महाशिव

महाशिव

मेरे दोस्त
यह कलयुग है,
सतयुग नही
आज…
यदि शिव भी विषपान करें
तो देवता इसे
उनकी डिप्लोमेसी कहेंगे
किसी गहरे षड्यन्त्र की कड़ी कहेंगे।।
आज कौन किसके लिये
विष पीता है??
कौन दूसरों का दुख जीता है??

पर तुम
दूसरों के हिस्से का विषपान
ही नही कर रहे
अपने हिस्से का अमृत भी
उन्हें दे रहे हो…..

बस रहने दो अब
दूसरों के पथ के कांटे बीनना

अपने पांव तो देखो
छलनी हैं कैसे
कैसे रिस्ता है
रक्त इनसे….

यह वहम छोड़ दो कि
इससे कांटों की प्यास बुझ जायेगी…
तृप्त होना इनका स्वभाव नही
यह अतृप्त हैं
अतृप्त ही रहेंगें

मेरे दोस्त
युग को पहचानो
महाशिव मत बनो।।।

सोनिया अक्स
साहित्यकार

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