कहे या नहीं लेकिन इससे पहले कि वह केबिन से बाहर निकलती टेबल पर फ़ोन की घंटी ने उसका ध्यान खींचा I फ़ोन के दूसरी तरफ माँ थी , स्वभाव अनुसार उन्हें राधा की नई नौकरी और पहले दिन के अनुभव को जानने की उत्सुकता थी, जो कि उनकी परिपक्व आवाज में साफ झलक रही थी।

“माँ सब ठीक है अभी व्यस्त हूँ, लंच-ब्रेक में बात करती हूँ ” कहकर राधा ने जल्दी से फ़ोन काट दिया और तेजी से बाहर जाकर हुनर को मिलने की कोशिश की लेकिन, वह सिगरेट खत्म करके वापस ड्य़ूटी और पर जा चुकी थी । द्वंद्व भाव के साथ राधा अपने कैबिन में लौट आई और सोचा की अच्छा ही रहा की पहले ही दिन उसे किसी को डांटना नहीं पड़ा, लेकिन अब दूसरे अवसर पर उसे इस स्थिति से कैसे निपटना होगा इस तरफ दिमाग चलने लगा। नियमों के अनुसार परिसर में धूम्रपान वर्जित था।

दोपहर में, राधा ने देखा कि एक वृद्ध महिला, सुलोचना, अपने कमरे में रो रही थी। उसने सुलोचना से उसकी समस्या जाननी चाही। सुलोचना ने टूटे शब्दों में बताया कि उसे अपने बेटे की याद आ रही थी, जो महीनों से मिलने नहीं आया था और न ही फ़ोन द्वारा उसकी कोई खबर ली थी। अपने कमरे की दीवार पर लगी बेटे के बचपन की तस्वीर की तरफ देख कर उसकी आँखों से निरंतर अश्रुधारा का प्रवाह हो रहा था। राधा ने उसके हाथ थामे और उसे सांत्वना दी। उसके दर्द को महसूस करते हुए उसका दिल भी भर आया। हमारे समाज की संरचना पर विडंबना,ग्लानि और खेद महसूस हुआ I इस समाज में जहाँ माता पिता अथक परिश्रम से बच्चों का पालन पोषण करते हैं वही बच्चे दुनिया की चकाचौंध में अपने कर्त्तव्य से विमुख हो जाते हैं और आश्रित माता पिता की सुध लेने का समय भी नहीं निकाल पाते। शायद उनके मापदंड में वृद्धाश्रम में माता पिता की जिम्मेदारी सौंप देने से वह अपने सभी कर्त्तव्यों से मुक्त हो गए हो। ऐसी क्या विवशता या जीवन की समस्या होगी जो साप्ताहिक या मासिक फ़ोन कर उनकी सुध लेने का भी समय नहीं निकाल पाते। इस विचार से अचानक उसे कुछ समय पूर्व अपने माँ पर झुंझलाकर फ़ोन रख देने पर आत्मग्लानि महसूस हुई और सोचा कि ऑफिस में जाते ही पहले माँ से तसल्ली पूर्ण बात करेगी।

वृद्धाश्रम में कई बुजुर्ग निवासी थे, जिनकी विभिन्न और जटिल आवश्यकताएँ थीं। इनमें से कई निवासी शारीरिक रूप से कमजोर थे और कुछ मानसिक रूप से भी अस्वस्थ थे। राधा ने एक ही दिन में महसूस कर लिया था कि इन निवासियों की देखभाल करना आसान काम नहीं था।

गलियारे से गुजरते हुए राधा ने देखा गौराज कोने पर रखी गोल मेज पर बिछे सुंदर सफेद मेजपोश के कोने में गांठ लगाने की कोशिश कर रहा है। गोराज, जो कभी एक सफल व्यापारी था और उसके पास बड़े शहर में प्रसिद्ध जूते बनाने की फैक्ट्री थी। उसकी उम्र अभी मात्र 40 के दशक में थी, लेकिन ‘डिमेंशिया’-याददाश्त चले जाने की बिमारी ने उसके जीवन को पूरी तरह बदल दिया था। बदलते मानसिक स्वभाव और कठिनाईयों के चलते उसके परिवार ने उसे वृद्धाश्रम में भर्ती कर दिया था क्योंकि वह उसकी देखभाल करने में असमर्थ थे। शुरू शुरू में वह साप्ताहिक मिलने आते थे लेकिन धीरे धीरे वह सिलसिला भी खत्म हो गया।

शायद दिमाग के किसी कोने में आज भी गोरज अपने आप को अपनी फैक्टरी के मालिक के रूप में देख रहा था और कुछ करना चाहता था , लेकिन दिमागी असंतुलन के कारण शब्दों में व्यक्त नहीं कर पा रहा था। राधा ने पढ़ा था कि ऐसे व्यक्ति को अगर कागज या रंगों का इस्तेमाल करने दिया जाए तो उनकी मनस्थिति में सुधार हो सकता है। धीरे से उसका हाथ पकड़कर कुर्सी पर बिठाते हुए राधा ने नर्स को गोराज को कागज और कुछ रंग भरने वाली पेंसिल देने को कहा I पहले तो गोराज उन्हें विस्मय से देखता रहा लेकिन फिर कागज पर कुछ लकीरें खींचते हुए पुनः दोहराने लगा ‘मेरी मदद करो मेरी मदद करो’। मानव मस्तिष्क की जटिलताओं को मापना मुश्किल है यही सोचते राधा अगले कमरे की तरफ बढ़ गई।

शाम होते-होते राधा ने आवासीय गृह का वातावरण भांप लिया था। यहां के कर्मचारी अपने काम में इतने डूबे थे कि उन्होंने गोराज की पुकार या सुलोचना की व्यथा को अनसुना करना सीख लिया था। राधा के मन में कई सवाल उठ रहे थे – क्या वह इस जगह के माहौल में खुद को ढाल पाएगी? क्या वह इन बुजुर्गों के जीवन में कुछ सकारात्मक बदलाव ला पाएगी?

रात को अपने कमरे में जाकर, राधा ने अपने पहले दिन के अनुभवों को डायरी में लिखना शुरू किया। उसने निश्चय किया कि वह इस नौकरी को सेवा के रूप में देखेगी और यहां के हर व्यक्ति की परिस्थिति को समझने और उन्हें प्रसन्न रखने की कोशिश करेगी। राधा ने बचपन से ही कठिनाइयों का सामना किया था, लेकिन उनका मनोबल और धैर्य ने उसे हमेशा आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। ‘शांतिवन’ में काम करते हुए राधा ने महसूस किया कि यहाँ के बुजुर्ग निवासियों के जीवन अनुभव भी उनकी तरह ही दुखद और संघर्षपूर्ण थे।

राधा ने धीरे-धीरे वृद्धाश्रम में अपने काम करने के तरीके को बदलना शुरू किया। उसने स्टाफ को संवेदनशीलता और धैर्य के साथ काम करने के लिए प्रेरित किया। स्टाफ मीटिंग्स में वह प्रशिक्षण और नए शोध से अवगत कराते हुए अपने स्टाफ को स्वास्थ्य संबंधित नई जानकारी प्रदान करने लगी। राधा का हौसला पाकर स्टाफ भी अपने अनुभव और समस्याएँ साझा करने लगे और इसी तरह उनका हल भी ढूंढने लगे। दूर से देखें तो परिवर्तन सूक्ष्म स्तर पर होने लगा था I धीरे-धीरे, गोराज और अन्य निवासियों के साथ स्टाफ के व्यवहार में बदलाव आने लगा । गोराज अब भी “मदद करो” कहकर पुकारता, लेकिन अब राधा और उनके टीम के लोग उस पुकार को सुनते थे, समझते थे और उसके साथ संवेदनशीलता से पेश आते थे।

वृद्धाश्रम में जेम्मा नाम की एक छात्रा नर्स भी थी, जो अपने कोर्स के हिस्से के रूप में यहाँ स्वयं सेवा कर रही थी। जेम्मा जेरियाट्रिक चिकित्सा नर्सिंग में कार्यरत थी और वह पूरी सजगता से अपनी सेवा निभा रही थी। वह आधुनिक युवाओं से भिन्न, अपनी उम्र से ज़्यादा बड़ी सोच रखने वाले व्यक्तित्व की स्वामिनी थी। अपनी हमउम्र युवाओं से वे बहुत अलग थी और बहुत शांत तथा परिपक्व सोच का प्रदर्शन करती थी।

राधा इस माहौल में अपने आप को डाल रही थी और परिवर्तन के रास्ते ढूंढ रही थी, लेकिन वास्तविकता की कटुता उसके सामने परतों में खुल रही थी। प्रकृति अपनी सामान्य गति से बढ़ रही थी और मौसम अब शीत ऋतु की तरफ अग्रसर हो रहा था। शीत ऋतु में उसका कैबिन और भी ठंडा महसूस होता था कमरे की हवा की नमी भी जैसे बर्फ़ की तरह जम गई थी, दो ऊनी स्वेटर, और मोजे भी ठंड के प्रचंड को कम करने में समर्थ नहीं थे

वृद्धाश्रम के चारों ओर बर्फ जमी हुई थी, जिससे ठंड और भी महसूस होती थी। राधा ने अपने कमरे की खिड़की से बाहर झांका और बर्फ की चादर में ढके पेड़ों को देखा। उससे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे प्रकृति भी इन बुजुर्गों के दर्द को महसूस कर रही हो। कैबिन की ठंड और भी बढ़ गई थी। डॉक्टर परवीन को हीटर के लिए कई बार प्रस्ताव देने पर भी कोई व्यवस्था नहीं की गयी थी। राधा को इस बात से काफी परेशानी थी और इसका प्रभाव उसकी कार्य क्षमता और सोच पर भी पड़ रहा था लेकिन उससे हल नहीं मिल रहा था।

इस शीत ऋतु का कोई तोड़ जानता था तो वह था आश्रम का रसोइया भीमा। अधेड़ उम्र का दुबला पतला अपने नाम के ठीक विपरीत भीमा, अपनी चुटीली बातों और मजेदार चुटकुलों से माहौल को हल्का करने की कोशिश करते रहता। भीमा का हास्यभाव वृद्धाश्रम के निवासियों के चेहरों पर मुस्कान लाने में कभी असफल नहीं होता था। वह हमेशा चाय और कॉफी सर्व करते समय अपने अनूठे अंदाज में कहानियाँ सुनाता था। आज अपने केबिन में ठिठुरते और झुंझलाते हुए राधा को चाय से ज्यादा भीमा की बातों द्वारा दी गयी सांत्वना की गरमाहट की ज्यादा आवश्यकता थीI भीमा की चाय और कहानियों से राधा को एक अनूठी उष्णता मिलती थी। उसने कैबिन में दाखिल होते ही राधा के निराशाजनक झुंझलाते मनोभाव पढ़ लिए और डॉक्टर परवीन से हीटर लेने का एक सुझाव दिया

“ मैडम चाय के साथ में आज आपको डॉक्टर परवीन जी से कैसे काम निकलवाना है उसका तोड़ बताता हूँ” वृद्धाश्रम के मालिक को वह कहीं ज्यादा अच्छे से समझता था इसीलिए, परेशानी के हल का सुझाव दे रहा था जो की राधा का सरल दिमाग सोच ही ना सका था। डॉक्टर प्रवीन काफी कंजूस प्रकृति के थे लेकिन अगर उन्हें किसी भी काम में अपना मुनाफा दिखाया जाए तो वह सहर्ष स्वीकृति दे देते थे। इसी कमज़ोरी को भांपते राधा ने उन्हें कैबिन हीटर से उनके बाकी उपकरणों के बिगड़ने और खर्चे से बचने का सुझाव देते हुए नई हीटर की सहमति ले ली ।

इस बाजी के जीतने का श्रेय सिर्फ और सिर्फ भीमा को ही जाता था , आज राधा को लग रहा था कि पिछले कुछ महीनों की कार्यशैली और संवेदनशील स्वभाव से उसने अपने स्टाफ की वफादारी और निष्ठा को पा लिया था।

आज राधा नाइट ड्यूटी पर थी ,केबिन हालांकि गर्म था लेकिन बाहर ठंड अपने चरम पर थी, और बाहर बर्फ़ पर बिखरी चांदनी एक शान्ति का अनुभव दे रही थी ,लेकिन उसे आभास ना था की प्रतीत होती यह शांति कितना बड़ा तूफान ले कर आने वाली है I इस रात की चुनौती का राधा को कोई संकेत भी नहीं था।

अपने केबिन में बैठकर आने वाले दिनों की योजनाएं बना रही थीं, तभी अचानक उसे शोर सुनाई दिया। वह तुरंत बाहर निकली और देखा कि गोराज और जेम्मा के बीच कुछ विवाद हो रहा था। गोराज की मानसिक स्थिति को देखते हुए राधा ने सोचा कि शायद उसने कोई गलती कर दी होगी, लेकिन जेम्मा की हालत देखकर उसका दिल भाप गया की कुछ गंभीर बात हुई है ।

गोराज ने नर्स जेम्मा के साथ छेड़खानी करने की कोशिश की। यह खबर आग की तरह फैल गई और पूरे वृद्धाश्रम में हलचल मच गई। डॉक्टर प्रवीण को भी बुलाया गया, और वृद्धाश्रम में एक हड़कंप मच गया। घटना की गंभीरता पर निर्भर करेगा कि मामला पुलिस के पास जायेगा की नहीं। वास्तविकता से अनभिज्ञ राधा ने भारी कदमों से गौराज और जेम्मा की तरफ कदम बढ़ाए।

लेकिन गोराज को देख कर ऐसा लगता नहीं था कि कुछ अप्रिय घटना घटित हुई है। उसका चेहरा हमेशा की तरह मासूम और निर्दोष दिख रहा था, जैसे उसे अपने कार्यों की कोई समझ ही नहीं हो। कोने में दुबके ‘मेरी मदद करो मदद करो’ निरंतर चिल्ला रहे थे। इंसान के मानसिक पटल पर क्या चल रहा है और इसका परिणाम उसके स्वभाव पर क्या होता है विज्ञान के पास आज भी इसका कोई उत्तर नहीं है ।

इधर जेम्मा भी इस घटना से काफी डर गयी थी और उसके चेहरे पर सफेद और पीली रंगत इस बात की और अंकित कर रही थी कि इस घटना का जेम्मा को अत्यंत कष्ट हुआ है और इसका मानसिक गहरा प्रभाव पड़ा है । वह अचानक जड़वट हो गई थी।

“आप ठीक हो जेम्मा ” कंधे पर हाथ रखते ही जैसे ही राधा ने स्वाभाविक पूछा तो अकस्मात उससे लिपटकर जेम्मा बहुत ज़ोर से रोने लगी, उसका शरीर कांप रहा था और हाथ बर्फ़ के समान ठंडे थे । राधा उसे दिलासा देने और परिस्थिति को संभालने के लिए अपने केबिन में ले आयी। उसे पानी का गिलास पकड़ाते हुए राधा ने अपनी शॉल कांपती हुई जेम्मा के ऊपर ओढ़ा दी। सांत्वना देते हुए उसको मालूम हुआ कि इस घटना से जेम्मा के बचपन की एक दुखद घटना का संबंध है। बचपन में उसके एक दूर के मामा ने भी उसके साथ दुर्व्यवहार करने की कोशिश की थी जिसका अभी तक उस पर गहन मानसिक प्रभाव है।

अब राधा को जेम्मा की व्यवहार और विभिन्नता का कारण साफ नज़र आ रहा था ।आज तक दिल में उमड़ते अनगिनत अनुमान और उसकी पृथक प्रकृति से संबंधित सवालों का जवाब इस घटना से स्पष्ट हो गया था । उसके दिल में हूक उठी कि उसे गले लगा कर प्यार करे लेकिन मैनेजर होने के नाते उसे इस परिस्थिति पर नियंत्रण करना था और नियम के अधीन रहना था। उसने जेम्मा को सांत्वना दी कि वह पूरी तरह से कार्रवाई करेगी और ठोस कदम उठाएगी ताकि इस तरह की घटना दोबारा ना हो। जेम्मा, जो हमेशा से मेहनती और समर्पित कर्मचारी रही थी, इस घटना से बुरी तरह हिल चुकी थी। उसका चेहरा पीला पड़ गया था और उसकी आंखों में डर साफ झलक रहा था। राधा ने उसे शांत करने की कोशिश की, लेकिन जेम्मा के मन में बचपन की दर्दनाक यादें ताजा हो चुकी थीं, जिसने उसके आत्मविश्वास को हिला दिया था।

राधा अब एक गहरे धर्मसंकट में थी। एक तरफ गोराज था, जिसकी मानसिक स्थिति उसे अपने कर्मों की पहचान नहीं करने देती थी, और दूसरी तरफ जेम्मा, जो इस घटना के बाद अपने नर्सिंग करियर और नौकरी को लेकर आशंकित थी।

अपने केबिन में इस परिस्थिति का विश्लेषण करते हुए सही हल की तलाश में थी।अनगिनित सवालों के बीच वह एक सही निर्णय की तलाश में थी।

“क्या मुझे गोराज को दंडित करना चाहिए, जो अपनी मानसिक स्थिति के कारण अपने कर्मों को समझ नहीं सकता? या मुझे जेम्मा को सहानुभूति दिखानी चाहिए और उसके आत्मविश्वास को फिर से मजबूत करने के लिए कदम उठाने चाहिए?”

राधा ने निर्णय लिया कि उसे दोनों की मदद करनी होगी। राधा ने स्थानीय सामाजिक सेवा समिति और स्वैच्छिक संस्थानों से संपर्क किया और उन्हें इस पूरी स्थिति से अवगत कराया। राधा की योजनाओं का समर्थन मिला और गोराज और जेम्मा की मदद के लिए हर संभव प्रयास को गति मिली। उसने सबसे पहले गोराज के लिए एक मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से परामर्श करने का सोचा, ताकि उसकी स्थिति को समझा जा सके और उसे उचित उपचार मिल सके। वहीं, जेम्मा के साथ एक व्यक्तिगत परामर्श तथा उपचार की व्यवस्था की गई ।

राधा ने समझ लिया था कि यह सिर्फ एक शुरुआत है और भविष्य में और भी चुनौती पूर्ण समस्याओं का सामना करना पड़ेगा लेकिन इस काली स्याह रात्रि में उसने ठान लिया था कि वह अपने सभी कर्मचारियों और वृद्धाश्रम निवासियों की भलाई के लिए तत्पर रहेगी। शायद उसे अपने सफर की दिशा दिखाई दे रही थी । यह ठंडी रात उसके लिए एक नई आशा प्रेरणा का संदेश लेकर आई थी, जहाँ शिक्षा, जागरूकता और सहानुभूति से हर मुश्किल का सामना किया जा सकता था।

रात की ड्यूटी खत्म कर सुबह की किरणों के साथ अपने कमरे की तरफ कदम बढ़ाते हुए राधा शारीरिक रूप से भले थकी हुई थी लेकिन मानसिक रूप एक नई सफर की शुरुआत के लिए प्रसन्न थी।

भारी महत्वाकांक्षाओं के साथ उसकी बोझिल आंखें धीरे धीरे लिए बंद हो रही थी शायद कुछ पल आराम के लिए या फिर अपनी इस नए सफर के और भी बड़े भावी सपने देखने के लिए ….

वंदना रूही खुराना

यूके

 

 

 

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macbook hovedkortet
1 month ago

Å lese ditt essay var en sann glede for meg. Du var svært vellykket i å klargjøre emnet, og din skrivestil er både interessant og lett å forstå. Prinsippene var mye lettere å forstå etter å ha lest eksemplene du ga. Din ekspertise er sterkt verdsatt.