अनुभूति
” माँ कल मेरे स्कूल में लेख प्रतियोगिता है, क्या आप मेरी मदद कर देंगी ” – अंकुर ने स्कूल से आ कर माँ से कहा ।
” हाँ क्यों नहीं बेटा किस विषय पर लिखना है ” – माँ ने प्यार से पूछा ।
” प्रेम ” पर — कहा अंकुर ने
अरे ! इतना सुंदर विषय है तुम स्वयं लिखने की कोशिश क्यों नहीं करते ?
पर माँ, मैं तो किसी से भी अभी तक प्रेम नहीं किया — मायूस हो कर अंकुर ने कहा।
” लो भला इतना तो प्यार करते हो मुझसे, पापा से , परिवार से, आस- पड़ोस यहाँ तक कि पेड़ – पौधों लिए भी तुम्हारी जान जाती है ” –कहा माँ ने
पर ! माँ लोग तो कहते हैं जब स्त्री पुरुष एक – दूसरे को पसन्द करते हैं और एक दूसरे के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं उसे प्रेम कहते हैं — पूछा अंकुर ने।
हाँ , उसे भी कहते हैं पर बेटा प्रेम इसके अलावा भी एक शाश्वत एहसास है जो किसी से भी किया जा सकता है ।
जैसे – किसी का ईश्वर से , माता – पिता का अपने बच्चों से ,कोई पुस्तकों से प्रेम करता है तो कोई देश है तुम्हें याद है चंद्रशेखर, भगत सिंह , लक्ष्मी बाई की कहानियाँ क्या इनके देशप्रेम को भुलाया जा सकता है ? समझाया माँ ने ।
“हाँ माँ आप सही कह रही हैं तो मैं क्या लिखूँ ” — पूछा अंकुर ने ।
लिखो प्रेम सिर्फ दैहिक आकर्षण नहीं बल्कि एक अनुभूति है ,एक एहसास है । जब किसी व्यक्ति या प्रकृति के किसी भी अंश को देख कर मन में स्नेह , ममता , अपनापन, आकर्षण और भावात्मक लगाव महसूस हो ,जहाँ मैं – तुम खत्म हो कर सिर्फ हम रह जाए , वही प्रेम है ।
“जैसे मेरा प्यारा बेटा मुझसे अगाध प्रेम करता है — ” कह माँ ने लाड़ से बेटे को गले से लगा लिया और अंकुर माँ के सान्निध्य में पवित्र प्रेम की अनुभूति से भर उठा ।
सत्या शर्मा ‘ कीर्ति ‘
लेखिका
रांची , झारखण्ड