शादी एक गुनाह

शादी एक गुनाह

अभी पूजा करने के लिए आसन बिछा कर शांत चित्त होकर बैठी ही थी कि बाहर दो महिलाओं की तेज़ आवाज़ में बात करने की चिरपरिचित आवाज़ आने लगी।
फ़िर भी उधर से अपना मन हटाकर मै पूजा करने लगी
थोड़ी देर के बाद उन दोनों में से एक महिला ज़ोर ज़ोर से सुबक सुबक कर रोने लगी…..
मेरी पूजा में विघ्न पड़ने से बहुत गुस्सा आ रहा था, मैं बड़बड़ाते हुए कि अपने ही घर में इंसान शांति से पूजा भी नही कर सकता, और इनको रोने के लिए मेरा ही दरवाज़ा मिला कहते हुए बाहर निकली। एक महिला झाड़ू की टोकरी अपने सामने रखकर बैठी रो रही थी… दूसरी के टोकरी में कुछ हरी सब्जियाँ थी उनकी भी आँखे तरल थी….
“क्यों री तुम लोंगो को मेरा ही आँगन मिलता है सुबह सुबह रोने चीखने के लिए” “ये क्या हल्ला मचाया हुआ है?”
“क्या बतायें मैडम आप जैसे बड़े घरों में साहब जैसे पढ़े लिखे और पैसे वालों की औरतों को हम ग़रीब औरतों का दुःख समझ नहीं आएगा!”
“अरी बोल ना क्यों रो रही है?”
“अपनी बेबसी पर रो रही हूँ, भगवान ऐसे राक्षसों को मारता भी तो नहीं…. कुत्ते को मौत आती तो मुझे थोड़ा सुकून तो मिलता” …..
” किसको इतना कोस रही है?”
“अपने कमीने पति को ”
” ओह! शराब के नशे में फिर से तुम्हें मारा?”
” नहीं मैडम इस बार मारा नहीं ”


“कई हफ्तों से घर नहीं आया था,परसों रात आया मुझसे फिर से पैसे माँगा पीने के लिए,.. जब मैंने कहा कि मेरे पास पैसे नहीं है, मेरी दिन भर की कमाई तुम्हारे बुढ़े माँ बाप और बच्चों के पेट भरने में पूरे नहीं होते तो कहाँ से दूँ तूझे पैसे…तब वो जल्लाद मेरी तेरह साल की बच्ची को लेकर घर से भाग गया…..जाने क्या किया होगा मेरी बच्ची के साथ, जानें किस दाम बेच दिया होगा मेरी बिटिया को आ हा हा हा”
फ़िर से विलाप करने लगी
“तुमने पुलिस में शिकायत दर्ज नहीं की?”
“गई थी मैडम गई थी पर पुलिस वाले कहते हैं अपनी ही बेटी को लेकर गया है। लौट आएगा कुछ दिनों में…. कहकर कोई करवाई नहीं की हम गरीबों की कोई नहीं सुनता मैडम, सुबकती हुई बोली….मुझे पता होता कि शादी के बाद मुझे ही मेरे पति और उनके माँ बाप तथा बच्चों का भरण-पोषण करना होगा और बदले में अपमानित,प्रताड़ित और ज़िल्लत भरी जिंदगी मिलेगी तो मैं उम्र भर अविवाहित रहकर आत्मसम्मान के साथ जीती…शादी करके बहुत बड़ा गुनाह कर ली, बहुत बड़ा गुनाह…. …”
अब उनके आँखो की नमी मै अपने आँखों में महसूस कर रही थी उनको समझाने के लिए कोई शब्द शेष नहीं बचे थे……. कहना चाहती थी कि हम जैसे बड़े घरों में रहने वाली पढ़े लिखे पैसे वाले पतियों की पत्नियों को भी कम ज़िल्लत और अपमान नहीं होना पड़ता…. फर्क़ सिर्फ़ इतना है वो कहीं भी किसी के सामने भी अपना दर्द बयां करने की कुव्वत रखती है और हम झूठी मान सम्मान बनाये रखने के लिए अंदर अंदर एक दर्द का समन्दर अपने मुस्कान के पीछे छुपाए रखते हैं……..

अनिता वर्मा
साहित्यकार
भिलाई ,छत्तीसगढ़

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