गैंग्रीन
सौम्या और केशवी – कॉलेज की दो घनिष्ट सहेलियां विवाह के करीब बीस वर्षों पश्चात एक दूसरे से टकरायीं । गले मिलीं, बड़ी खुश हुईं , अलग अलग शहरों में रहने की वजह से इतने वर्षों में मिलना ही नहीं हुआ । आज इतने वर्षों बाद अचानक मॉल में टकरा गयीं..दोनों ही चालीस पार थीं ।
एक दूसरे से करने को इतनी सारी बातें …दोनों फ़ूड कोर्ट में कोने वाली टेबल पर बैठ गयीं । चाय और नाश्ता आर्डर करने के बाद दोनों एक दूसरे को देख कर पुनः मुस्कुरा दीं , दोस्ती ही ऐसी थी ।स्कूल कॉलेज की जो दोस्ती होती है न वह उम्रभर पक्की ही रहती है भले ही हम टच में रहें न रहें-वो अपनापन, वो प्यार वो हक़ अलग ही होता है, एक जो अटूट भरोसे की भावना होती है वह समय के साथ और मजबूत ही हो जाती है। शायद यही वजह थी कि इतने वर्षों बाद मिलकर भी वही विश्वास मौजूद था । बातों बातों में पता चला कि सौम्या अपनी वैवाहिक ज़िन्दगी से बहुत उदासीन थी । अपनी पक्की सहेली से इतने सालों बाद मिलने पर भी वही स्नेह, वही विश्वास की भावना थी इसीलिए दोनों के बीच कोई फ़िल्टर नहीं था । सौम्या ने बताया कि पतिदेव शुरू से ही उस पर हावी रहे हैं , न ही काम करने की अनुमति मिली न ही अपने हिसाब से ज़िन्दगी जीने की ।
वह शुरू के कितने वर्षों तक अपने सास ससुर के संग गाँव में रही फिर शहर आकर भी उसका टाईमटेबल पति और ससुरालवालों के हिसाब से ही सेट हुआ । बच्चे कब होंगे से लेकर बच्चे किस स्कूल में पढ़ेंगे…खाने में क्या बनेगा से लेकर साड़ी कौन सी खरीदी जाए- सारे छोटे-बड़े फैसले पति ही करते आएं हैं । सास और जेठानी की मनमर्ज़ी चलती सो अलग -सौम्या का पूरा दिन बस घर गृहथी के काम काज में ही ख़त्म हो जाता था । और अक्सर पति उस पर हाथ भी उठा देता है क्योंकि वह गर्म स्वभाव का है -यह बताते-बताते सौम्या की आँखें गीली हो गयीं… ।
वेटर तब तक गरमा गरम चाय व पकोड़े ले कर आ गया था, सौम्या ने दुपट्टे से अपनी आँखें पोंछीं ।
अपनी टॉपर सहेली की ऐसी गत देखकर केशवी परेशान हो गयी । कॉलेज के समय की तोप लड़की इतनी त्रस्त ज़िन्दगी जी रही है – केशवी को तो ये सारी बातें हज़म ही नहीं हो रही थीं ।
केशवी ने चाय का कप उसकी और बढ़ाते हुए पूछा- अब तेरे पति के व्यवहार में कुछ बदलाव आया ?
सौम्या ने जो बताया वो सुनकर तो केशवी को इतनी बढ़िया मसाले वाली चाय खारे ज़हर सी लगी । सौम्या के पति का रुबाब व डोमिनेट करने की प्रवृति पहले से ज़्यादा बढ़ गयी थी । पहले जो बहस या अपमान बंद कमरे में होता था वह अब घर की चारदीवारी से बाहर पब्लिक में भी होने लगा था । सौम्या के पति उससे कामवाली की तरह बर्ताव करते थे । सामजिक तौर पर वह बड़े बिज़नेस मैन की पत्नी थी- आलिशान घर, सुविधा संपन्न लाइफस्टाइल, फ्लाइट्स में घूमना फिरना,सतह पर एकदम नार्मल व खुश दिखने वाली उसकी सखी सौम्या अंदर से एकदम बेजान थी ।
केशवी अपनी सखी की हालत देखकर परेशान हो गयी । केशवी को दुःख भी हुआ साथ ही भरपूर गुस्सा भी आया- सौम्या के पति पर नहीं, खुद सौम्या पर ।उसने कहा- ‘तू पागल क्या है सौम्या ? इसमें ज़्यादा गलती तेरी है , अन्याय करना तो अधर्म है पर अन्याय सहना कोई वीरता का काम नहीं है, कोई ट्रॉफी नहीं मिलती उसकी …समझती है न तू ?’
‘डे वन से अगर भीगी बिल्ली नहीं बनी रहती तो आज यह गत नहीं होती तेरी …क्यों सहा इतना कुछ ? ऐसी क्या मजबूरी थी ? जिस कॉलेज वाली सौम्या को मैं जानती थी वह तो बड़ी समझदार , निडर व सॉर्टेड थी’ ।
सौम्या की आँखें पुनः भर आईं-‘ पता नहीं यार शुरू में समझ ही नहीं आया कि हो क्या रहा था ? साल भर में सब साफ़-साफ़ दिखने लगा तब तक मैं प्रेग्नेंट हो गयी थी , पति का व ससुरालवालों का बर्ताव ख़राब था पर पापा की माली हालत नाज़ुक होने से मैं मायके जा कर कुछ नहीं बोल पायी । लगा शायद कुछ समय में हालत बदलने लगें । उस वक़्त सोचती थी कि शायद बच्चा हो जाएगा तो मेरे दिन फिर जाएंगे, पर मेरी बेवकूफी ही रही । मैं टूटती चली गयी और किसी से कुछ कहने की हिम्मत ही नहीं रही मुझमें, दोनों बच्चों के होने के बाद मैं और करती भी क्या …सो चुपचाप इसी को अपना भाग्य मान कर जीने लगी । और देख आज पैसे-रूपये की कोई कमी नहीं है, उनका व्यवहार ज़रा कड़वा है पर बाकी दृष्टि से तो मैं संपन्न हूँ । आज दोनों बच्चे टीनएजर्स हैं और मैंने मानो अपनी इस ज़िन्दगी से समझौता सा कर लिया है । इतने सालों में कभी किसी से मन हल्का नहीं कर पायी, अंदर ही अंदर घुटती रही बस आज तुझसे मिलकर अपने आप दिल हल्का हो गया ‘- सौम्या की आँखों के साथ उसकी आवाज़ भी भीगने लगी थी । उसने खुद को संयत किया और केशवी का हाथ थाम कर प्यार से कहा-‘अच्छा बहुत हुआ मेरे बारे में, अपनी सुना, तू कैसी है ?’
केशवी ने मुस्कुरा कर कहा -‘ मैं बहुत खुश हूँ अपनी दुनिया में,अपना छोटा सा काम है बस दोनों बच्चों को पढ़ा लिखा रही हूँ, अपनी मर्ज़ी की मालिक हूँ ।’
‘अच्छा बड़ी ख़ुशी हुई कि तुझे बेहद प्यार से रखने वाला पति मिला है…’- सौम्या की बात को केशवी ने बीच में ही काटा व कहा-‘हा हा सौम्या मैंने अपने पति को शादी के दस सालों बाद डिवॉर्स दे दिया था और अपना भविष्य खुद बनाया।‘
अब चौंकने की बारी सौम्या की थी …-‘पर केशवी तलाक…तूने तलाक लिया ? क्यों ?’ …सौम्या ने तलाक शब्द कहकर आसपास नज़र दौड़ाई ज्यों देख रही हो कि किसी ने सुन न लिया हो …केशवी यह सब देख रही थी और उसकी हंसी निकल गयी …’ सौम्या इतना घबरा मत , तलाक ही दिया है किसी का मर्डर करके नहीं आयी हूँ..हा हा हा !’
‘पर तलाक केशवी…तलाक क्यों?’-सौम्या को तो यह बात हज़म ही नहीं हो रही थी कि उसकी प्रिय सखी ने तलाक ले लिया था ।
‘ सौम्या मेरी भी अरेंज्ड मैरिज ही हुई थी … उनकी पोस्टिंग दूसरे शहर में थी ,शादी के कुछ माह पश्चात जब वहां साथ रहने लगी तब उनका असली रूप सामने आने लगा – अक्सर शराब पी कर घर आना, वीकेंड्स अपने निक्कमे दोस्तों के साथ ही बिताना …यह ध्यान भी नहीं रखना कि घर के प्रति भी कोई जिम्मेदारी है।मुझसे तो कोई ख़ास सरोकार ही नहीं था, हाँ बस रात को बिस्तर में मैं ज़रूर नज़र आती थी उन्हें…हा हा ‘-केशवी की आवाज़ में अब तल्खी ज़्यादा थी ।
‘फिर उनका हाथ उठाना भी शुरू हुआ, जब पानी सर से गुज़रने लगा तब मैंने ससुराल और मायके -दोनों जगह इस बात को बताया …पता है सौमी सब ने मुझे ही संभालने को कहा कि अरे ऑफिस का स्ट्रेस होगा, घर पर नहीं निकलेगा तो कहाँ जाएगा …और मुझे ही अच्छी बीवी बने रहने की हिदायत देते रहे ।-हुंह …मुझे यह व्यवहार शुरू से अच्छा नहीं लगा था , मुझ पर ध्यान नहीं देना, मुझसे ज़्यादा बातचीत नहीं करना यहां तक तो चलो फिर भी ठीक था पर बिना बात के गुस्सा हो कर गाली देना और मार पीट करना मैं नहीं सह सकती थी , इसीलिए मैं भी उनके सामने ज़्यादा आती नहीं थी, काम से काम बस जय सिया राम !-हा हा हा ‘-कह कर केशवी खिन्न सी हंसी हंस पड़ी ।
‘दोनों बच्चे हो गए थे ,मैं भी उनकी परवरिश में खुद को व्यस्त रखती पर पति की बस मार खाना और उसके मूड के हिसाब से उसकी वैश्या बन कर रहना मुझे अब नामंज़ूर सा होने लगा । जिस के प्रति फीलिंग्स नहीं हो, प्यार नहीं हो वहां उसका छुआ भी नहीं सुहाता है- यह नार्मल साइकोलोजी है न सौमी …?’
‘फिर भी जैसे तैसे निभाती चली गयी-कि लोग क्या सोचेंगे-शायद मुझे ही ताना देंगे कि मुझमें कमी है, निभा नहीं पा रही हूँ ….पर एक दिन उसने हद ही पार कर दी । शराब के नशे में घर लौटा व मुझे बच्चों के सामने ही पीटने लगा ,फिर निर्वस्त्र करने की कोशिश करने लगा-उसके अंदर का जानवर उस रात फिर मुझ पर हावी हो रहा था और आज मेरे दोनों मासूम बच्चे इस वीभत्स दृश्य के साक्ष्य थे …बच्चों ने बीच बचाव किया तो उसने उन दोनों को भी पीटना शुरू कर दिया, बस मुझसे और सहन नहीं हुआ। पूरी ताक़त बटोरकर उसे धकेलते हुए उसे एक कमरे में बंद कर दिया । वह इतना ड्रंक था कि कुछ देर चिल्लाने-दरवाज़ा पीटने के बाद वह नशे में धुत सो गया ।’
‘मैंने हाथमुँह धो कर खुद को नर्मल किया व बच्चों को संभाला और उन्हें भी प्यार से नार्मल किया …नौ साल का बेटा व सात साल की बेटी -दोनों इतना घबराये हुए थे कि क्या बताऊँ तुझे ..बस सौमी उस रात मैंने वो नरक त्याग दिया । रातों रात ज़रूरी सामान बाँधा और मायके आ गयी, एक बार काफी बवाल मचा पर मैं दृढ़ रही तलाक की अर्जी दी और घरवालों को भी समझाया कि कुछ दिनों का आसरा चहियेगा फिर मैं उनके रास्ते में नहीं आऊंगी।सबने क्या नहीं कहा, ताने दिए, दुहाई दी पर मेरे पति का मेरे बच्चों पर इस तरह हाथ उठाना और उनके सामने मेरी अस्मिता पर वहशियों की तरह हाथ डालना बर्दाश्त नहीं कर पायी ।
‘चार महीने मायके में बिताये और अपने भविष्य की प्लानिंग की । पति ने बहुत परेशान किया पर इस बार मैं अडिग रही ,न जाने कहाँ से सबका सामना करने की शक्ति बनी रही । धीरे धीरे उसका तंग करना बंद हुआ , मैंने अपनी एक मित्र की मदद से तीन कमरे का फ्लैट किराए पर लिया ,उसी में अपनी गृहस्थी पुनः बसाई व उसी में एक डे-क्रेश खोला । मेरे पास अपनी सेविंग्स थीं सो किसी की आर्थिक मदद नहीं ली हाँ मेरी उस सखी रश्मि ने क्रेश सेट अप करने व चलाने में मेरी पूरी मदद की ।
साल बीतते देर नहीं लगी, तलाक अप्प्रूव हो गया था और मैं भी अपने पैरों पर खड़ी होने लगी थी । आज मेरे दो फुल्ली फसिलिटटेड क्रेश हैं व एक किंडरगार्टन भी चलती हूँ -दोनों बच्चे बहुत खुश हैं व अपनी पढ़ाई में अच्छा कर रहे हैं और मैं भी बेहद खुश हूँ यार ‘- कहते कहते केशवी की आँखें चमकने लगीं ।
‘पर फिर भी केशवी तुझे तलाकशुदा बनकर रहने में अटपटा नहीं लगता..मेरा मतलब समाज …’-‘अरे हम तुम ही तो समाज हैं ‘…सौम्या की बात केशवी ने बीच में ही काट दी और हंस पड़ी ।
‘मेरी प्यारी सौम्या हम औरतों को सब लोग शून्य यानी ज़ीरो समझते हैं पर अपनी सूझबूझ से अगर हम यह जान लें कि हम यानी शून्य किसी नंबर के बाद लग जाएँ तो १ का १० बन जाती हैं बस फिर तो सबकी बोलती ही बंद हो जाती है .. और नयी सुलझी हुई सामाजिक धारना की नींव भी हम ही रख सकते हैं… सौमी ऐसा नहीं है कि मैंने अपनी शादी बचाने की कोशिश नहीं की पर अत्याचार सहने की भी एक सीमा होती है ।’
किसी भी शादी के लिए ज़्यादा बुरी बात तलाक होना नहीं है …ज़्यादा तकलीफदेह होता है एक गैंग्रीन ग्रस्त वैवाहिक रिश्ते में बंधे रह कर बेजान मांस के लोथड़े में तब्दील हो जाना !
अनु बाफना
दुबई, यू.ए.ई.