शहादत

शहादत

क्या कहें कैसे कहें ,कहने को कुछ रहा नहीं ।
माँ की लंबी तपस्या , बक्से में बंद रहा नहीं ।
बक्से में तन टुकड़ों में , आत्मा ब्रह्म लीन है ।
साधना सिद्धि तपस्या , देश धरोहर रहा नहीं ।

बस तिरंगा देखतीं हूं , लाल मेरा दहाड़ा नहीं ।
आस थी विश्वास था , दुश्मनों को छोड़ा नहीं ।
लेकिन क्या देख रही हूं , बिन लड़े मारा गया ।
व्यापार रहा यह कायरों , इमान को जोड़ा नहीं ।

छल कपट जितना करो , कोई धर्म दुहाई नहीं ।
दुश्मन तो दुश्मन ही रहता , अपना कोई भाई नहीं ।
मार पड़ेगी ऐसा कि तुम , दुनिया से मिट जाओगे ।
तुम जैसे लोगो को तो , मिलती कभी रिहाई नहीं ।

छल बल से जितना जी लो , हम पक्के भारत वासी हैं।
दुश्मनों को समूल नष्ट करने ,के हम पक्के विश्वासी हैं ।
क्षितिज तक खदेड़ कर भी , नेस्तनाबूत करेंगे तुमको ।
सारी दुनिया देखेगी नजारा , इस देश धरा के निवासी हैं।।

मेरे शहीद जवानों मेरी मानो , तुम नहीं बक्से के अंदर ।
तुम देश धरा कण कण में , जहां बहता लहू समंदर ।
तुम मान हो सम्मान हो यहाँ , इस धरती से अंबर तक ।
तुम माँ के कीमती लाल हो , माँ कहती सदा ही सुन्दर ।।

 

 

प्रतिभा प्रसाद कुमकुम
वरिष्ठ साहित्यकार
जमशेदपुर, झारखंड

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