एक पिता का संघर्ष
“बड़े भाग्य से बेटियाँ मिलती है।” ये कहते हुए माखनलाल जी अपनी पत्नी कमला के करीब बैठ गए।
कमला :- “वो तो ठीक है मुझे खुद पहली सन्तान बेटी चाहिए लेकिन सासू माँ और ससुर जी वो तो लड़की का जन्म लेना बुरा समझते हैं।”
माखनलाल :- “अरे चिंता ना करो कमला जो होगा ईश्वर पर छोड़ देते हैं मैंने कभी बेटा और बेटी में फर्क नहीं किया। बेटा हो या बेटी मैं दोनों में खुश हूँ, बस तुम खुश रहा करो कमला।”
ये कहते हुए माखनलाल जी पत्नी कमला को काफी देर तक समझाते रहे।
कुछ दिन बाद कमला के पेट में दर्द शुरू हो गया, वो घड़ी करीब आ गई थी जब कमला एक शिशु को जन्म देने वाली थी। आनन-फानन में माखनलाल जी अपनी पत्नी कमला को लेकर अस्पताल पहुंचे। बिना देर किए कमला को प्रसूति गृह में ले जाया गया।
डॉक्टर थोड़ी ही देर बाद माखनलाल जी को खुश खबरी देते हुए – “बधाई हो माखनलाल जी, बेटी ने जन्म ली है।”
माखनलाल जी खुशीं से झूमते हुए :- “डॉक्टर साहिबा बहुत सुखद खबर दी है आपने!”
ये कहकर कुछ देर बाद पत्नी कमला और अपनी नवजात बच्ची को लेकर घर पहुंचे।
माखनलाल जी :-(खुशीं से) बाबूजी – “माँ मैं पापा बन गया मुझे प्रथम पुत्री रत्न की प्राप्ति हुई है।”
कृष्ण लाल :- (नाखुश होते हुए) अच्छा!
पेमिन बाई :- (मुँह बनाते हुए) “इसमें इतना उछलने की क्या बात है हूंह!”
माखनलाल जी :- “खुशीं की तो बात है ही ना माँ, घर में लक्ष्मी आयी है। उसके स्वागत की तैयारी कीजिए।”
(कृष्ण लाल और पेमिन बाई बुदबुदाते हैं) :-“तुम्हारी बेटी तुम जानो हमें क्या!”
माखनलाल जी – (अपनी पत्नी कमला से):- “सुनो, मैं बहुत खुश हूँ अपनी इस नन्ही सी परी का पापा बनकर, तुम्हारा बहुत बहुत आभार मेरे जीवन में आने के लिए। उसे इतना खुशनुमा बनाने के लिए बोलो तुम्हें क्या चाहिए..।”
कमला देवी – (अपने पति से):- “आप मुझे मिले और क्या चाहिए मुझे तो सब कुछ मिल गया।”
माखनलाल जी :-“अच्छा बताओ, इसका नाम क्या रखे…?”
कमला देवी :- “इसके आने से इसकी खुशबू से हमारा सारा घर महक उठा इसने हमारे पूरे जीवन को महका दिया इसका नाम क्यूँ ना पुष्पलता रखें।”
माखनलाल :- “अरे वाह, तुमने तो मेरे मन की ही बात कह दी तो फिर ठीक है आज से इसका नाम हुआ पुष्पलता!”
समय इसी तरह पंख लगाकर उड़ जाता है। कुछ महीनों बाद पुष्पलता आंँगन में घुटनों के बल रेंगते हुए खेल रही थी वहीं पास उसके दादा-दादी भी थे, वह उसे बिल्कुल भी पसंद नहीं करते थे, क्योंकि वह लड़की थी। वह खेलते खेलते सीढ़ी की तरफ बढ़ने लगती है….
कृष्ण लाल-( अपनी पत्नी से):- “अरे देखो बच्ची गिर जाएगी।”
पेमिन बाई-( मुंँह बनाते हुए कहती है):-“गिरने दीजिए ऐसे भी तो लड़की है सर पर बोझ ही तो है, अच्छा है कुछ हो जाए तो पीछा छूटे इससे”
कमला देवी-( बच्ची को पकड़ते हुए) :-” अरे माँ यह कैसी बातें कर रही है, आपकी बच्ची है। आप इतनी नफरत क्यों करती है हमारी बेटी से।”
पेमिन बाई :- “चुप कर करमजली! ऐसे भी तूने हमें पोता तो दिया नहीं, अब इस बोझ का हम क्या करें…..?”
कमला देवी:- “मांँ ऐसे ना कहो आख़िर ये हमारी बच्ची है।”
( कमला आंँसू पोछते हुए बच्चीं को पकड़े अंदर जाती है)
फिर वक्त इस तरह बीतता जाता है। दो वर्षों पश्चात कमला फिर से एक पुत्री को जन्म देती है।
माखनलाल जी- “अरे वाह आज मैं फिर एक बेटी का पिता बन गया।”
(अपनी पत्नी से कहते हुए)
कमला देवी- “खुश तो मैं भी बहुत हूँ पर माँ और पिताजी को बेटियाँ पसंद नहीं है वह बोझ समझते हैं। मैं बहुत दुखी होती हूंँ उनकी बातों से जब वो हमारी बेटियों को हीन दृष्टि से देखते है तो मेरा दिल तिल-तिल करके रोता है।”
माखनलाल जी – “अरे, सुनो देखो उदास मत हो ये समय खुश होने का है।माँ और पिताजी की सोच और विचार वक्त के साथ बदल जाएंगे। तुम निराश मत हुआ करो समझी मेरी प्यारी प्यारी परियों की माँ। देखना अभी तो हमारी दूसरी छुटकी आई है ना, यह भी हमारे जीवन में मिठास घोल देगी। फिर देखना हम खुश रहेंगे और सुनो इसका नाम हम क्या रखेंगे? जानती हो मैंने तो पहले से ही सोच रखा है इसका नाम होगा “मधुलता” यह हमारे जीवन में मिठास घोलने आई है। तुम ये बताओ तुमको हमारी बेटी का नाम पसंद आया कि नहीं…..?”
कमला देवी -” हां बहुत पसंद है आप अगर मेरे साथ हैं आप खुश हैं तो मैं भी खुश हूं बहुत खुश हूं, बस आप मेरा साथ मत छोड़ना फिर तो मैं सारे जमाने का सामना कर लूंगी।”
इसी तरह वक्त बीते जाता है और पुष्पलता, मधुलता के बाद माखनलाल जी और कमला देवी की और पुत्रियां होते जाती है और वे अपनी बेटियों का नाम सरस्वती, रुक्मणी, दुर्गा और रेणुका रखते हैं और इस तरह माखनलाल जी और कमला देवी का आँगन इन प्यारी-प्यारी बेटियों की किलकारियों से गूंजने लगता है, पर ये सब माखनलाल जी के माता और पिताजी को बिल्कुल भी पसन्द नहीं था वो हमेशा उन बच्चियों से नफरत ही करते थे।अगर बच्चियां खेलते-खेलते उनकी गोद में जाकर बैठ जाती तो वो उन्हें धकेल देते थे और कहते “तुम लोग तो बोझ हो, पराये घर चली जाओगी हम को तो पोते से ही मुक्ति मिलेगी।”
वही पर वो माखनलाल जी के छोटे भाई के बेटों को गले लगाती पुचकारती थी तो माखनलाल और कमला देवी बस मन मसोस कर रह जाते थे। जब कभी भी माखनलाल जी अपनी बच्चियों के साथ अपने ही घर में हो रहे दुर्व्यवहार के खिलाफ बोलते तो, उनके पिता श्री कृष्ण लाल जी भी कहते :-” देखता हूँ तुम अपनी बेटियों की परवरिश कैसे करोगे? कैसे इनका विवाह करोगे..? तुम तो अकेले हो तुम्हारा कोई बेटा भी नहीं, कौन तुम्हारा सहारा बनेगा?”
माखनलाल जी लोगों के ताने सुनते रहे पर कभी अपनी बेटियों को ये एहसास तक नहीं होने दिए कि वो लड़कियाँ है। उन्होंने उन बच्चियों को अच्छी शिक्षा दी जितनी उनकी हैसियत थी। शान की जिन्दगी दी, सिर्फ एक नौकरी मे इतने बड़े परिवार का खर्च चलाना आसान नहीं था। वो ओवर टाइम करते, बाहर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते और बचे समय मे आकर घर के काम में अपनी पत्नी का सहयोग करते और अपनी बच्चियों के साथ खेला करते, वो भी लोगों की परवाह किए बिना अपनी पत्नी और बच्चियों को समय-समय पर घुमाने भी ले जाते। कभी पिकनिक, पार्टी, फ़िल्में, मेला दिखाने ले जाते। इसी तरह दिन बीतते गए और उन्होंने अपनी बेटियों को निडरता पूर्वक जीवन जीना सिखाया। फिर उन्होंने अपनी बेटियों का अच्छे घरों में धूमधाम से विवाह कर दिया और वो लोग अपना सा मुँह लेकर देखते रह गए, जो उनको और बेटियों को ताना देते थे। माखनलाल जी हमेशा शान से जिए, उन्होने कभी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया। लोग तो बेटियों की शादी के बाद अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाते हैं पर वो शादी के बाद भी बेटियों की हर मुसीबतों मे डटकर खड़े रहे और उनको हौसला दिया हमेशा कहते :-“मैं हूँ ना”।
इस तरह बेटियों के पिता ने बहुत संघर्ष किया और शान से जीवन जिये। माखनलाल जी को शत-शत नमन है, जिन्होंने उन लोगों का मुँह बंद किए जो ये कहते थे कि बेटियाँ बोझ है। उन्हीं बेटियों को ढाल बना कर माखनलाल जी ने ये कहा था, “लोग तो कहते रहते हैं लोगों का काम है कहना। मेरी बेटियाँ बेटों से ऊपर है, शिरोमणि है मेरी।” उसके बाद कभी किसी ने उनकी बेटियों के खिलाफ नहीं बोला।
पूजा गुप्ता
मिर्जापुर, भारत