प्रेम

प्रेम

हुई है जबसे सुन्दर भोर,उठा है अदभुत- अदभुत भाव।
निहारे पाखी को चितचोर, सुखद है हृद का यह गहराव।।
नयन को करके हमने चार , मिलाया हाथों से फिर हाथ ।
दिखा जन्मों-जन्मों का प्यार,निभाना साथी अब तुम साथ।।

बुझे ना दीपक की लौ तेज, इसी बंधन में सुख अरु चैन।
रखो अब हमको हृदय सहेज, दरस बिन रहती हूँ बेचैन।।
छलक कर आँसू कहते बात, तुम्हीं को मेरे मोहन मीत।
समझ लेते हो हर जज्बात , बढ़ी है गहरी जब से प्रीत।।

चलूँ मैं मीत तुम्हारे संग , यही है जीवन का आनंद।
चढ़ा है श्यामल जब से रंग, लिखा है तुझपे मैंने छंद।।
अंग में निखरा दिव्य प्रकाश, सुभग है देखो हर अहसास।
मिलेंगे दोनों के अब साँस , चलो अब पूरा होगा रास ।।

अर्चना लाल
साहित्यकार
जमशेदपुर ,झारखंड

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