जल समाधि
उस रात मैं दुखी मन से बिस्तर पर लेटी करवटें बदल रही थी | उस दिन गुलाबो चाची जी की तेरहवीं थी | सबके मुंह पर एक ही बात थी कि गुलाबो चाची बड़ी धर्मात्मा थीं | उन्हें अपनी मृत्यु का अहसास हो गया था, इसीलिए उन्होंने प्रातः चार बजे उठकर जल समाधि लेकर अपना तन-मन सर्वस्व गंगा मैया को समर्पित कर दिया |
सुबह से ही घर में पूजा-पाठ, हवन, शैया दान, ब्राह्मण भोज आदि बड़ी आस्था से संपन्न किये जा रहे थे | तेरहवीं के भोज के लिए पूरे समाज के लोग, रिश्तेदार तथा मित्र आमंत्रित थे | हर व्यक्ति चाची व उनके समाज सेवी पुत्र अनुज तथा बहू पूजा के गुण गाते हुए कह रहा था – “परिवार हो तो ऐसा हो |”
उनकी याद में अनुज और पूजा की आंखें बरस रही थीं | पूजा नम आँखों से बोली, “माताजी, तो हर समय पूजा पाठ एवं मालाजाप करती रहती थीं | उनके बक्से में से राम नाम लिखी हुई दस कापियां निकलीं | घर के काम में तो उनकी दखल थी ही नहीं | वे तो हमेशा कहतीं, “बहू आ गई , वह संभाले अपनी गृहस्थी को |”
एक स्त्री ने पूजा से पूछा, “क्या आपको पता था कि माताजी जल समाधि लेने वाली हैं ?”
पूजा ने कहा, “अरे कहाँ ! अगर बताया होता तो हम उन्हें ऐसे तो न जाने देते | बड़े बूढ़ों के बिना तो घर काटने को दौड़ता है | मैं तो रोज की तरह सुबह चाय लेकर अम्माजी को जगाने गयी, वे वहाँ मिली ही नहीं | फिर खोज चालू हुई तो मंदिर के पुजारी ने बताया कि वे भोर में भावुक मन से मंदिर में बैठी भगवान से बात कर रही थीं | फिर माताजी उठीं और गंगा मैया की ओर चली गईं | पंडित ने सोचा अम्माजी बड़ी जल्दी स्नान के लिए आ गई हैं, फिर पता चला कि अम्मा जी ने जल समाधि ले ली |”
मुझे बिस्तर पर पड़े पड़े एक एक बात याद आ रही थी | चाची अपने मन की बात मुझसे ही करती थीं | वे नहीं चाहती थीं कि समाज में उनके परिवार की थू थू हो, इसलिए सब चुपचाप सहती रहतीं| धरती मैया सी सहनशक्ति और धैर्य था उनमें |
तेरहवीं में अनुज और पूजा ने भरपूर दान- दक्षिणा -भोज का दिखावा कर सभी को प्रभावित कर लिया था | वैसे भी समाज में उसका एक प्रतिष्ठित नाम था | मैं लेटे लेटे इन सब बातों का विश्लेषण कर रही थी | मुझे चाची के जीवन की एक घटना चित्र की तरह याद आ रही थी | जीवन की सच्चाई को झूठा दिखावा कैसे ढक लेता है, यह सोच कर मैं बहुत परेशान थी |
चाचा की मृत्यु के बाद ही चाची के बुरे दिन शुरू हो गए थे | जो अनुज और पूजा उनके निर्देशानुसार काम करते, उन्हें आदर देते, समय के साथ ऐसे बदले कि उन्होंने धोखे से अपनी माँ की सारी जायदाद के कागजात अपने नाम तैयार करवा लिए फिर अनुज माँ से बोला, “माँ इन पेपर पर साइन कर दो |”
गुलाबो चाची ने पुत्र पर पूरा भरोसा करके चुपचाप साइन कर दिए, पर उनके इकलौते प्रिय पुत्र ने ही अपनी माँ को छल लिया था | बँगला उसके नाम होने पर उसके और पूजा के तेवर ही बदल गए | माँ के पास जो फिक्स डिपॉजिट थे, उन्हें भी वे दोनों खर्चे गिना कर तुड़वाते जा रहे थे | अपने घर में रानी की तरह रहने वाली गुलाबो चाची को पूजा ने नौकरानी बना दिया था |
सुबह उठते ही पूजा गुलाबो चाची को आवाज लगाती, “अम्मा, चाय तो दे दो | दो घूंट चाय गले में जाए तो कुछ दिन की शुरुआत हो |”
गुलाबो चाची पूजा के कमरे में जाकर उसे चाय देकर आतीं | कभी कभी तो हद हो जाती, वह चाची पर चिल्लाती, “अम्मा लगता है बुढ़ापे में चाय बनाना भी भूल गई हो, यह भी कोई चाय है ?”
गुलाबो चाची खून के घूँट पीकर रह जातीं | सुबह से रात तक बस काम ही काम और झिड़कियाँ |
यदि घर में अचानक कोई आ जाता, तो पूजा और अनुज के मुख से चाची के प्रति फूलों की वर्षा होने लगती | दोहरा व्यवहार | बाहर वाला व्यक्ति सोचता कि कितना आदर्श परिवार है | वैसे तो अनुज ने उन्हें यही हिदायत दे रखी थी, “जब कोई रिश्तेदार या पूजा की सहेलियाँ आएं तो आपको अपने कमरे से बाहर आने की बिल्कुल जरूरत नहीं है |”
गुलाबो चाची अंदर ही अंदर घुटती रहतीं | जैसे जैसे गुलाबो चाची की फिक्स डिपोजिट समाप्त होती जा रही थीं, उनके खाने -पीने पर भी प्रतिबंध बढ़ता जा रहा था | वे सबके लिए भोजन बनाकर जब स्वयं खाने बैठतीं, तो पूजा दाल में पानी मिला देती, “अम्मा अब बुढ़ापे में आपको इतनी गाढ़ी दाल नहीं पचेगी |”
गुलाबो चाची घर की इज़्ज़त बनाए रखने के लिए बेस्वाद भोजन करके भी चुप रहतीं | उन्होंने मुझे भी कसम खिलाई थी, “मुनिया, मैं तुझे अपने मन की सब बात बताती हूँ, पर तू मुझे वचन दे कि मेरे घर की बातें किसी से नहीं कहेगी |”
मैंने भी उनको वचन दिया था, सो मैं भी चुप थी | सोचती हूँ नारी में भगवान ने कितनी सहन शक्ति दी है | नारी अपने परिवार की भलाई के लिए कितना कुछ सह सकती है | गुलाबो चाची इसका सच्चा उदाहरण थीं |
वे दिन पर दिन कमज़ोर होती जा रही थीं | उनके श्री राम ही एकमात्र सहारे थे, उन्हीं का नाम जपतीं, खाली समय में कॉपी पर राम राम लिखतीं |
गुलाबो चाची की उम्र और काम का बोझ बढ़ता जा रहा था | अनुज काम पर चला जाता और गृहस्थी के काम से बेखबर पूजा शॉपिंग, किटी आदि में व्यस्त रहती | अपने ऊपर खर्च करने में उसे कोई दर्द न होता, पर घर में गुलाबो चाची फटी पुरानी साड़ी पहने रहती | एक दिन मैं अचानक पहुँच गई थी, मैंने गुलाबो चाची से कहा , “चाची यह कैसी साड़ी पहन रखी है |” पूजा ने यह बात सुन ली | वह बोली, “दीदी, क्या बताऊँ, दस दस साड़ियां अम्मा के लिए लाकर रखी हैं | रोज कहती हूँ नई साड़ी पहन लो, पर मानती ही नहीं हैं | कहती हैं, गर्मी में मुझे पुरानी घिसी साड़ी पहन कर अच्छा लगता है |”
अनुज भी समाज में उच्च पद पर आसीन था, वह कभी भंडारे, कभी बड़ी पार्टियां करता, पर माँ के प्रति अपने दायित्व को बिल्कुल भूल गया था | पूजा जैसी पट्टी पढ़ाकर नचाती वैसे ही नाचता | न जाने क्यों कभी कभी पुरुष अपनी माँ और अपनी पत्नी के बीच सामंजस्य बिठाने में असफल हो जाता है | अनुज भंडारों में न जाने कितने लोगों को भोजन करा देता, पर अपनी माँ की एक एक रोटी उसे भारी पड़ने लगी थी |
गुलाबो चाची की जिस दिन मृत्यु हुई थी, उस दिन मेरे पास उनका फोन आया था | गुलाबों चाची रोकर मुझे फोन पर अपनी दास्तान सुना रही थीं | तभी अचानक पूजा आ गई, उसने हमारी बातें सुन लीं | उसने तो फिर घर सिर पर उठा लिया | चिल्लाने लगी, “मेरी तो किस्मत ही फूटी है, अम्मा के लिए इतना कुछ करती हूँ, फिर भी अम्मा लोगों से मेरी बुराइयाँ ही करती हैं | सास तो सास ही होती है, ऊपर से भले ही अपने को शक्कर सी दिखाए, पर टक्कर मारकर ही चलती है | तभी तो मेरी सहेली कहती हैं कि सास तो माला पहने फ़ोटो में ही अच्छी लगती है |”
यह सब सुनकर गुलाबो चाची और मैं सन्न से रह गए | आखिर कोई कितना गिर सकता है | पूजा ने चिल्लाते हुए गुलाबो चाची के हाथ से फोन लिया और काट दिया | मैं अपने घर में बैठी सोचती रही, पता नहीं उन पर क्या गुजर रही होगी | मेरा मन नहीं माना मैंने देर रात गुलाबो चाची को फिर फोन किया, “धीरे से बोला सब ठीक है ?” उधर से गुलाबो चाची की सिसकियों ने मुझे व्याकुल कर दिया | चाची बोलीं, “मुनिया, आज तो अनुज और पूजा ने सारी सीमाएं लाँघ दीं | अनुज ने मुझे थप्पड़ मारा और धकेलते हुए चिल्लाकर बोला, दूसरों के सामने हमारी बुराई करती हो, कैसी माँ हो | नहीं चाहिए ऐसी माँ | गंगा में डूब क्यों नहीं जातीं |”
यह सब सुनकर मेरे अन्दर गरम गरम सीसा सा पिघलने लगा था | जो माँ अपना सुख चैन त्यागकर अपने बच्चे का पालन पोषण करती है, वही बच्चा बड़ा होकर अपनी माँ को इतने कष्ट पहुँचाने में ज़रा भी नहीं सोचता | मेरे मन में भावों की रील चित्र सी चलती जा रही थी | आँखों से आँसू बहते जा रहे थे | तभी बड़ी भुआ गीता ने आकर कहा , “मुनिया, सुबह के चार बज गए सोई नहीं बेटी | अरे तू तो रो रही है | तुझसे गुलाबो बहुत प्यार करती थी न | तुझसे से ही क्या, वह सबसे बहुत प्यार करती थी | दिव्यात्मा थी |”
मैं मन ही मन सोच रही थी, वह तो वाकई दिव्यात्मा ही थीं, जिन्होंने अपने परिवार की सुख -शांति के लिए जल समाधि ले ली |
सुनीता माहेश्वरी
नाशिक,भारत