कालांतर में बौद्ध और जैन धर्मस्थली

कालांतर में बौद्ध और जैन धर्मस्थली

अयोध्या एक अद्भुत विरासत जिसे प्रभु राम की नगरी के रूप में जाना जाता है। अयोध्या जिसके कण कण में राम समाये हुए हैं, वहां के लोगों के रोम रोम में राम निवास करते हैं। सनातनियों को अयोध्या अपने प्राणों से भी प्यारा है। सच कहूं, तो उन्हें ही क्यों विदेशों में पूर्णरूपेण बसे भारतीय मूल के उन सभी लोगों को भी अयोध्या उतनी ही प्यारी है, जितनी आपको और मुझे है। वरना कौन, भारतीय संस्कृति और संस्कारों से जुड़े रीति रिवाजों को अपने मानसिक पटल से विस्मृत किये बिना आज भी अपने देश में नवरात्रि के समय रामलीला का भव्य आयोजन एवं मंचन जारी रखे हुए हैं। दीपावली के दिन दीपोत्सव मानते हैं। अयोध्या हमारे आराध्य प्रभु श्री राम जी की अवतरण स्थली है। यह वह स्थली है, जहां “राम चन्द्र ठुमूक चलत बाजत पैजनिया” जैसे अलंकरण से हमारे प्रभु के सौन्दर्य का वर्णन किया गया है। अयोध्या,सनातनियों के आस्था से जुड़ा हुआ एक अति महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। साथ ही, अगर आप इतिहास के पन्नों में डूब कर गहराई से अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि यह एक अद्भुत नगरी है जो अपने हृदय में विभिन्न धर्मो और उनके अनुयायियों को भी स्थान देती है। जिसकी वजह से यह नगरी विभिन्न धर्मों और उनके धर्मावलंबियों के लिए भी एक अति महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है।समय-समय पर इस परम पवित्र अयोध्या नगरी को विभिन्न नामों से भी जाना जाता रहा है। उनमें से कुछ नाम इस प्रकार हैं: इक्ष्वाकु भूमि, अवध्या, अवध, कौशल, साकेतपुरी और रामपुरी। आइये, जानते हैं कि यह परम पूज्य धरा कालान्तर से ही बौद्ध और जैन धर्म के लिए भी एक अति महत्वपूर्ण एवं पूजनीय तीर्थ स्थल के रूप में कैसे जगह बनाये हुए है।

यह हम सब जानते हैं कि भारत एक धर्म परायण देश है और सर्वधर्म समभाव का पोशाक भी। सनातन धर्म के साथ ही बौद्ध और जैन धर्म भी भारत के प्राचीन धर्म हैं। मूलत: इनकी जन्मस्थली तब का मगध और आज का बिहार है। दोनों ही धर्म के प्रवर्तक महावीर स्वामी जी तथा गौतम बुद्ध जी समकालीन माने जाते हैं। दोनों ही धर्मों के बहुत से तत्वों में समानता पाई जाती हैं और साथ ही साथ असमानता भी।इन दोनों अहम पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करने से पूर्व गौतम बुद्ध के बारे में कुछ बातें जान लेना आवश्यक प्रतीत होता है।

बौद्ध धर्म से जुड़े साहित्यिक जानकारियों के अनुसार गौतम बुद्ध जिन्हें बचपन में सिद्धार्थ के नाम से जाना जाता था। बालक सिद्धार्थ में महापुरुषों के 32 लक्षणों को देखकर असित मुनि उनके अंदर बुद्धत्व की भविष्यवाणी की थी। ललितविस्तार आदि ग्रंथों में गौतम बुद्ध में विद्यमान चमत्कारिक गुणों का भी वर्णन मिलता है। कहीं कहीं तो यह भी लिखा गया है कि उनको जामुन के एक पेड़ के नीचे पहली बार ध्यान की प्राप्ति हुई थी। अंत में बैसाख की पूर्णिमा की रात निरंजना नदी के किनारे पीपल के पेड़ के नीचे सिद्धार्थ को ज्ञान प्राप्त हुआ। जिस स्थान पर उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ उसे बोधगया के नाम से जाना जाता है और तब से सिद्धार्थ का नाम बदलकर बुद्ध हो गया।

यह जानने से पहले कि अयोध्या का बौद्ध धर्म से क्या जुड़ाव है, कुछ अहम बातें इस धर्म के लक्ष्य और उसकी शिक्षा के बारे में जानना लाभकर होगा। बौद्ध साहित्य में इस धर्म के लक्ष्य के बारे में कहा गया है कि “संपूर्ण मानव समाज से दुख का अंत” ही बौद्ध धर्म का अन्तिम लक्ष्य है। साहित्यकारों और इतिहासकारों की मानें तो गौतम बुद्ध जी अपने शिष्यों और अनुयायियों को कहते थे कि जीवन में “दु:ख है, दु:ख का कारण है, दु:ख का निरोध है और दु:ख के निरोध का मार्ग है और वह है “बुद्ध”। वे यह भी कहा करते थे कि अष्टांगिक मार्ग का अनुसरण कर बौद्ध धर्म के अनुयायी अज्ञानता और दुख से मुक्ति और निर्वाण पाने की कोशिश करते हैं।

अयोध्या का बौद्ध धर्म से जुड़ा इतिहास:

आइये, जानते हैं कि बौद्ध धर्म का प्रभु राम की इस नगरी से क्या जुड़ाव है। गौतम बुद्ध शाक्य कुल से आते थे और उसके वे राजकुमार भी थे। शाक्य कुल की दो राजधानियां हुआ करती थी। जिसमें एक कपिलवस्तु और दूसरा अयोध्या। बौद्ध धर्म ग्रंथो में अयोध्या को साकेत के नाम से जाना जाता है। इतिहासकारों का कहना है कि 600 ईसा पूर्व में राजा प्रसेनजीत के समय में यह श्रावस्ती की राजधानी साकेत थी। यह भी कहा जाता है कि गुप्त सम्राट स्कंदगुप्त ने अपनी राजधानी पाटलिपुत्र से यहां लाये और उसका नाम अयोध्या रखा।

भगवान बुद्ध की निवास/तपोस्थली अयोध्या:

बौद्ध धर्म के जानकार बताते हैं कि भगवान बुद्ध 16 वर्षों तक अयोध्या में रहें और वहां तपस्या भी की।

अयोध्या बुद्ध का उपदेश स्थल:

भगवान बुद्ध के सान्निध्य में उनकी प्रमुख उपासिका विशाखा जी ने अयोध्या में ही धर्म की दीक्षा ली थी और उसके स्मृति स्वरूप अयोध्या में मणि पर्वत के नजदीक बौद्ध विहार की स्थापना करवाई थी। भगवान बुद्ध के महा परिनिर्वाण के पश्चात इसी बुद्ध विहार में उनके दांत रखे गए थे।

भारतीय साहित्य में इस बात का भी उल्लेख है कि बौद्ध धर्म के प्रचार और प्रसार कार्य के लिए गौतम बुद्ध जी कई बार अयोध्या आये। यहां तक कि बौद्ध धर्म के धर्मावलंबियों को मानव जीवन के अल्पकालीन, नश्वरता और निस्सरता विषय पर उपदेश भी दिये।

संयुक्त निकाय के माध्यम से यह ज्ञात होता है कि अपने अयोध्या निवास के दौरान भगवान बुद्ध ने अपने अनुयायियों को बौद्ध धर्म से संबंधित कई उपदेश दिएं थे।

प्राचीन बौद्ध ग्रंथों में साकेत के रूप में अयोध्या का महत्वपूर्ण उल्लेख मिलता है। भगवान बुद्ध के समय के छह प्रमुख नगरों में साकेत की भी गिनती होती है। सुप्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु सारिपुत्र एवं अनिरुद्ध जी के अयोध्या में ठहरने की बात भी कही गई है।

जैन धर्म के धर्मावलंबियों के लिए क्यों खास है अयोध्या:

अयोध्या वह पवित्र स्थल है, जो अपने हृदय में ना जाने किन किन धर्मों, परम्पराओं, संस्कारों… को सहेजे हुए है। उन्हीं में से एक धर्म है-जैन। जैन धर्म के धर्मावलंबियों के लिए भी अयोध्या एक अति महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है और हो भी क्यों नहीं, जैन धर्म के अनुयायियों के अनुसार 24 तीर्थंकरों में से पांच का जन्म स्थान अयोध्या है। जिनका जन्म अयोध्या में हुआ उनके नाम इस प्रकार हैं : आदिनाथ, अजीत नाथ, अभिनंदन नाथ, सुमित नाथ और अनंतनाथ।

ऋषभदेव (आदिनाथ ) जी का जन्म चैत्र कृष्ण नवमी को कुल परंपरा के सातवें कुलकर नाभिराज जी और उनकी पत्नी मरुदेवी जी से हुआ था। वैसे तो जैन और हिन्दू धर्म दोनों ही अलग अलग धर्म है, लेकिन इतिहासकारों की मानें तो यह एक ही कुल के धर्म हैं। शिव पुराण में ऋषभ देव को शिव के 28 योग अवतारों में गिना गया है।

दुनिया के सबसे प्राचीन धर्म जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर एवं संस्थापक भगवान ऋषभदेव का ऋग्वेद, अथर्ववेद, मनुस्मृति तथा भागवत आदि ग्रंथों में भी वर्णन मिलता है।

यहां पर एक बात और साझा करना चाहूंगा कि जैन धर्म के जानकार बताते हैं कि 24 तीर्थंकरों में से 5 की जन्मभूमि/अवतरण स्थली अयोध्या होने के कारण यह एक शाश्वत तीर्थ स्थल कहलाता है। चूंकि जैन धर्म में इन अवतारों को भगवान मानते हैं और उनका अवतरण अयोध्या में होने से जैन अनुयायियों के लिए यह एक शाश्वत तीर्थ स्थल है। अयोध्या, जैन धर्म के लिए कितना महत्वपूर्ण है इस बात का अन्दाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों के 120 कल्याणक में से 19 कल्याणक इसी पवित्र अयोध्या की भूमि पर हुए।

जैन धर्म का अयोध्या से अटूट नाता होने का एक और सबसे बड़ा कारण है कि जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों का जन्म भगवान श्रीराम के इक्ष्वाकु वंश से माना जाता है। जैन धर्म का संस्थापक ऋषभ देव को माना जाता है, जो जैन धर्म के पहले तीर्थंकर थे और भारत के चक्रवर्ती सम्राट भरत के पिता थे।

अयोध्या में जैन मंदिर:

परम पवित्र और पूजनीय स्थल अयोध्या जैन समुदाय के लोगों के लिए और अधिक महत्वपूर्ण इसलिए हो जाता है कि उनके क‌ई तीर्थंकरों को समर्पित मंदिर यहां विद्यमान हैं। जैन धर्म के अनुयायी हर वर्ष खास अवसरों पर अपने इन तीर्थंकरों के पूजन अर्चन और श्रद्धा सुमन अर्पित करने के उद्देश्य से समय-समय पर यहां आते रहते हैं।

जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव (आदिनाथ) जी की 31 फुट की ऊंची एक विशाल मंदिर अयोध्या जी के रायगंज नामक स्थान पर विराजमान है। इस मंदिर को त्रेतायुग कालीन बताया जाता है। यह एक दिगंबर जैन मंदिर है। इसी तरह दूसरे तीर्थंकर अजितनाथ जी को समर्पित अयोध्या के बेगमपुरा नामक स्थान पर उपलब्ध है। जिसे ‘अजितनाथ की टोक’ के नाम से जाना जाता है। इसी प्रकार गोलाघाट में भगवान अनंतनाथ मंदिर, रामकोट में भगवान सुमंतनाथ मंदिर और सराय इलाके में भगवान अभिनंदन नाथ मंदिर विद्यमान हैं।

जो अयोध्या के आसपास के रहने वाले हैं और किसी भी धर्म के अनुयाई हैं। सभी जानते हैं कि श्री राम जन्मभूमि के पीछे आलमगंज कटरा मोहल्ला में एक जैन श्वेतांबर मंदिर है, जिसकी बनावट भव्य और निराली है। यहां अयोध्या में जन्मे जैन धर्म के पांचों तीर्थंकरों की बहुत ही सुंदर और भव्य मूर्तियां विराजमान हैं। आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि इन मंदिरों में हिन्दू भी आकर तीर्थंकरों की जैन पद्धति और नियम से विधिवत पूजा आरती करते हैं।

 

एक बात और जानने योग्य है कि अयोध्या में बहुत ज्यादा जैन समाज के लोग नहीं रहते हैं। लेकिन कल्याणक आयोजनों में देश विदेश से जैन समुदाय के लोग यहां आते ही रहते हैं। पद यात्रा करके आने वालों की संख्या बहुत ज्यादा है।

आलेख के शुरुआत में मैंने कहा था कि बौद्ध तथा जैन दोनों धर्मों में कुछ सामानता है तो कुछ विचारों में भिन्नता भी। आइये इसे इस प्रकार समझने की कोशिश करते हैं:
– हालांकि ये दोनों ही धर्म अहिंसा के सिद्धांत के पोषक हैं पर जैन धर्म इस बारे में ज्यादा सख्त है।
– बौद्ध धर्म आत्मा के अस्तित्व में विश्वास नहीं करता लेकिन दूसरी ओर जैन धर्म प्रत्येक जीव में आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करता है।
– जहां बौद्ध धर्म में मोक्ष प्राप्ति के लिए कठोर साधना करने में विश्वास नहीं किया जाता, वहीं जैन धर्म में मोक्ष प्राप्ति के लिए कठिन तपस्या तथा शरीर त्याग को अहम माना गया है।
– जहां तक आचरण का सवाल है बौद्ध धर्म अष्टांग मार्ग पर जोर देता है वहीं दूसरी ओर जैन धर्म श्री रतन पर जोर देता है।

अर्थववेद में परम पुनीत पावन अयोध्या का अर्थ “ईश्वर का नगर” बताया गया है और इसकी संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है। साथ ही, स्कंदपुराण के अनुसार अयोध्या शब्द “अ” कार ब्रह्मा, “य” कार विष्णु और “ध” कार रुद्र का स्वरूप है। कहीं कहीं तो यह भी कहा जाता है कि इस प्राचीन नगरी अयोध्या को स्वयं भगवान विष्णु के निर्देश पर बसाया गया था। अयोध्या को मंदिरों और घाटों की प्रसिद्ध नगरी भी कहते हैं यहां सरयू नदी के किनारे 14 प्रमुख घाट हैं।

अयोध्या कई ऋषि मुनियों, महात्माओं, योद्धाओं और अवतारी पुरुषों की जन्म भूमि, तपोस्थली, उपदेश स्थल कल्याणक स्थल है। जो इस परम पवित्र धरा को सर्व प्रिय एवं पूजनीय बनाता है।

बशिष्ट नारायण सिंह
ग्रेटर नोएडा, भारत

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