भोर की प्रतीक्षा
आज प्लेटफार्म पर कुछ ज्यादा ही भीड़ थी,शायद कोई रैली जा रही थी..पटना,लोग दल के दल उमड़े चले आ रहे थे ,हाथों में झंडे ,छोटे बड़े झोले,गठरियाँ लादे हुए …मुफ्त में यात्रा कर ,कुछ रूपये बचाने के लिए बेबस मजबूर लोग भी थे।तोकुछ ऐसे लोग भी थे जो रैली के बहाने बिना एक भी पैसा खर्च किये अपने गाँव घर हो आना चाहते थे…स्टेशन का कोई कोना खाली नहीं बचा था ,तिल रखने की भी जगह नहीं थी,…तभी शोर हुआ ,प्रवेश द्वार की ओर सबकी नजरें घूम गईं –नेता जी की जय !..नेताजी की जय !”सफेद लक दक कुरता पायजामा पहने -टोपी लगाये थुलथुल पेट वाले नेताजी को घेरे हुए .उत्साही युवाओं का निर्द्वन्द वध समूह आते ही बेंचो पर जम कर बैठ गया था .-”टाटा पटना ”ट्रेन आ रही थी,उद्घोषणा की जा रही थी –”टाटा से चल कर पटना जाने वाली ट्रेन प्लेटफार्म नम्बर एक पर आ रही है ”..भगदड़ मच गई -हर कोई आगे निकल जाना चाहता था ,कहीं सीट मिले या न मिले!..टिकट की चिंता किसी को नहीं थी ,भला कौन रोक सकता है?पूरा डिब्बा उन्हीं का तो है ,आज भर के तो वे बादशाह ही हैं .ये रैली वाले लोग .”मजमा पार्टी”जिंदाबाद !जिंदाबाद के नारे लगाते सभी धड़धड़ा कर डिब्बे में घुसे जा रहे थे,..मै भी अपना बैग उठाये अपनी रिजर्व बर्थ पर आकर बैठी ही थी कि एक आवाज आई –”थोडा पीछे हटेंगी मैडम?”मैंने चौंक कर देखा –एक युवक दो बड़े बैग उठाये अधिकार से पूछ रहा था .
”क्यों भाई ,आपकी बर्थ कौन सी है ?”मैंने पूछा .
”बर्थ तो कोई नहीं पर आज के लिए तो सारा डिब्बा अपना ही है ,–जान लो ”उसकी आवाज में ठसक थी .
”यह रिजर्व बोगी है ,आप बाहर जाइये या टी टी से मिलिए –मै नहीं हटूंगी ”
वह युवक अड़ गया था लेकिन अब मेरी बर्थ छोड़ कर सामने वाली खाली बर्थ पर अपना सामान रख कर बैठ गया उसके पीछे पीछे दो भरी थैले उठाये एक दस वर्षीय बालक भी था ..उसके सामने थैले रख कर हांफने लगा ,युवक ने उपेक्षा से कहा –”आ गया ?चल यहीं बैठ जा ”.वह बेचारा अपना गमछा बिछा कर फर्श पर ही बैठ गया. .बिखरे हुए छोटे छोटे बाल,पुरानी टी शर्ट ,जिसका कालर एक ओर से उधड़ा हुआ था ,हाथों में छोटा सा प्लास्टिक का झोला जिसमे शायद कुछ पुराने कपड़े थे ,वह बड़ी हिफाजत से छिपाए था .बार बार अपनी छाती के पाकेट पर हाथ लगता शायद कुछ पैसे होंगे आँखों से घबराहट छलक रही थी…गाड़ी चल पड़ी थी लेकिन कम्पार्टमेंट का शोर अभी थमा नहीं था लोग ठूंस ठूंसकर भरे जा रहे थे .मुफ्त की यात्रा का लाभ उठाने वालों की कमी नहीं थी .मै इस डिब्बे में अकेली थी पटना विमेंस कालेज में आयोजित बी एड की प्रायोगिक परीक्षा लेने जा रही थी .मेरे साथ दो और अध्यापक तथा शिक्षिकाएं भी थीं .पर उनका रिजर्वेशन अन्य बोगियों में हुआ था .मै उब भी रही थी और मन ही मन डर भी था कि इस अनियंत्रित भीड़ से अनिश्चित आक्रोश और उत्तेजना की सम्भावना ज्यादा थी .रात के आठ बज रहे थे –शोर गुल कुछ थम सा गया था ,शायद रैली वालों को खाना बांटा जा रहा था .पत्तों के दोने में दो चार अधपकी पुरियां -अंचार ..सभी लपक पड़े .वह बच्चा ललचाई नजरों से देख रहा था ,खाना बांटने वाले लड़कों से मेरे सामने वाली सीट का युवक उलझ गया ,—ई का रे ?..इ खाना ह ?एकरा से का होई? नारा लगावतनटी दुखा गईल ,..कहाँ बाड़े नेताजी ?”वह जोर जोर से चिल्ला रहा था और उन लड़कों से झगड़ते हुए दूसरी तरफ निकल गया …बच्चा बेचारा भूखा था,मैंने पूछा -”भूख लगी है ?”..उसने ‘हाँ ‘में सिर हिलाया मैंने बैग से दो आलू के परांठे निकाल कर दिए .वह जल्दी जल्दी खा रहा था ..न जाने कब से भूखा था ,मैंने पूछा -”क्या तुम इस लड़के के साथ हो ?”,
”नाहीं ,हम तो समान उठाके लाये हैं .ई बोले की चल ,सामान पहुंचा दे पटना तक चल जायेगा ..एको पईसा नहीं लगेगा ”
”नाम क्या है तुम्हारा ?क्या यहीं टाटा में रहते हो ?”—नहीं दीदी जी ,हम तो दिल्ली से आय रहे हैं ”हम रमुवा हैं,”….
”दिल्ली से ?..कैसे ?… किसके साथ ? ‘मै घबरा कर सवाल पर सवाल पूछती जा रही थी ,अब वह रोआंसा हो उठा था दुःख व पीड़ा की लकीरें उसके चेहरे पर साफ साफ दिखाई दे रही थीं ..वह पानी पीकर धीरे धीरे अपनी कहानी बताने लगा –”हमारा घर बिहार में ,छपरा में है ,एगो छोट गाँव में जटुवा में ,बाबूजी दूध बेचते हैं-हम राजेश भईया के साथै दिल्ली गए थे ऊ माई से बोले की उहाँ पढ़ाएंगे और नौकरी भी लगवा देंगे , तुम्हारे घर का दशा भी सुधर जायेगा,,,,हम तीन बरिस वहां रहे पर कभी इस्कूल नहीं भेजे हमको ..काम भी करवाते और मारते भी थे .माई को फोन भी नहीं करने देते थे बोले –”तुम्हारी माई को पईसा भेज दिए हैं ‘..हम माई से,बाबूजी से ,आउर दिदिया से मिलने खातिर भाग आये —तरकारी खरीदने के लिए दू सौ पचास रूपया दी थी भाभी ,उसी को लेकर गाड़ी में बैठ गए ..दोस्त हमको अपना कपड़ा दिया और थोडा पैसा भी ..उसी को लेकर …”अब वह जोर जोर से रोने लगा था.मै स्तब्ध और अवाक् थी इतना मासूम और भोला —उसकी आँखों में चमकते उसके सपनों की राख धुंआ धुंआ हो गई उसकी जिन्दगी की कहानी बयां कर रहे थे ,रामुवा ने अपनी पीठ दिखाई जिस पर चोटों के नये पुराने -काले नील निशान स्पष्ट थे .मेरी आँखें भींग रही थी,मैंने उसे उपर अपनी बर्थ पर बैठाया और उसके आंसू पोंछे .रमुवा के मन में अपनी माई -दिदिया ,बाबूजी से मिलने की तड़प जाग उठी थी .गुमसुम बैठा न जाने क्या सोच रहा था ,…”तुम्हे अपने घर का पता मालूम है ?..
”कुछ कुछ ..छपरा से निचे उतर के ,चउंड-खेत वाला रास्ता से जाते हैं ..हम भुलायेंगे नहीं ,”..एक उम्मीद सी जगी थी उस बाल मन में …तभी वह युवक भी आ गया था ,हाथों में ढेर सारी पूरियां और कई ठोंगे लेकर ,अपनी कब्जाई गई सीट पर बैठा ,अख़बार बिछाया और उसी पर पूरियां रख खाता रहा ….थोड़ी देर बाद चार पूरी और बची हुई आलू की भुजिया कागज में लपेट रमुवा को देते हुए बोला –”खा ले ”..रमुवा ने सिर हिलाकर मना कर दिया
“–नहीं ..खा लिए हैं ,दीदी जी ने दिया”..
”फिर भी रख ले ,मै आगे के स्टेशनपर उतर जाऊंगा”. ” ”रमुवा ने पूरियां झोले में डाल लीं ,वह धीरे धीरे मुझसे घुलने मिलने लगा था उसका मुझ पर विश्वास भी जम रहा था,वह कहीं उदास या निराश न हो जाये मैंने उससे बात करनी शुरू की —”कैसी लगती है तुम्हारी माई ?”
”बहुत सुंदर ..दीदीजी ,माथे पर बड़ी सी गोल बिंदी लगाती है .छोटा सा घुंघट डाले फिक फिक हंसती रहती है -हमको बबुआ बुलाती है ”’….वह यादों में खो गया था .”और तुम्हारे बाबूजी ?”..—-” बाप रे !..बहुते काम करते हैं दिनभर बाबू साहब के खेत में कोदाल चलाते हैं ,गैया दुहते हैं –साइकिल से सब गाँव में दूध बांटते हैं …शाम को तरकारी -भाजी लेके आते हैं ..और हम लोग साँझ को भूंजा खाते हैं साथै बैठ कर ,..माई चाह [चाय ]बनाती है ,”मैंने प्यार से उसका माथा सहलाते पूछा –अच्छा रमुवा ,तुम्हे दिदिया की याद आती है ?”——
”आती है दीदीजी ,दिदिया पांच क्लास पढ़ी है .. खाना बहुत अच्छा बनाती है” वह उल्लसित होकर बोल रहा था –”तुम मेरे साथ पटना चलो ,वहां मेरा काम हो जायेगा तो मै तुम्हारे साथ तुम्हारे गाँव चलूंगी -तुम्हे सही सलामत घर छोड़ने ..मुझ पर भरोसा है न ?”–”हाँ दीदी जी ”….लेकिन उसका बाल मन असमंजस में था यह मै जान गई थी ,फिर वह बड़े अधिकार से बोल –”सच्ची दीदी जी ,माई के घर चलेंगी?”—-‘हाँ ,जरुर” अब वह आश्वस्त लग रहा था मैंने उसे बताया कि मै टीचर हूँ ,पढ़ाती हूँ तब वह और भी निश्चिंत नजर आने लगा था .अचानक जैसे मेरी परीक्षा ले रहा हो ,बोला–”आप बापू जी को जानती हैं दीदी ?”—
“कौन बापू ? ”
”अरे वाही सांच और अहिंसा वाले ?”
हाँ हाँ -गाँधी जी जो अंगरेजों को लड के भगा दिए थे ना ? मुझे भी इन अनगढ़ सवालों के उत्तर देने में मजा आ रहा था ,,अब तो रमुवा पूरी तरह मुझ पर विश्वास कर रहा था कि चलो कोई तो है जिसे वह भी जानता है और दीदी जी भी .ट्रेन में आस पास के सहयात्री भी उसकी बातें सुन मुस्करा रहे थे ,उसकी बातों के भोलेपन ने सबको मोह लिया था ,और उसकी मजबूरी..गरीबी ,पनियाई आँखों से छलकते छोटे छोटे सपनों की किरचें ..देख सबकी सहानुभूति उसके साथ हो गई थी ,..रमुवा ने सबकी नजरें बचाकर अपनी जेब फिर टटोली …उसके थोड़े से पैसे सुरक्षित थे ..तभी वह आश्वस्त नजर आ रहा था .रात ज्यादा हो गई थी ..सामने वाला लड़का अगले स्टेशन पर उतरने के लिए तैयार था अब तक रमुवा की रामकहानी सुन कर वह भी उससे सहानुभूति महसूस करने लगा था,उसने रमुवा से कहा -”दिदिया जी के साथ पटना चल जाना ..ले, यह पईसा रख ले ,और मेरा फोन नम्बर भी है ..जरूरत पड़े तो किसी से फोन करवा देना ,”कहकर वह नीचे उतर गया ,रामुवा को मैंने उसी खाली बर्थ पर सुलाया पर मेरी आँखों में नींद जरा देर से आई —”अब तक केवल किस्से ,कहानियों या समाचार पत्रों में ही देखा सुना था ..इन असहाय गरीब बच्चों की नियति पर मेरा मन बार बार द्रवित हो रहा था, मै शिक्षिका थी ,,ऐसे बच्चों पर अनेक सेमिनार ,सभाओं ,परिचर्चाओं में शामिल हुई थी,व्याख्यान पढ़े और सुने भी थे ,पर क्या कागजों पर सिर्फ योजनायें बनाना ,बहसें कर ही हमारा कर्तव्य पूरा हो जाता है?..आज अचानक मिले इस अनपेक्षित घटनाक्रम ने मुझे हिला दिया था ..मै उसकी मदद जरुर करुँगी ..इनके लिए भेजी गई सरकार की योजनाओं और सहयोग राशि बीच में कहीं खो जाती है –ये बेचारे जानते भी नहीं ..और इनका शोषण होता रहता है ……सोचते सोचते मै सो गई थी . आँख खुली तो सुबह हो चुकी थी ,रमुवा निश्चिन्त हो सोया था ,–पटना आ रहा था .आधे घंटे बाद रामुवा को उठाकर मैंने कहा –चलो ,नीचे उतरते हैं पटना आ गया है ……स्टेशन पर उतर कर मै अपने साथियों से मिली ..रमुवा की कहानी सुन कर और उसके मदद करने के नाम पर सभी उत्साह से भर उठे —वह मेरे साथ दो दिनों तक रहा बिल्कुल मेरे बच्चे की तरह ..सबसे घुल मिल गया था .,इस बीच हमने पुलिस को इसलिए सूचना नहीं दी की वह सीधे रमुवा को सुधार होम भेज देती और लम्बी प्रक्रिया चलती ,उसका घर खोजने -पता लगाने में .जिसके लिए वह हरगिज तैयार नहीं था..मेरी मित्र रजनी ने उसे चप्पलें खरीदवा दीं और मैंने नये कपड़े और ,अपने साथियों को छपरा के किसी सरकारी स्कूल में रामुवा की शिक्षा की व्यवस्था करने और जरुरी काम पूरा कर लेने की हिदायत देकर मै , रमुवा और रजनी छपरा जाने वाली बस पर सवार हो गए ,मै नहीं जानती थी कि अगर उसका घर नहीं मिला तो क्या होगा ?.बस ..एक उत्साह और ममत्व की पवित्र भावना थी जो मुझे प्रेरित कर रही थी कि मै उसका साथ दूँ ……रमुवा की कृतज्ञता भरी नजरें मेरे मातृत्व स्नेह को पहचान रही थीं ,..छपरा शहर जैसे जैसे नजदीक आ रहा था रमुवा के चेहरे पर खुशियों की अनेक लहरें आ जा रही थीं .बस के रुकते ही रमुवा कूद गया…”आइये न दीदी जी ,–इधर से जाते हैं” ..रेलवे लाइन पार करते ही ताड़ की तीन चार पेड़ों की ओट से दिख रहा गाँव ..उसके पहले सूखे खेतों की लम्बी श्रृंखला जिन्हें वह ” चवंर ”कह रहा था,–अब तो हमे भी उल्लास व उत्साह के उमंगों में डुबा दिया था रमुवा ने .वह आगे आगे दौड़ रहा था -और हम उसके पीछे पीछे …,करीब घंटे भर पैदल चलने के बाद ,जो पहला कुंए वाला खेत और खलिहान दिखा,वहां स्थित पीपल के नीचे रखी तीन पत्थर की पिंडियों ,जिन पर सिंदूर पुता था और कुछ फूल भी थे …उसने झुक कर प्रणाम किया और जोर जोर से रोते हुए दौड़ पड़ा —”देखो दीदीजी वो रहा हमारा घर !..”हम भी भावुक हो गए थे –कच्ची ईंटों का पुराना मकान ..पुआल के ढेर ..और घास के गट्ठर , सामने पड़ी जर्जर चारपाई पर लेटे किसी बीमार के खांसने की आवाज आ रही थी ..रमुवा दौड़ कर उस बीमार काया से लिपट गया –”बाबूजी !”….बिलख रहा था रमुवा।। और उसके बाबूजी की आँखों से बहते झर झर आंसू हमे भी विचलित कर रहे थे-रोने की आवाज सुन कर हाथो में पानी भरी बाल्टी थामे …शायद रमुवा की माँ थी–अचकचा कर हमे देखती हुई –दुबली पतली महिला की नजर जब रमुवा पर पड़ी तो वह ..अचम्भित ..स्तब्ध ..और हंसे या रोये की मुद्रा में खड़ी रही ,फिर–” बबुआ रे ! !,कहाँ चल गइल रहले बेटा ?”…फिर तो रुदन के उस बहाव ने हमे भी बहा दिया, माँ के टूटे दिल की करुण पुकार गंगा -जमुना की अनगिनत धाराओं में बिखर रही थी और उसकी तपिश हमे भी रुला रही थी -आस पास के लोग भी जुट गए थे ,….कुछ देर बाद उसकी माँ ने हमे गुड की चाय पिलाई ,भूंजा खिलाया.आन्सुवों के बीच उसकी माँ ने जो कहानी सुनाई ,वह चौंकाने वाली थी ,–जमींदार का बेटा राजेश आया है कल ही ,बता रहा था कि ”तुम्हारा बेटा पैसा चुराकर भागा है ,गया होगा दिल्ली बम्बई ..कितना पैसा खर्च किये हम उस पर ,पर देखो कितना नीच निकला …उसकी भरपाई के लिए .रमुवा की बहन को मेरे साथ भेज दो –घर का काम कर लेगी ”..मै और रजनी दोनों अवाक रह गई थी –शिक्षिका थी इस अमानवीय कृत्य को सुन नहीं सकी ..मन ही मन एक निर्णय लिया,पुलिस को फोन कर दिया और उसकी माँ को समझाया कि छपरा के सरकारी स्कूल में ही रमुवा की पढ़ाई की व्यवस्था हो जाएगी ..खाना व रहने की चिंता नहीं होगी ,..और उसकी बहन को बंधुआ मजदूर बना कर कोई नहीं ले जा सकता .सरकार ने क़ानून बनाया है .इस अल्प शिक्षित गाँव में भोले भाले गरीब मजदूरों को,किसानो को ऐसे ही बहकाया जा रहा था ,उनके हिस्से का धन हडप लिया जा रहा था ,गाँव के मासूम छोटे बच्चों को पढ़ने और नौकरी दिलाने के नाम पर ख़रीदा और बेचा जा रहा था –जो गलत है ”,,,,,,,सभी ध्यान से सुन रहे थे.,पुलिस के सामने रमुवा की पीठ पर बने लाल ,नील चोटों के निशान भी दिखाए गए,रमुवा ने रो रो कर अपनी व्यथा दरोगा जी और पूरे गाँव को सुनाई ,,राजेश और उसके परिवार वालों ने सबसे माफ़ी मांगी व सजा के डर से भयभीत होकर रमुवा के वेतन स्वरूप पैसे भी लौटा दिए . ..सुबह होने को थी …..रामुवा के बाबूजी माई वर्षों की कैद से आज मुक्ति की सांस ले रहे थे ,आज पहली बार उन्हें भी अपने इन्सान होने का अहसास हो रहा था .,वे बार बार हमारे पैरों पर गिरे जा रहे थे उस गाँव में वर्षों के अँधेरे के बाद आशा की स्वर्णिम भोर हो रही थी…..जिसकी सदियों से प्रतीक्षा थी …….
पद्मा मिश्रा
जमशेदपुर, भारत
Nice Post
Great post