अंतरिक्ष की धरोहर .. कल्पना चावला
कुछ कर गुजरने की तमन्ना थी ,
कुछ जीने का नया तराना था ।
चांद सितारों से मिलने भरी उड़ान,
किसे पता था जिंदगी खत्म करने
आ जायेगा तूफान ।।
भारत की वह बेटी जिसने प्रथम बार अंतरिक्ष पर अपने पाँव रखे, जिसने अपने मन की कल्पना को वास्तविकता में सच कर दिखाया, हम बात कर रहे हैं कल्पना चावला की , जो किसी परिचय की मोहताज नहीं। ये भारत की एक ऐसी महिला है जिन्होंने ना सिर्फ देश में बल्कि पूरी दुनिया पर आपने नाम का झंड़ा गाड़ा है।
कल्पना चावला हर लड़की के लिए हमेशा से प्रेरणा रही हैं जब वह जीवित थीं तब भी और आज जब वह हमारे साथ नहीं हैं अब भी।
कल्पना चावला भारतीय मूल की अमरीकी अंतरिक्ष यात्री और अंतरिक्ष शटल मिशन विशेषज्ञ थीं। वे एरोनॉटिकल इंजीनियर (वैमानिक अभियांत्रिकी) थीं। एयरोनॉटिक्स के क्षेत्र में उपलब्धि और योगदान के मामले में वे कई महिलाओं के लिए एक आदर्श मॉडल भी रहीं हैं।
वे भारत में जन्मी महिला थीं और अंतरिक्ष में जाने वाली भारतीय मूल की दूसरी व्यक्ति थीं। राकेश शर्मा ने १९८४ में सोवियत अंतरिक्ष यान में एक उड़ान भरी थी।
कल्पना चावला का जन्म हरियाणा के करनाल शहर में 17 मार्च 1962 को हुआ था। उनके पिता का नाम बनारसी लाल चावला और माता का नाम संजोती है। कल्पना ने अमेरिका में पढ़ाई के दौरान ही शादी करने का फैसला कर लिया था और उन्होंने अपने फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर, विमानन लेखक, जीन पियरे हैरीसन से शादी की थी।कल्पना का विवाह सन् 1983 ई० में जीन पियरे हैरिसन से हुआ। कल्पना अपने परिवार में चार भाई-बहनों मे सबसे छोटी थीं। कल्पना चावला की बहनों का नाम सुनीता और दीपा है जबकि उनके भाई का नाम संजय है। कल्पना अपने भाई-बहनों में सबसे छोटी थी इसलिए उन्हें परिवार से ज्यादा लाड़-प्यार मिलता था और वे अपने चंचल स्वभाव से सभी को मोहित कर लेती थी इसलिए वे सबकी लाड़ली भी थी।कल्पना को जब विद्यालय में दाखिले के लिए स्कूल लेकर गए तब वहां दाखिले के लिए उनका नाम पूछा गया। उनकी मासी ने बताया कि इसे हम घर पर “मोंटो” नाम से बुलाते हैं लेकिन दाखिले के लिए कोई नाम तय नहीं हुआ है। कल्पना की मासी ने प्राध्यापिका को तीन नाम बताऐ…. सुनैना, कल्पना व ज्योत्सना और कहा कि परंतु इनमें से कौन सा नाम तय करें यह नहीं सोचा है ।कल्पना बचपन से जिज्ञासु प्रवृति और स्वतंत्र स्वभाव की थी।कल्पना ने अपना नाम खुद चुन लिया था।इसके बारे में उनकी मासी बताती है कि तब प्राध्यापिका ने नन्ही चावला से ही उनकी इच्छा पूछी कि उन्हें कौन सा नाम पसंद हैं तो उसने तुरन्त “कल्पना” नाम चुना।
कल्पना की प्रारंभिक शिक्षा करनाल के “टैगोर बाल निकेतन सीनियर सेकेंडरी स्कूल” में हुई। बचपन से ही उन्हें एरोनाॅटिकल इंजीनियर बनने का शौक था। उनके पिता उन्हें डॉक्टर या शिक्षिका बनाना चाहते थे पर कल्पना बचपन से ही अंतरिक्ष में भ्रमण करने की कल्पना किया करती थी।अपने सपने को साकार करने के लिए कल्पना चावला ने चंडीगढ़ के पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से ‘एरोनाॅटिकल इंजीनियरिंग’ में बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग में दाखिला लिया और सन 1982 में ‘एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग’ की डिग्री भी हासिल कर ली।
इसके पश्चात कल्पना अमेरिका चली गईं और सन 1982 में ‘टेक्सास विश्वविद्यालय’ में ‘एयरोस्पेस इंजीनियरिंग’ में स्नातकोत्तर करने के लिए दाखिला लिया। उन्होंने इस कोर्स को सन 1984 में सफलता पूर्वक पूरा किया। उनके अन्तरिक्ष यात्री बनने की इच्छा इतनी प्रबल थी कि उन्होंने सन 1986 में ‘एयरोस्पेस इंजीनियरिंग’ में दूसरा स्नातकोत्तर भी किया और उसके बाद कोलराडो विश्वविद्यालय से सन 1988 में ‘एयरोस्पेस इंजीनियरिंग’ विषय में पीएचडी भी किया।
सन 1988 में उन्होंने नासा के ‘अमेस रिसर्च सेंटर’ में बतौर उपाध्यक्ष कार्य करना प्रारंभ किया। वहां उन्होंने वर्टिकल/शॉर्ट टेकऑफ और लैंडिंग कॉन्सेप्ट पर कम्प्यूटेशनल फ्लुइड डायनामिक्स (CFD) पर अनुसंधान किया। कल्पना चावला को हवाई जहाज़ों, ग्लाइडरों व व्यावसायिक विमान चालन के लाइसेंसों के लिए प्रमाणित उड़ान प्रशिक्षक का दर्ज़ा हासिल था।उन्हें एकल व बहु-इंजन वायुयानों के लिए व्यावसायिक विमानचालक के लाइसेंस भी प्राप्त थे।सन 1991 में कल्पना चावला ने अमेरिका की नागरिकता हासिल कर ली और नासा एस्ट्रोनॉट कोर्प के लिए आवेदन कर दिया। मार्च 1995 में उन्होंने नासा एस्ट्रोनॉट कोर्प ज्वाइन कर लिया और उन्हें सन 1996 में पहली उड़ान के लिए चुना गया।कल्पना की प्रथम अंतरिक्ष उड़ान एस.टी.एस.107 कोलंबिया शटल से 19 नवम्बर 1997 से 5 दिसम्बर 1997 के मध्य सम्पन्न हुई। उनकी दूसरी और आखिरी उड़ान 16 जनवरी 2003 को स्पेस शटल कोलंबिया से शुरू हुई पर दुर्भाग्यवश 1 फरवरी 2003 को कोलंबिया स्पेस शटल पृथ्वी पर लैंड करने से पहले ही दुर्घटना ग्रस्त हो गया जिसमे कल्पना चावला समेत अंतरिक्ष यान के सभी 6 यात्री मारे गए।अपने पहली उड़ान में कल्पना चावला ने लगभग 1 करोड़ मील की यात्रा की (जो पृथ्वी के लगभग 252 चक्कर के बराबर था)। उन्होंने कुल 372 घंटे अंतरिक्ष में बिताये। इस यात्रा के दौरान उन्हें स्पार्टन उपग्रह को स्थापित करने की जिम्मेदारी सौंपी गयी थी पर इस उपग्रह ने ठीक से कार्य नहीं किया जिसके स्वरुप इस उपग्रह को पकड़ने के लिए दो अंतरिक्ष यात्रियों विंस्टन स्कॉट और तकाओ दोई को अंतरिक्ष वाक करना पड़ा। इस गड़बड़ी की वजह जानने के लिए नासा ने 5 महीने तक जांच की जिसके बाद यह पाया गया कि यह गड़बड़ी कल्पना के वजह से नहीं बल्कि सॉफ्टवेयर इंटरफ़ेस और फ्लाइट क्रू और ग्राउंड कण्ट्रोल के कार्यप्रणाली में खामियों के वजह से हुई थी।उनकी पहली अंतरिक्ष यात्रा (एसटीएस-87) के बाद इससे जुड़ी गतिविधियाँ पूरी करने के बाद कल्पना चावला को एस्ट्रोनॉट कार्यालय में ‘स्पेस स्टेशन’ पर कार्य करने की तकनीकी जिम्मेदारी सौंपी गयी।
सन 2002 में कल्पना को उनके दूसरे अंतरिक्ष उड़ान के लिए चुना गया। उन्हें कोलंबिया अंतरिक्ष यान के एसटीएस-107 उड़ान के दल में शामिल किया गया। कुछ तकनीकी और अन्य कारणों से यह अभियान लगातार पीछे सरकता रहा और अंततः 16 जनवरी 2003 को कल्पना ने कोलंबिया पर चढ़ कर एसटीएस-107 मिशन का आरंभ किया।
उड़ान दल की ज़िम्मेदारियों में शामिल थे लघुगुरुत्व प्रयोग जिसके लिए दल ने 80 प्रयोग किए और जिनके जरिए पृथ्वी व अंतरिक्ष विज्ञान, उन्नत तकनीक विकास व अंतरिक्ष यात्री स्वास्थ्य व सुरक्षा का भी अध्ययन किया गया। कोलंबिया अन्तरिक्ष यान के इस अभियान में कल्पना के अन्य यात्री थे- कमांडर रिक डी. हस्बैंड, पायलट विलियम सी मैकूल, कमांडर माइकल पी एंडरसन, इलान रामों, डेविड एम ब्राउन और लौरेल क्लार्क।
भारत की पहली महिला अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला की दूसरी अंतरिक्ष यात्रा उनकी अंतिम यात्रा साबित हुई। अपने सभी अनुसंधान के उपरांत वापसी के समय कोलंबिया अंतरिक्ष यान पृथ्वी के वायुमंडल मे प्रवेश करते ही टूट कर बिखर गया और देखते ही देखते अंतरिक्ष यान उसमें सवार सातों यात्रियों सहित ख़ाक हो गया। अंतरिक्ष यान और उसमें सवार सातों यात्रियों के अवशेष टेक्सास नामक शहर पर बरसने लगे और सफ़ल कहलाया जाने वाला अभियान भीषण दर्दनाक सत्य बन गया। नासा ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व के लिये यह एक दर्दनाक घटना थी। कल्पना के देहांत के बाद उनके पति भारत आये थे और कल्पना के भस्मावशेषों को हिमालय पर बिखेर दिया ,ताकि उनकी आत्मा को शांति मिल सके।
भारत की पहली महिला अन्तरिक्ष यात्री कल्पना चावला को देश भर की महिलाएं एक आदर्श के रूप में देखती हैं। कल्पना ने 2 बार अन्तरिक्ष का भ्रमण किया था,इससे पहले राकेश शर्मा वो भारतीय थे जिन्होंने अन्तरिक्ष का भ्रमण किया था और चाँद पर कदम रखा था।कल्पना का सफर भारतीयों के लिए किसी सपने से कम नहीं है और उन्हें नासा में मिलने वाली जिम्मेदारियां एवं सफलता भारत का सर और ऊँचा कर देती हैं,इसीलिए कल्पना, भारत में एक आदर्श,सफल और प्रेरणास्पद महिला के रूप में देखी जाती हैं। कल्पना ने अपनी पहली उड़ान के बाद कहा था “रात का जब समय होता हैं, तब मैं फ्लाइट डेक की लाइट कम कर देती हूँ और बाहर गैलेक्सी और तारों को देखती हूँ, तब ऐसा महसूस होता हैं कि आप धरती से या धरती के कोई विशेष टुकड़े से नहीं आते हो, बल्कि आप इस सूर्यमंडल का ही हिस्सा हो”. कल्पना भारत के पहले पायलट जे.आर.डी टाटा से प्रभावित थी, इसलिए उनकी उड़ान में रूचि, जे.आर.डी टाटा की प्रेरणा से ही विकसित हुई थी। भारत ने कल्पना के सम्मान में उनके नाम पर अपने पहले मौसम सेटेलाइट का नाम रखा हैं- कल्पना-1।
उन्हें मरणोपरांत
कांग्रेसनल स्पेस मेडल ऑफ ऑनर अवार्ड, नासा अन्तरिक्ष उड़ान पदक,नासा विशिष्ट सेवा पदक से सम्मानित किया गया।
कल्पना चावला हर लड़की के लिए हमेशा से प्रेरणा रही है जब वह जीवित थी तब भी ,और आज जब वह हमारे साथ नहीं है तब भी। उल्लेखनीय है कि कल्पना चावला पहली भारतीय महिला अंतरिक्ष यात्री थीं, उनके पास हवाई जहाज और ग्लाइडर रेटिंग के साथ एक प्रमाणित उड़ान प्रशिक्षक का लाइसेंस, एकल और बहु-इंजन भूमि सीप्लेन के लिए वाणिज्यिक पायलट का लाइसेंस, और ग्लाइडर और हवाई जहाज के लिए उपकरण रेटिंग थे। कल्पना चावला के यह शब्द सत्य हो गए,” मैं अंतरिक्ष के लिए ही बनी हूँ। प्रत्येक पल अंतरिक्ष के लिए ही बिताया है और इसी के लिए ही मरूँगी।
लता सिंघई
लेखक परिचय
लेखिका अमरावती,महाराष्ट्र में निवास करती हैं, इनकी अब तक चार काव्य संग्रह;सांझ ढ़ले, झरोखे मन के ,मोहे रंग दे,पाती प्रभु के नाम एवं एक कहानी संग्रह; परमवीर चक्र विजेताओं की गाथाएं और संपादन में परमवीर चक्र विजेताओं की गाथाएं के साथ कई सांझा संकलन का प्रकाशन हुआ हैं।महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा “सांझ ढ़ले” संत नामदेव पुरस्कार से पुरस्कृत।गुजरात एवम महाराष्ट्र शालेय पाठ्यक्रम में कविता का समावेश टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप के महाराष्ट्र टाइम द्वारा लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड के साथ अनेक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित हैं।