प्रेम की पराकाष्ठा
प्रेम सत्य है,सर्वव्यापी है
प्रेम की पराकाष्ठा भला
कब किसने नापी है!!
प्रेम विश्वास है प्रेम आस है,
प्रेम प्यास है एहसास है!!
प्रेम पूजा है,प्रेम निष्ठा है,
प्रेम नाता है ,प्रेम विरह है!!
प्रेम को कब किसने बांधा है
प्रेम को कब किसने मापा है,
प्रेम अनछुआ है अनदेखा है
प्रेम की ना कोई रेखा है!!
प्रेम मौन है प्रेम बैना है
प्रेम अधनिंदी रैना है,
प्रेम चुभन है ,प्रेम जलन है,
प्रेम आत्माओं का मिलन है
प्रेम सुकून है प्रेम साधना है
प्रेम ईश्वर है, आराधना है!!
प्रेम राधा है प्रेम कृष्णा है
प्रेम अनबुझी सी तृष्णा है
प्रेम पाना ही नहीं होता
प्रेम खोना ही नहीं होता
प्रेम टीस है प्रेम पीर है
प्रेम अटूट ज़ंजीर है!!
अर्चना रॉय
साहित्यकार व प्राचार्या
रामगढ़ ,झारखंड