डाॅ रजनी झा की कविताएं

डाॅ रजनी झा की कविताएं

1.प्रेम (सीता)

सीता चकित हो गयी थी
विवश व्यथित हो गयी थी
सजल नयन लक्षमण को देख
खता अपनी पुछ रही थी।

आर्यपुत्र ने क्यों सजा दिया
अपने से क्यों दूजा किया
चौदह वर्ष वन मे संग रखा
अब क्यों अपने से दूर किया?

निरूत्तर लक्षमण सर झुका खड़े रहे
किंकर्तव्यविमूढ़ वह प्रस्तर बन जड़ रहे
विस्मित लक्षमण सोचे भैया कैसे क्रूर हुए
भाभी को निर्वासित कर आने को कह रहे।

जानकी स्वयं में उलझी रहीं
अपनी गलती को ढूंढ रही
पति संग निभाये प्रेम को याद कर
जानकी स्वयं को सार्थक मान रही।

राम की स्मृति में खो गयीं
भर्ता स्मरण कर रूआंसी हो गयी
पुनः वन में रहने को क्यों बाध्य किया
सीता प्यार के एहसास में खो गयीं।

पति के गुणों को स्मरण कर वह
संग किये प्रणय को याद कर वह
राजधर्म का शायद यह हो कोई विधि
उदरस्थ प्रेम अंश सहारे जि लेगी वह।

प्यार फिर भी कम न होगा
आक्रोश कभी संवादित न होगा
प्रिय को वह असीम प्रेम करती रहेगी
सीताराम का प्रेम सदा उद्धृत होगा।

2.देश का लाल

भारत का लाल आज कहीं खो गया
कंस के वंशज के हत्थे चढ़ गया
शून्य गगन में विलीन होकर,
शहीद हो अमरत्व पा लिया
सूना आंचल और शून्य में राह तकती मां को विवश छोड़ गया
देश का लाल आज चिरनिद्रा में सो गया
पिता के संबल और सहारा
आज कायरों के भेंट चढ़ गया
भारत का सपूत आज कहीं खो गया
बिकल व्यथित भार्या का कवच कहीं खो गया
सप्तवेदी का सात वचन तोड़
माटी का बेटा माटी में मिल गया
अपने पुत्र -पुत्री को अकेला छोड़
दोनों को परिणय सूत्र में देखने की लालसा लिए चला गया
आज भारत का सपूत कहीं खो गया
गीदडों की वंचनाओं का शिकार हो गया
अपने लहू के कतरों से देश का ॠण चुका कर गया
अपना जीवन होम कर
आज भारत का सपूत आहूति दे गया
आज भारत का लाल सदा के लिए कहीं खो गया।

कब तक हमारे लाल बलि चढ़ेंगे?
कब तक अन्यायी का अन्याय सहेंगे?
कायर के कायरता के दंश हे आहत
आखिर! कब तक प्राणों की आहुति देंगे?

कब तक माँ की आंखों के तारे ,काल कवलित होंगे?
माँ की आंचल और नयन
कब तक रिक्त रहेंगे?
पिता अपनी बुढापे की लाठी
कब तक खोकर जी पायेंगे?
कब तक राखी के दिन बहन भाई को ढूंढेंगी?
पत्नी ,सूनी कलाई और शून्य जीवन
आखिर!कब तक काटेगी?
कब तक संतान पिता सुख से वंचित रहेगा?
आखिर कब तक????

डॉ रजनी दुर्गेश
देहरादून, भारत

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