अयोध्या की स्थापना

अयोध्या की स्थापना

अयोध्या जिसे साकेत और राम नगरी भी कहा जाता है, भारत के उत्तर प्रदेश में स्थित है। इसका ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व अवर्णनीय है। इतिहास में इसे कौशल जनपद भी कहा जाता था। अयोध्या कौशल राज्य की प्रारंभिक राजधानी थी । गौतम बुद्ध के समय में कोशल के दो भाग हो गए थे- उत्तर कोशल और दक्षिण कौशल । बीच में पावन सरयू नदी थी।

 

वेदों में अयोध्या की तुलना स्वर्ग से की गई है और इसे ईश्वर की नगरी बताया गया है । अथर्ववेद में यौगिक प्रतीक के रूप में अयोध्या का उल्लेख है-‘यष्ट चक्र नवद्वारा देवानाम पूरयोध्या ।’

अयोध्या के इतिहास का उद्गम ब्रम्हा जी के मानस पुत्र मनु से सम्बद्ध है । अयोध्या और उसके सूर्यवंश का प्रारम्भ मनु के पुत्र इक्ष्वाकु से हुआ । वैवस्वत मनु लगभग ६६७३ ईसा पूर्व हुये थे । ब्रम्हा जी के पुत्र मरीचि के पुत्र कश्यप थे। कश्यप के पुत्र विवस्वान और विवस्वान के पुत्र वैवस्वत मनु हुये। मनु के दस पुत्रों में इक्ष्वाकु कुल का ही ज़्यादा नाम हुआ। इसी कुल में आगे चल कर श्री राम का जन्म हुआ।

 

पौराणिक कथाओं के अनुसार मनु ने ब्रम्हा जी से अपने लिए एक नगर बसाने के लिए उपयुक्त भूमि की मांग की तो ब्रम्हा जी उनको भगवान विष्णु के पास ले गए। विष्णु जी ने साकेत को उपयुक्त बताया और देवशिल्पी विश्वकर्मा को उनके साथ उसके निर्माण के लिए भेजा । गुरु वशिष्ठ को रामावतार के लिए उपयुक्त लीला भूमि तलाशने का उत्तरदायित्व दिया गया। गुरु वशिष्ठ ने सरयू के तट पर लीलाभूमि का चयन किया । तब विश्वकर्मा ने नये नगर का निर्माण किया । स्कन्द पुराण के अनुसार अयोध्या भगवान विष्णु के चक्र पर विराजमान है ।

बेंटली और पार्जिटर जैसे विद्वानों ने ‘गृह मंजरी’ आदि प्राचीन ग्रंथों के आधार पर इसकी स्थापना का काल २२०० ईसा पूर्व के आस पास माना है । इस वंश में रामचन्द्र जी के पिता दशरथ तिरसठवें राजा हुए। यह पुरी सरयू के तट पर लगभग १४४ किलोमीटर लम्बाई और ३६ किलोमीटर चौड़ाई में बसी थी।

 

जैन मत के अनुसार यहाँ २४ तीर्थंकरों में से पांच तीर्थंकरों का जन्म हुआ । तीर्थंकर ऋषभनाथ जी , अजितनाथ जी ,अभिनन्दन जी और सुमितनाथ जी इक्ष्वाकु वंश के थे । अयोध्या मूल रूप से मंदिरों का शहर है यहाँ आज भी अनेकों अवशेष देखे जा सकते हैं । यहाँ पर सातवीं शताब्दी में चीनी यात्री व्हेनसांग आया था । उसके अनुसार यहाँ २० बौद्ध मंदिर तथा ३००० भिक्षु थे।

कहते हैं भगवान श्री राम के पुत्र कुश ने एक बार पुनः अयोध्या का पुनर्निर्माण कराया था । इसके बाद अगली ४४ पीढ़ियों तक सूर्यवंश का इस पर राज्य रहा । भगवान् राम से लेकर द्वापरयुग के महाभारत और उसके भी कुछ समय बाद तक सूर्यवंशी इक्ष्वाकुओं का उल्लेख मिलता है। इस वंश का ब्रहद्रथ महाभारत के युद्ध में अभिमन्यु के हाथों मारा गया था । उसके बाद अयोध्या उजड़ सी गई । फिर मौर्यों से लेकर गुप्तों ने राज्य किया अंत में मुस्लिम शासकों महमूद गज़नी , सैयद सैलार , तैमूर , महमूद शाह और फिर बाबर ने यहाँ राज किया । १५२८ में बाबर के सेनापति ने यहाँ बाबरी मस्जिद का निर्माण किया। १९९२ में विवाद के चलते उस मस्जिद को ढहा दिया और एक बार पुनः श्री राममंदिर की स्थापना करके राम लला का राज्य वहां स्थापित हो रहा है।

मानव सभ्यता की पहली पुरी होने का पौराणिक गौरव अयोध्या को स्वाभाविक रूप से प्राप्त है। फिर भी रामजन्मभूमि , कनक भवन , हनुमानगढ़ी ,राजद्वार मंदिर ,दशरथमहल , लक्ष्मणकिला , कालेराम मन्दिर , मणिपर्वत , श्रीराम की पैड़ी , नागेश्वरनाथ , क्षीरेश्वरनाथ श्री अनादि पञ्चमुखी महादेव मन्दिर , गुप्तार घाट समेत अनेक मन्दिर यहाँ प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। बिरला मन्दिर, श्रीमणिरामदास जी की छावनी , श्रीरामवल्लभाकुञ्ज ,श्रीसियारामकिला ,उदासीन आश्रम रानोपाली तथा हनुमान बाग जैसे अनेक आश्रम आगन्तुकों का केन्द्र हैं।

शहर के पश्चिमी हिस्से में स्थित रामकोट में स्थित अयोध्या का सर्वप्रमुख स्थान श्रीरामजन्मभूमि है। श्रीराम-लक्ष्मण-भरत और शत्रुघ्न चारों भाइयों के बालरूप के दर्शन यहाँ होते हैं। यहां भारत और विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं का साल भर आना जाना लगा रहता है। मार्च-अप्रैल में मनाया जाने वाला रामनवमी पर्व यहां बड़े जोश और धूमधाम से मनाया जाता है।

मंजू श्रीवास्तव

अमेरिका

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